मानवता: अमीरी और गरीबी को भुलाकर युवाओं की टीम अपनी पॉकिट मनी से करती है अंत्येष्टि के सामान का खर्चा

बदरवास। शिवपुरी में मानवता नामक एक ग्रुप ने शहर के शमशान घाट को नया रूप देकर शिवपुरी से बाहर से आने वाले लोगों को शमशान घाट देखकर सोचने को मजबूर कर दिया है। शिवपुरी के शमशान घाट की सुंदरता और साफ सफाई के लिए मानवता ग्रुप हमेशा लोगों की जवान पर छाया रहता है। इसी की तर्ज पर अब निकल पड़े है बदरवास के युवाओं की एक टॉली। इस टोली का कोई नाम नहीं है। परंतु नगर में युवाओं की एक टोली अपने अनोखे काम के लिए जन चर्चाओं में बनी रहती है। इस अनाम टोली में शामिल युवा दुख की घड़ी में लोगों की मदद करने उनके घर पहुंचते हैं।  

अमीर हो या गरीब, मौत की खबर सुनकर परिवार का दुख दर्द बांटते हैं और श्मशान जाने से पूर्व अंत्येष्टि का सारा सामान अपनी जेब खर्च से जुटाते हैं। यही नहीं नेशनल हाईवे होने की वजह से अक्सर सडक़ हादसे होते रहते हैं। जिसमें इसी टोली की युवा आगे आते हैं और नि:स्वार्थ भाव से घायलों को अस्पताल पहुंचाने में मदद करते हैं। कई असहाय लोगों की स्वयं के व्यय पर अंत्येष्टि करा चुके हैं। परोपकार का यह सिलसिला लंबे समय से जारी है। सेवाभाव के इसी काम की वजह से यह युवाओं की नगर में अलग पहचान बन चुकी है। 

टोली के सदस्य दीपक शर्मा का कहना है कि 12 से 15 साथियों की टीम है। नगर में किसी भी घर में मौत की खबर लगने पर मदद के लिए पहुंचते हैं। परिवार में गमी का माहौल रहने से अंत्येष्टि के सामान की व्यवस्था करते हैं। यदि सम्पन्न परिवार है तो स्वेच्छा से राशि लौटाने पर राशि ले लेते हैं। वहीं जिन गरीब परिवारों में मृतक की अंत्येष्टि की व्यवस्था नहीं हो पाती वहां सारा खर्च स्वयं वहन करते हैं। ताकि दुख की घड़ी में आर्थिक संकट की वजह से अंत्येष्टि में कोई भी रुकावट न आए। टीम में दीपक शर्मा के अलावा कपिल परिहार, गोपाल बैरागी, सोनू बैरागी, अमरदीप शर्मा, पप्पी सोनी, सुभाष सेन, दीपक मित्तल, ललित शर्मा, गोविंद अवस्थी, मनीष बैरागी, आनंद दुबे आदि शामिल हैं। 

गरीब युवक की अंत्येष्टि से हुई पुण्य कार्य की शुरुआत 
जनपद पंचायत बदरवास में चपरासी के पद पदस्थ राधेश्याम का बेटा नगर में अखबार बांटता था। साल 1997-98 में वाहन की टक्कर से बेटे की मौत हो गई। दीपक शर्मा अपने साथियों के साथ संवेदना जताने घर पहुंचे तो माता-पिता लाश रखकर बिलख रहे थे। अंत्येष्टि में देरी की वजह जानी तो आर्थिक संकट का पता चला। युवाओं को इस बात का एहसास हुआ तभी से ठान लिया कि नगर में अब जो भी मौत होंगी, अंत्येष्टि अपनी जेब खर्च से जुटाएंगे।