कंचन सोनी/शिवपुरी। बाघ का भारी शरीर निर्जीव होकर गिर गया। खाण्डेराव बडी की फुर्ती से अपने घोेडे से उतरे और अपनी कमर से तेजधारी कटार निकाली और अंतिम प्रहार करते हुए बाघ के सीने में कई बार कर दिए। खाडेराव के प्राणलेवा प्रहारो से बाघ के प्राण भी निकल गए। विशाला अभी भी आधी मुर्छित अवस्था में जमीन पर पडी थी। शोभा अभी तक सिसकी हुई सी झूले पर बैठी थी,बाघ के मर जाने के बाद वह झूले से उतरी और अपनी प्रिय सहेली विशाला के पास पहुंची उसक वस्त्रो का सही करते हुए उसे होश में लाने का प्रयास करने लगी।
अन्य लडकिया भी दूर भाग गई थी वे भी विशाला के पास आ गई। विशाला और शोभा ने खाडेराव की और देखा। खाडेराव के ज्वलंत मुखमण्डल और सुगठित बलिष्ठ देह को देख कर दोनो चकित रह गई। तभी एक तेज स्वर उन्है सुनाई दिया शबाश खाडेराव,यह शब्द गजसिंह के थें। इन शब्दो को सुनने के बाद विशाला ओर शोभा की तंत्रा टूटी।
विशाला और शोभा ओर अन्य लडकियों ने अब समझा कि जस वीर नवयुवक ने उन्है प्राणदान दिया है उसका नाम खाडेराव हैं। विशाला और शोभा खाडेराव के नाम से सुपरचित थी। लेकिन देखा पहली बार था,जैसा सुना था उससे कही बडकर वीर निकले खाडेराव। जब भी महाराज अनूपसिंह और ठाकुर दलबीर सिंह आपस में चर्चा करते थे,तब वह खाडेराव और गजसिंह की चर्चा अवश्य करते थे।
ठाकुर दलबीर सिंह अपने पडौसी पंडित चतुरानन मिश्र से यह चर्चा करते रहते थे कि यादि महाराज अनूपसिंह अपने बेटे गजसिंह से विशाला के विवाह को तैयार होते है तो पंडित मिश्र की बेटी शोभा की शादी भी खाडेराव से करने की चर्चा भी की जाऐगी,जिससे दोनो प्रिय सखी एक साथ अपने ससुराल में रह सके। इस चर्चा से दोनो सखियां परिचित थी।
सहसा अपने अपने संभावित वरो को इस प्रकार एक अंतयत भयानक परिस्थिती में सामने पाकर दोनो किशोरिया रोमांचिंत हो उठी। वे बाघ वाली घटना व उसके आक्रमण को भूल गई थी। दोनो के मुख से बाघ के आक्रमण का भय गायब हो गया और लज्जा प्रभावी हो गई।
बाघ के मारे जाने का समाचार पूरे कस्बे में अग्नि की तरह फैल गया। सारा कस्बा इस अभूतपूर्व घटना को देखेने ठाकुर बलवीर सिंह के बाडे में उपस्थित हो गया। प्रत्येक दर्शक की आंखो में विस्मय के भाव भर गए थे। सभी लोग 17 वर्ष के बालक खाडेराव की इस दुर्लभ तलवार वाजी और वीरता की प्रंशसा करते हुए विभारे हो रहे थे।
इस समय महाराज अनूपसिंह बैराड में नही थे। दोनो राजकुमारो को वे बैराड छोड किसी आवश्यक काम से पुन:शिवपुरी लौट चुके थें।पंडित चतुरानन और ठाकुर बलवीर सिंह ने निश्चय किया कि अब दोनो कन्याओ के हाथ पीले होने का समय भी हो गया हैं,तत्काल महाराज अनूपसिंह से दोनो राजकुमार की शादी की चर्चा कर लेनी चाहिए।
पंडित मिश्र और ठाकुर साहब ने भी निश्चय कर लिया कि वे भटनावर और शिवपुरी जाकर विवाह संबध की बातचीत कर शादी को पक्की कर सके। खाडेराव रासो क्रमंश अगले अंक में। आगे जाऐगी राजकुमारो की बारात बैराड,शिवपुरी समाचार डॉट कॉम के शब्दो से पाठक भी कर सकेंगे भव्य बारात की मानसिंक यात्रा।
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