प्यासे कंठ, रीते घड़े, गायब होती सडकें और मि.बंटाधार बढा रहे है भाजपा की मुसीबतें

चुनावी चर्चा@ललित मुदगल। शिवपुरी नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव में अब सरगर्मिया तेज हो गई है वोटिंग वाले दिन की गिनती उल्टी शुरू हो गई है। इस चुनाव को जीतने भाजपा कोई कसर नही छोड रही है, लेकिन शिवपुरी वासियो के प्यासे कंठ, रीते घडे, उड़ती धूल और भाजपा के मि. बंटाधार भाजपा के लिए मुसीबते बढा रहे है।

शिवपुरी की पेयजल की समस्या ने पार्षद से लेकर लोकसभा के चुनाव करा दिए है। चुनाव होते गए है जनता वादे पीते गई है, और भाजपा को चुनाव में विजय श्री वरण करते गई है, परन्तु कंठ अभी प्यासे के प्यासे ही है, और जनता के घडे रीते ही धरे है।

शिवपुरी की पेयजल की समस्या तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी भी जानते है और वह भी जब वे संघ के आम स्वयंसेवक हुआ करते थे परन्तु आज वे इस देश के पीएम हैं और हमारी पेयजल समस्या जस के तस है।

फिर जनचर्चा में है कि प्सासे कंठो और उडती धूल, गायब हो गई सडकें, फिर भी भाजपा किस मुंह से वोट मांग रही है। जहां सड़कें खुदी हैं वहां के नागरिक आर्शीवाद नही श्राप दे रहै है, उनके फेफडे चलते फिरते धूल के गोदाम हो गए है, और उनके पास ही जाकर भाजपा कैसे वोट मांग रही है। यह जनचर्चा शहर में हो रही है।

राजे ने भी इस बार चुनावो में अपनी चप्पले तुडवा ली है और पिछले बार भी चुनावों में भी उन्होने ही भाजपा के प्रत्याशी की जमानत ली थी अब वे पिछले कार्यकाल की बात नही करना चाहती है परन्तु राजे से जनमानस यह कह रहा है कि सिर्फ अपने शिवपुरीवासियो के इस दर्द के बारे में सुना है, और शहर के जनमानस ने इस दर्द को पिछले पांच साल से सहा है, कैसे भूल जाए इस दर्द को। भाजपा के मि.बंटाधार द्वारा दिए गए दर्द को जनता भूल नही पा रही है और इस चुनाव में यह दर्द भाजपा को परेशान कर रहा है।

एक टिकिट चार राठौर, मिला एक को, पेट में दर्द तीन को अवश्य हुआ होगा।  एक का दर्द तो टोंटी के रूप मेंं दिख गया और बाकी दो का नही दिख रहा है, उनका अंदर ही अंदर भाजपा को परेशान कर रहा है और एक दर्द उनका भी है जिनका टिकिट फायनल होकर भी कट गया उस समाज ने विधिवत प्रेस नोट जारी कर खुला ऐलान कर दिया है कि हमारे समाज की उपेक्षा भाजपा ने की है हमारा फटा वोट भी भाजपा को नही जाऐगा।

कुल मिलाकर इस चुनाव में भाजपा की मुसीबते कम होने का नाम नही ले रही है। समस्या के ढेर पर बैठे इस शहर में मंथन को दौर चालू है कि वादों पर फिर विशवास कर लिया जाए और फिर अगले आने वाले 5 साल बाद भी हालत यही बने रहेगें, और कह दिया जाऐगा की पिछले कार्यकाल की बात नही करना है। कम से कम भाजपा में पिछले पांच साल के मि.बंटाधार के कार्यकाल की कोई तो जबाबदारी लेता, कोई तो क्षमायाचना करता, इस बार जनता भूलते नही पर पराओ को मिटाते दिख रही है, अपने राम का तो यही कहना है कि इस बार जनमानस कही ऐसा कर ना गुजरे वोट तो वोट पिछले दान का ब्याज भी मिल जाए तो बडी बात होगी।