आल्हा-छन्द से दी तात्याटोपे को श्रद्धांजलि एवं किया नमन्

शिवपुरी-भारत के अमर शहीद तात्या टोपे की पुण्यतिथि पर शहर के युवा साहित्यकार व चिकित्सक डॉ.अखिल बंसल निवासी श्रीराम कॉलोनी शिवपुरी ने अपनी आल्हा छन्द के रूप में भावभीनी श्रद्धांजलि एवम् शत शत नमन किया वह इस प्रकार है:-

गाथा बहुत बड़ी है आखिर कैसे होगा वंदन गान
सूर्य चंद्रमा से भी ऊँची ह,ै अपने तात्या की शान
केवल बात मु य ही करके, नतमस्तक मैं बार बार
नमन करूँ मैं तात्या तुमको, औ करता जयघोष हज़ार।।1।।

जनम अठारह सौ चौदह में, हुआ पटौदा में उजियार
बालक था वह शेर सरीखा स्वयं काल का था अवतार
पांडुरंग ने नाम पूत का रामचंद्र रख पूजे धाम
लेकिन किस्मत को था दीन्हा, तात्या टोपे का उपनाम।।2।।
बड़ा हुआ तो तात्या जागा समय गुलामी वाला जान
कर संकल्प कि भारत माता को दे दूंगा अपने प्राण
कूद पड़ा सन् सत्तावन के महा समर में वो बलवान
बलिवेदी पर चढ़ जाने को लालायित वह वीर सुजान।।3।।
छोड़ कानपुर वह बिठूर में और बनाने सैन्य कमान
आँखों में था देश घूमता, जुटा लगा कर वह जी जान
लेकिन हैवलॉक ने बोला, धावा उस पर था चुपचाप
हारा बांका लेकिन फिर भी, तात्या ने ऊगली थी आग।।4।।

वह बिठूर से चला ग्वालियरए पहुँच कालपी किया कमाल
जीत कानपुर खारी को फिर, झाँसी जा कर किया धमाल
चरखारी को जीता हारा, कौंच ग्वालियर पहुँचा बाज
रानी झाँसी के सँग उसने, छीन ग्वालियर पाया ताज।।5।।

लेकिन जून अठारह को था, रानी को घेरा ह्यूरोज
भीषण रण में मरी सिंहनी, दमके काया मुख पर ओज
तात्या कुपित हुए भारी तब, करके हमले छापामार
अंग्रेजों की जड़ें हिला दीं, ऐसे उसके तीखे वार।।6।।

कभी शेर को पकड़ न पाये, दौड़े घोड़े मीलों पार
पागल हो बौराये गोरे, हमले सहके कई हज़ार
करी मुनादी जासूसी की, पर थी हर कोशिश बेकार
बच के हमला करके तात्या, भाग निकलता था हर बार।।7।।

बूंदी टोंक उदयपुर जयपुर, भीलवाड़ा कंकरोली न
झालावाड़ इंदौर सिंरोंज, पार रुकी तात्या बोली न
तैर नर्मदा और बेतवा, चंदेरी मुंगावली चीर
छिंदवाड़ा नागपुर बरार, चलता रहा निरंतर वीर।।8।।

खरगोन बाँसवाड़ा पहुँचे, आगे जीरापुर बढ़ जाय
प्रतापगढ़ नाहरगढ़ रौंदा, इन्दरगढ़ में प्रलय मचाय
चारों तरफ गड़ाये बैठे, गोरे आँखें सौ सौ बार
किसी तरह मिल जाये तात्या, पग पग फैले पहरेदार।।9।।

चारों ओर मार्ग था बंधित, सोचा जयपुर की लें राह
देवास और शिकार हारे, पल पल मन में जलती दाह
शरण बना परोन का जंगल, ठहरा बस तात्या कुछ रात
नरवर राजा मानसिंह ने, गोरों से मिल बोला घात।।10।।

अप्रैल आठ उनसठ की भोर, तात्या को पकड़े अंग्रेज
बेड़ी में मदमस्त सिंह था, मुख पर सूरज का सा तेज
वो तारीख अठारह थी जब, होया धन्य शिवपुरी धाम
पावन चरण पड़े तात्या के, अमर हुआ नगरी का नाम।।11।।
कोर्ट मार्शल हुआ दोपहरी, जनता देखे साँसें रोक
थोड़ी देर बाद ही तात्या, आये बाहर तालें ठोक
फंदा था तैयार चूमने, महाबली की गर्दन आज
माता को निज देह चढ़ाने, आया वीरों का सरताज़।।12।।

त ता हिला झूल कर तात्या, बने शौर्यता के सम्राट
लोग कहें तात्या टोपे का, ऊँचा सर था तुंग ललाट
रोती सभी दिशाएं रोतेए आज वहाँ पर सब दिग्पाल
हर माँ चाहे कोख भरे तब, आये तात्या सा ही लाल।।13।।

ऐसी अमर कहानी जिसका, नायक देता सीख हजार
उसकी गाथा सुन सुन के फिर, आया देशभक्ति का ज्वार
ऐसी ज्वाला भड़की जिसको, और बुझाना मुश्किल जान
समझ आ गया अंग्रेजों को, मुक्त करो अब हिन्दुस्तान।।14।।

ऐसी महा शहादत को हम, सदियों रोज रखेंगे याद
और न होगा कोई तात्या, इस जैसे तात्या के बाद
भारत की आजाद हवा में, गाते हम तेरा गुणगान
जय जय तात्या टोपे जय जय, जय तेरा बलिदान महान।।15।।