चारों धाम की यात्रा: अपनी अंधी मां को कावंर में बैठाकर 3 किमी प्रतिदिन चलता है

शिवपुरी। श्रवण कुमार हिन्दू धर्म के इतिहास में एक आदर्श पुत्र की पहचान है। इसी आदर्श पुत्र के आचरण पर चलते हुए कैलाश गिरी अपनी अंधी मां को कावर से लेकर 21 साल पहले घर से निकल चुका था। उसकी यात्रा का पडाव आज शिवपुरी जिला रहा। बताया गया है कि अपनी मां के संकल्प को पूर्ण कराने के लिए अपना जीवन,अपनी जीवनदायिनी को समर्पित कर दिया।  

जबलपुर के हिनोता गांव के रहने वाले कैलाश गिरी भी अपनी अंधी मां को चारों धाम की यात्रा का पडाव शिवपुरी जिले के गोवर्धन गांव पहुंचे। चारों धाम के लिए इस अंधी मां का बेटा 21 वर्ष पहले सन 96 में घर से निकला था। अभी उसे अपने घर वापस पहुंचने के लिए 1 वर्ष और लग सकता है। 

कांवर की तरह एक दो पलकिया बनाकर एक में अपनी 91 वर्षीय बूढी मां को तथा दूसरे पलडे में आवश्यक समान लेकर कैलाश गिरी 2 फरवरी 96 को अपने गांव से अपनी यात्रा के लिए निकला था। कैलाश की मां की आखें नही थी और उसके पिता का देहांत हो गया, जब कैलाश छोटा था। 

अपनी यात्रा के विषय में कैलाश ने प्रेस को बताया कि जब मैं 17 साल का था तब एक पेड से गिर कर घायल हो गया था। तब मेरी मां ने यह संकल्प लिया की थी कि जब मेरा लाल पूर्ण रूप से स्वस्थय हो जाऐगा तो चारो धाम की यात्रा पैदल करूगीं। 

अपनी मां की इसी सकंल्प को पूर्ण कराने के लिए श्रवण कुमार की तरह अपनी अंधी मां को पालकी में बैठाकर यात्रा पूरी करा रहा है। कैलाश गिरी की यात्रा पूर्ण हो चुकी है अब अपने घर लौटना ही शेष है। कैलाश ने बताया कि प्रत्येक दिन 3 के लगभग चलता है और किसी गांव में अपना डेरा डाल लेता है। 

नित्य नियम और खाना-पीना बनाकर अपनी अंधी मां को खिलाकर चलता है। कैलाश ने बताया कि इस यात्रा दौरान भारत के सभी स्थानो पर उसका सहयोग किया है। कैलाश जब अपनी मां को लकर गोवर्धन गांव पहुंचा और उसने अपना डेरा वहां डाला तो गांव का प्रत्येक आदमी उसने देखने पहुंचा।