फ्रेंडशिप डे: फेसबुक ने मिलाया 36 वर्ष पहले बिछडे दोस्तो को

शिवपुरी। सात अगस्त 2016 फ्रेंडशिप डे पर बालशिक्षा निकेतन स्कूल का वातावरण उस समय भावनाओं के रंगों से सराबोर हो उठा जब इस स्कूल में पढ़े 20 विद्यार्थी 36 साल बाद एक साथ मिले। इनमें से कुछ डॉक्टर, पत्रकार, व्यापारी, नेता तो कुछ पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। 36 साल बाद सभी का हुलिया बदल गया था। 

कोई दुबले से मोटा हो गया था, तो किसी के सिर के बाल गायब थे, लेकिन परिवर्तन की बेला में जज्बा वही पुराना था। यही कारण था कि एक दूसरे से मिलने की चाहत में कोई दिल्ली, कोई मु बई, कोई देहरादून तो कोई इंदौर से आया था। अपने पुराने स्कूल बालशिक्षा निकेतन में जब आत्मीयता से भरपूर दोस्त मिले तो सबने एक दूसरे के साथ बहुत मस्ती की और गले मिलकर  पुराने दिनों को याद किया। जिन्हें यादकर आंखें भर आई। 

जब दोस्ती की मिसाल बने ये साथी स्कूल की वयोवृद्ध प्रिंसिपल शमा छिब्बर से मिले तो उन्होंने सभी को गले से लगा लिया और उनकी आंखों से अविरल अश्रुधारा आनंदातिरेक में बहने लगी। अपने पुराने दोस्तों से मिलने का यह जुनून राधिका अग्रवाल (पुराना नाम स्टीवन गुप्ता) के मन में आया। उन्होंने सोचा क्यों न फेसबुक के माध्यम से वह अपने पुराने मित्रों को तलाश करें और बचपन की अपनी यादों को ताजा करें। दो साल पहले उनके दिमाग में यह याल आया और उन्होंने दोस्तों की तलाश शुरू कर दी। 

राधिका बताती है कि सन् 1980 में उन्होंने बालशिक्षा निकेतन में कक्षा 8 वीं की परीक्षा पास की थी और इसके बाद उन सहित उनके साथी आगे की शिक्षा लेने के लिए शिवपुरी में अन्य स्कूल, ग्वालियर, इंदौर या भोपाल शिप्ट हो गए थे।  शिक्षा पूर्ण करने के बाद सबका अपना-अपना मुकाम बन चुका था, लेकिन मन में रह रहकर अक्सर बचपन की यादें आ जाती थी और उससे मन तथा आत्मा रोमांचित हो उठती थी। अंतत: उनकी मेहनत रंग लाई। 

नई दिल्ली में राजेश चावला मिले तो जितेन्द्र खेड़ा देहरादून में नजर आए। इसी तरह विनीता गर्ग, राहुल मनोलकर, अजय चानना, राजीव चानना, राजीव ढींगरा, राजीव नयन, रवि माटा, सभी मध्य प्रदेश में मिले। कुछ समय बाद संजीव जैन जो इस समय लुधियाना में रहते हैं वह भी मिल गए। नवीन श्रीवास्तव, विनोद धाकड़ और सुबोध खंडालकर को भी खोज लिया गया। बस फिर क्या था एक साल पहले शिवपुरी स्कूल में मिलने का प्लान बनाया और जिनके तार दिल से जुड़े होते हैं वह सारी दूरियां तय कर पहुंच ही जाते हैं। 

सभी जब स्कूल पहुंचे तो पहले एक दूसरे को आश्र्चय से देखा कितना परिवर्तन आ गया, लेकिन दिल वहीं पुराना था और उसमें अपने दोस्तों के लिए वहीं पुरानी धडक़न थी। स्कूल के बच्चे भी हैरान थे कि आखिर ये कौन है। सभी प्रिंसिपल रूम की ओर बढ़े, लेकिन प्रिंसिपल के स्थान पर किसी युवा महिला को उन्होंने देखा। पता चला कि वह प्रिंसिपल मेडम की बहू हैं और प्रिंसिपल मैम शमा छिब्बर घर पर आराम कर रहीं है। सभी दोस्त उनसे मिलने के लिए इतने आतुर थे कि घर पहुंच गए। 

फिर जब वह पल आया तो उस क्षण का आनंद देखने लायक था। मैम छिब्बर एक-एक बच्चे को पहचानती हुई नजर आई और सभी ने जब आर्शीवाद लेने के लिए उनके पैर छुए तो उन्होंने सबको गले से लगा लिया। फिर ढेरों बातें हुई। वयोवृद्ध प्रिंसिपल ने भरोसा दिलाया कि जो परंपरा आपने शुरू की है वह हर साल फ्रेंडशिप डे पर दोहराई जाएगी। 
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