भगवान परशुराम कथा: क्षत्रिय औार ब्राह्मण कोई जाति नही

शिवपुरी। कल से मानस भवन में प्रारंभ हुई भगवान परशुराम कथा के दूसरे दिन कथा व्यास पं. रमेश शर्मा द्वारा क्षत्रिय प्रसंग की एक कथा सुनाई जिसमें आचार्यश्री ने बताया कि क्षत्रिय और ब्राह्मण कोई जाति नहीं है, इसका निर्धारण कर्मों के आधार पर किया गया है।

भगवान परशुराम ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया, लेकिन उनके कर्म क्षत्रियों के समान थे और उनकी बुद्धि ब्राह्मण के समाज थी इस आधार पर उन्हें क्षत्रिय और ब्राह्मण की संज्ञा दी गई।

आचार्यश्री ने वहां मौजूद श्रोताओं को क्षत्रिय का अर्थ बताते हुए कहा कि  क्षत्रिय का मतलब एक क्षत्र की रक्षा करने वाला है। क्षत्रिय अपने क्षत्र की सुरक्षा के लिए जीवन अर्पण कर देता है। ब्राह्मण वह है जो क्षत्रपों को सत्य का मार्ग दिखाए।

आज हमारे समाज में जाति और वर्णों के आधार पर भेदभाव किया जाता है जो हमारे शास्त्रों और वेदों निषेध बताया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि भगवान बाल्मीक ने रामायण की रचना की जिसे हर घर में पूजा जाता है।

 जबकि वह निम्र कुल से थे, लेकिन उनके कर्म के आधार पर उन्हें भगवान की संज्ञा दी गई, लेकिन बाल्मीक समाज को हम हैह दृष्टि से देखते हैं। भ्रांतियां हैं कि भगवान परशुराम क्षत्रियों के शत्रु थे, लेकिन उन भ्रांतियों से पर्दा उठाते हुए आचार्यश्री ने बताया कि परशुराम भगवान विष्णु के छठवे अवतार थ।

 और उनका जन्म उन आतातायी क्षत्रपों के विनाश के लिए हुआ था और उन्होंने 21 बार उन आतातायी राजाओं का संहार कर पृथ्वी को दुष्ट राजाओं से विहीन कर दिया है। कथा के अंत में हैहय वंश की उत्पत्ति का भी प्रसंग वर्णित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रमोद भार्गव ने किया।