भाव के बिना की गई धार्मिक क्रियाओं का कोई मूल्य नहीं : साध्वी आभा श्री

शिवपुरी। चाहे व्रत करो, सामायिक करो, मंदिर जाओं, संतो के दर्शन करो, दान करो, पुण्य करो लेकिन उस धार्मिंक क्रिया के पीछे यदि आपके भाव शुद्ध नहीं है तो ऐसी धार्मिक क्रियाओं का कोई मूल्य नहीं है। शुद्ध भावना से की गई धार्मिक क्रिया मोक्ष का कारण बनती है। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी तपचंद्रिका आभाश्री जी ने पोषद भवन में आयोजित धर्म सभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि किसी का बुरा करने मात्र से ही नहीं बल्कि किसी का बुरा करने का मन में विचार आने से ही पाप हो जाता है और मन में गलत विचार कर्मबंध का कारण बनता है। धर्मसभा में गुरूदेव सुमति प्रकाश जी महाराज साहव की सुशिष्या तपसिद्धेश्वरी विभाश्री जी महाराज साहव ने मांगलिक पाठ का श्रवर्ण किया। 

धर्मसभा में साध्वी आभाश्री जी ने जिन वाणी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि जिन वाणी श्रवण से जीवन सफल होता है। लेकिन हम पूरी जिंदगी जिन वाणी को सुनते है। परंतु सुनना न सुनना एक समान हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि भगवान महावीर के संदेश हमारी आत्मा तक नहीं जाते और उनके संदेश आत्मसात न करने से उसका कोई महत्व नहीं रहता। साध्वी जी ने सामायिक की व्याख्या करते हुए कहा कि सामायिक मन में समता धारण करने का नाम है।

सामायिक में व्यक्ति को राग द्वेष से मुक्त होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यदि हम राग से मुक्त न हो भी पाए तो चलेगा। लेकिन द्वेष से मुक्ति अत्यंत आवश्यक है। इसे स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि हम भले ही किसी का अच्छा न करे लेकिन उसका बुरा करने का विचार न करें। जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना ही धर्म है। 

तांदुल जीव की शास्त्र में वर्णित कथा सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि वह तांदुल जीव चावल के दाने के बराबर था और उसकी आयुष्य महज 48 मिनिट की थी। लेकिन वह समुद्र में मगर की आंख के पास बैठा हुआ था और देख रहा था कि मगर के मुंह खोलने से उसके मुंह में मछलियां बाहर निकल रही थी और उनका जीवन बच रहा था। यह देखकर वह सोच रहा था कि यह मगर कितना मूर्ख है। यदि इसके स्थान पर मैं होता तो किसी भी मछली को बचने नहीं देता। यहीं चिंतन कर वह मृत्यु को प्राप्त हो गया और मरने के बाद वह तांदुल जीव सातवे नर्क में गया। साध्वी जी ने  कहा कि इसलिए हमें भावना शुद्ध रखनी चाहिए।