सतेन्द्र उपाध्याय@दो टूक। बैराड नगर पंचायत चुनाव अब समाप्त हो गया है। प्रिय भाइयों अब खाने पीने का इंन्तजाम खुद कर ले। चुनाव में बटोना को लेकर फलने-फूलने का दौर अब पूरी तरह थम चुका है। जो प्रत्याशी आपके दर्द को अपना दर्द कहते थे। वे अब खुद अपने दर्द से बैचेन हो रहे है।
बैराड में जिस तरह से मतदाताओं को प्रवोलित करनें के लिए धन की बरसात की गई थी। उससे लोक्तन्त्र की अवधारणा को भारी ठोस पहुची है। बिकाउ मतदाता कैसे अपने जन प्रतिनिधिओं से हिसाब ले पायेगे विशेष सूत्रों की मानों तो अध्यक्ष पद की बात तो छोडिए पार्षद पद के लिए खुद उम्मीदवारों ने मतदाताओं के वोट हासिल करने के लिए पाॅच-पाॅच हजार रूपये खर्च किये। और इस रकम की बडी राशि वाटों के ठेकेदारों की तिजोरी तक पहुची है। दलालों के लिए चुनाव साल भर की कमाई का माध्यम बन गया है।
धन के अलावा जम कर शराब पिलाई गई है और जमकर तमाम तरह की सुविधाऐं विकाउ मतदाताओं नगर पंचायत चुनावों में इतना पैसे का अपब्यय कभी देखने को नही मिला। ऐसा लगा कि प्रत्यासियों को मतदाताओं पर भरोसा नही बल्कि अपने धन बन अधिक भरोसा है। भरोसा हो भी क्यों नही मतदाता का एक वर्ग का आचरण तो इतना सर्वनाक रहा कि चुनाव लड रहे दोनों प्रत्यासियों से पैसे लेने में न तो गुरेज किया और न ही संकोच बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह पनपे वाटों के ठेकेदारों ने एक-एक हजार वोंट की रकम दोनों प्रत्यासियों से वसूली और उनमें से सिर्फ कुछ लोगों से ही धन बल के माध्यम से उपकृत किया।
एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर यह तक बता दिया। कि हमारी पार्टी का चुनावी खर्चा एक खोखा पर पहुचा था। विरोधी उम्मीदवारों ने कितने खर्च किये हमे नही मालूम दुर्भाग्य पूर्ण बात यह रही कि पहले चुनावी भ्रष्टाचार का सहयोग उम्मीदवारों और उनके परिजनांे तक सीमित रहता था। और पार्टी इसमें संलिप्त नही रहती थी। लेकिन अब पार्टी स्तर पर इसका मेप तैयार किया गया। चुनाव जीतने के लिए जितने भी और गैर जरूरी जायज और नाजायज हथखण्डों का इस्तेमाल है। वह उन्होने किया। लेकिन आज मतदाताओें ने फैसलाकर दूध दूध पानी का पानी कर दिया है। लेकिन मतोें के ठेकेदारों में मत न मिलनें पर हडकम्प की स्थिति मच गयी है।
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