उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। सिंधिया के सपूतों को तो जितने अवार्ड दिए जाएं कम हैं। कभी कभी तो मन करता है हर एकादशी और पूर्णिमा को इनका सार्वजनिक सम्मान किया जाना चाहिए। हर चौराहे पर इनका पुतला लगाया जाना चाहिए और स्कूल आते जाते बच्चों को समझाना चाहिए कि बेटा कुछ भी बन जाना लेकिन ऐसा नेता मत बनना।
जी हां, मैं यहां पूरी जिल्लत के साथ उन नेताओं को संबोधित करना चाहता हूं जो शिवपुरी के मेडीकल कॉलेज मामलेे में अब गुर्रा रहे हैं। कोई लम्बी कहानी नहीं, केवल इतना लिखना पर्याप्त होगा कि मेडीकल कॉलेज का मामला कोई एक सप्ताह पुराना है। मप्र शासन ने केन्द्र को प्रस्ताव भेज दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिनरात एक कर दिए शिवपुरी का कॉलेज बचाने के लिए। सिंधिया एक प्रकार से समझौते की स्थिति में आ गए। कांग्रेस विधायक दल को सीएम से मिलने भेजा, वहां से सकारात्मक जवाब भी आ गया।
अब जब सांप अधमरा हो गया, लाठी भी टूटने को है तब सिंधिया के कुछ सूपत महाराणा प्रताप का नया एडीशन बनकर शिवपुरी हित में सामने आ गए हैं। एक प्रेसनोट जारी किया है कि यदि कॉलेज शिवपुरी से शिफ्ट हुआ तो बड़ा जन आंदोलन होगा। सवाल यह उठता है कि पिछले 4 दिनों से क्या सोए हुए थे। जिस दिन मप्र शासन ने प्रस्ताव भेजा उस दिन आंदोलन याद नहीं आया। सारे के सारे वीर दुबक गए। होना तो यह चाहिए था कि उसी दिन शिवपुरी का बाजार बंद कर दिया जाता। नागरिकों की आपात मीटिंग बुलाई जाती और आंदोलन की रणनीति बनाते। भोपाल से दिल्ली तक सबको जता देते कि विकास के मुद्दे पर पूरी की पूरी शिवपुरी एक है, जनता तैयार थी लेकिन नेतागण सर्दी में बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। सिंधिया को अकेला छोड़ दिया जूझने के लिए। अब जब समाधान दिखाई देने लगा तो आ गए सीना फुलाए माधवचौक चौराहे पर आंदोलन की धमकियां देने। प्रेसनोट जारी कर दिए, कटिंग काट लेंगे फिर दिखाएंगे सबको।
प्रिय, श्रीमंत सिंधिया, जब तक ऐसे माटी के शेर आपकी सेना में रहेंगे हालात और ज्यादा बदतर होते जाएंगे। संभलिए, संभालिए, अलार्मिंग सिचुएशन है, अब नहीं संभाला तो कभी संभल नही पाएगा।
लेखक भोपाल समाचार के संपादक हैं।
