होने लगी चर्चा- कि अब क्या रंग लाएगी गोटू की राजनीति...!

शिवपुरी। बीते पांच साल पहले जिपं अध्यक्ष बनने वाले जितेन्द्र जैन गोटू की उस समय सिर्फ एक ही पहचान थी कि वह वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन के अनुज थे। राजनीति से उनका इतना ही सरोकार था कि वह अपने भाई के चुनावी प्रबंधन की कमान संभालते थे।

राजनैतिक रूझान वाले जितेन्द्र को समझ नहीं आ रहा था कि वह प्रत्यक्ष राजनीति से कैसे अपने आप को जोड़ें और बड़ी सूझबूझ के साथ पहले वह जिपं सदस्य का गैर दलीय आधार पर होने वाला चुनाव लड़े और चुनाव में उन्होंने मनी पॉवर की बदौलत पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी को धूल चटाई और इसी गुण की बदौलत वह भाजपा की ओर से न केवल जिपं अध्यक्ष का टिकट लेने में सफल रहे, बल्कि गोटियां इस चतुराई से फेंकी।

कि उनकी जीत में कहीं से कहीं तक कोई शंका नहीं रही और अध्यक्षीय चुनाव में श्री जैन ने किसी साधारण उ मीदवार को नहीं, बल्कि वीरेन्द्र रघुवंशी की पत्नी विभा रघुवंशी को पराजित कर अपने राजनैतिक कौशल का लोहा मनवा लिया। अब जबकि उनका कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि अपनी राजनीति को वह अब क्या नया मोड़ देंगे या फिर घर बैठ जाएंगे। लेकिन जिस तरह की फिदरत और उनकी प्रकृति है उससे लगता है कि वह आसानी से हथियार नहीं डालेंगे। उनकी नई पारी का अब सभी को इंतजार है।

भाजपा की राजनीति में पांच साल पहले दो चेहरे अचानक उभरकर सामने आए। एक थी नपाध्यक्ष श्रीमती रिशिका अष्ठाना जिन्हें उनके ससुर स्व. सुशील बहादुर अष्ठाना की छवि का लाभ मिला। जिसके कारण वह भाजपा की ओर से नपाध्यक्ष का टिकट लेने में सफल रहीं। फिर उन्हें जिताने में यशोधरा राजे सिंधिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी। श्रीमती अष्ठाना को अपनी ससुराल की पारिवारिक पृष्ठभूमि का लाभ मिला। वहीं दूसरा चेहरा जितेन्द्र जैन गोटू का था। श्री जैन को अपने भाई देवेन्द्र जैन का भाजपा की राजनीति में होने का किंचित लाभ मिला, लेकिन उनके राजनैतिक उत्थान में मु य भूमिका मनी पॉवर की रही।

इन पांच सालों में रिशिका अष्ठाना अपने राजनैतिक बजूद को इसलिए मजबूती से नहीं बचा पाईं, क्योंकि उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक काम करने का मौका नहीं मिला और उनके हर निर्णय में पर्दे के पीछे उनके पति भाजपा नेता अनुराग अष्ठाना की भूमिका रही। जबकि जितेन्द्र जैन ने अपनी राजनैतिक पारी का उपयोग राजनीति और कूटनीति की बारीकियों को सीखने में किया। उनका नैसर्गिक राजनैतिक गुण भी काम आया और अनेक अवसरों पर श्री जैन अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए नजर आए। कई मौकों पर तो उन्होंने अपने भाई देवेन्द्र जैन तक को साइड में कर दिया। कई मौके ऐसे आए जब उन्होंने अफसरशाही के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला।

एक लोक कल्याण शिविर में तो उन्होंने मंच से ही तत्कालीन कलेक्टर और तत्कालीन सीईओ को जमकर लताड़ा। जिसकी मीडिया में व्यापक रूप से चर्चा हुई। एक अधिकारी के मुंह काला करने के एपीसोड में पर्दे के पीछे उनकी मु य भूमिका रही। उनके इशारे पर कई जिपं सदस्य उनके मकसद और राजनैतिक मंतव्य को साधते हुए नजर आए। दिनारा क्षेत्र से निर्वाचित जिपं सदस्य सतीश फौजी की हर रचनात्मक और विध्वंसात्मक मुहिम के पीछे जितेन्द्र जैन की भूमिका जगजाहिर रही।

सत्ताधारी दल के जिपं अध्यक्ष होने के बाद भी जिला पंचायत के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकायुक्त से करने में उन्होंने न तो कोई परहेज और न ही कोई संकोच किया। हालांकि इससे भाजपा की छींछालेदर भी हुई और उन पर अपने ही शासन और प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलने का आरोप लगा। यशोधरा विरोधी खेमे की कमान संभालने के लिए नरोत्तम मिश्रा से लेकर अनूप मिश्रा, प्रभात झा और नरेन्द्र सिंह तोमर को साधने में जितेन्द्र जैन ने कोई कसर नहीं छोड़ी और सरकारी धन के अलावा अपनी गांठ के धन को बेतहाशा खर्च किया। पहले ढाई साल श्री जैन अपनी छवि के प्रति अधिक सचेत नहीं रहे।

इस कारण आरोपों के घेरे में वे गाए-बगाए आते रहे। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी छवि को चमकाने का प्रयास किया और यह संदेश देने की कोशिश की कि आज की भ्रष्ट राजनीति में उन जैसे राजनेता विरले हैं। हालांकि इसमें वह कितने सफल हुए यह सवाल अभी अनुत्तरित है और उनके पद से हटने के बाद ही इसका मूल्यांकन होगा। श्री जैन की इसलिए सराहना की जानी चाहिए कि जिला पंचायत जैसे गरिमाहीन और अधिक महत्वपूर्ण नहीं माने जाने वाले पद की अहमियत उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली से स्थापित की।

उनके पूर्व रामसिंह यादव से लेकर बसंती लोधी और जूली आदिवासी जिपं अध्यक्ष रहीं। लेकिन इनकी भूमिका सिर्फ शो पीस तक सीमित रही और न ये अपना दबदबा कायम कर पाए और न ही अफसरशाही पर लगाम लगा पाए। श्री जैन का दावा है कि उनके कार्यकाल में कई योजनाओं में उल्लेखनीय प्रगति हुई है और प्रदेश और राष्ट्र स्तरीय हर बैठक में उन्हें भाग लेने का उनके व्यक्तित्व के आधार पर मौका मिलता रहा है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि उनके जिला पंचायत अध्यक्ष होने के बाद भी कोलारस के विधायक पद के चुनाव में उनके भाई देवेन्द्र जैन की बुरी तरह पराजय हुई।

विवादों के केन्द्र बिंदू में भी रहे हैं जिपं अध्यक्ष जैन
जिपं अध्यक्ष जितेन्द्र जैन न केवल खुद विवादों के घेरे में रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपने भाई देवेन्द्र जैन के समक्ष भी एकाध अवसरों पर मुश्किलें खड़ी की हैं। उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा अद य है और महल विरोधी खेमे की कमान संभालने के लिए उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों से न केवल दूरियां बनाईं, बल्कि उनके खिलाफ मोर्चा भी खोला। यह बात अलग है कि शायद ही इस मुहिम में जैन बंधुओं को सफलता हासिल हुई। इसका मु य कारण यह भी रहा कि जितेन्द्र जैन एकला चलो की राजनीति करते रहे और अपने साथ लोगों को जोड़ पाने में सफल नहीं हुए। जिलाध्यक्ष रणवीर रावत के खिलाफ उनकी मुहिम अंजाम तक नहीं पहुंच पाई।

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