कांग्रेेस से संभावित ज्योतिरादित्य तो भाजपा से अभी भी उम्मीदवार लापता

शिवपुरी। शिवपुरी गुना संसदीय क्षेत्र में मतदान 17 अप्रैल को होगा। इस आशय की घोषणा चुनाव आयोग ने आज दिल्ली में आयोजित पत्रकारवार्ता में की। मप्र में तीन चरणों 10, 17 और 24 अप्रैल को चुनाव होंगे।

कांग्रेस की ओर से यह लगभग तय लग रहा है कि केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ेंगे। आम आदमी पार्टी ने भी शैलेन्द्र सिंह कुशवाह की उम्मीदवार घोषित कर दी है, लेकिन भाजपा की उम्मीदवार की तलाश जारी है।

हालांकि उमा भारती के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं की ईच्छा है कि श्री सिंधिया के खिलाफ पूर्व सांसद और विधायक जयभान सिंह पवैया चुनाव लड़ें, लेकिन सूत्र बताते हैं कि श्री पवैया ने चुनाव लडऩे के लिए भाजपा आला कमान के समक्ष शर्तें रख दी हैं। श्री पवैया के अलावा जिन-जिन के नाम उम्मीदवारों की दौड़ में शामिल हैं उनकी उम्मीदवारी अधिक वजनदार नहीं मानी जा रही और भाजपा के बड़े नेता श्री सिंधिया के खिलाफ चुनाव लडऩे के प्रति मोदी लहर के बावजूद भी इच्छुक नहीं हैं।

शिवपुरी गुना संसदीय क्षेत्र में मतदान 5 वे चरण में अर्थात् 17 अप्रैल को होगा। कुल मिलाकर मतदान में डेढ़ माह से भी कम समय बांकी है और यहां के कांग्रेस के संभावित उ मीदवार और लगातार तीन बार से चुनाव जीत रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रचार एक तरह से शुरू भी हो चुका है। पिछले दिनों श्री सिंधिया ने अपने संसदीय क्षेत्र के ताबड़तोड़ दौरे किए और इस दौरान वह शिवपुरी में मेडीकल कॉलेज की घोषणा कराने में सफल रहे। वहीं वह ग्वालियर पुणे और चण्डीगढ़ इंदौर ट्रेन की सौगात भी संसदीय क्षेत्र के लिए लाए। इस निर्वाचन क्षेत्र में सिंधिया परिवार का प्रभाव व्यापक है और श्री सिंधिया ने स्वयं भी अपना जनाधार बढ़ाया है।

अपने पिता स्व. माधवराव सिंधिया के अधूरे सपनों को पूरा करने में वह लगातार 12 साल से जुटे हुए हैं। निसंदेह स्व. माधवराव सिंधिया ने यहां के लिए गुना-इटावा रेल लाईन की सौगात दी है, लेकिन यह भी सच है कि जब श्री सिंधिया इस संसदीय क्षेत्र में सक्रिय हुए उस दौरान मात्र दो ट्रेनें ही चला करती थीं। जिनकी सं या अब शिवपुरी में बढ़कर डेढ़ दर्जन से अधिक हो गई है। इसके अलावा हर क्षेत्र में श्री सिंधिया ने विकास के कारण अपनी खुद की पहचान बनाई है।

यहीं कारण रहा कि प्रदेश में शिवराज लहर के बावजूद संसदीय क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 5 सीटें जीतने में सफल रही और कहा जा सकता है कि इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी लहर के बावजूद काफी आरामदायक स्थिति में हैं। इस संसदीय क्षेत्र में मोदी और सिंधिया फेक्टर में से कौन प्रभावी रहेगा यह देखना दिलचस्प है, लेकिन फिलहाल तो सिंधिया फेक्टर के प्रभावी होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

इसका एक कारण यह भी है कि भाजपा सिंधिया के प्रभाव की बदौलत इस संसदीय क्षेत्र में अधिक गंभीर नजर नहीं आ रही। भाजपा के पास कोई मजबूत स्थानीय प्रत्याशी है नहीं और पार्टी के हैबीवेट लीडर श्री सिंधिया से मुकाबला करने में कतई इच्छुक नहीं हैं। पहले कार्यकर्ताओं ने साध्वी उमा भारती का नाम सुझाया, लेकिन साध्वी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। भाजपा आला कमान ने उन्हें उत्तराखण्ड का प्रभारी बनाकर अटकलों पर विराम लगा दिया। इसके बाद जयभान सिंह पवैया के दौरे शुरू हुए और उनके ताबड़तोड़ दौरों से ऐसा लगा कि शायद पार्टी उन्हें यहां से मैदान में उतार सकती है।

भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी उनके पक्ष में राय व्यक्त की, लेकिन श्री पवैया ने मीडिया के सामने स्पष्ट किया कि जब तक पार्टी के उ मीदवार को स्वतंत्रता नहीं मिलेगी और भाजपा के बड़े नेताओं का उस पर बरदहस्त नहीं होगा तब तक सिंधिया को हराना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि जब सन् 98 में वह ङ्क्षसधिया के खिलाफ चुनाव लड़े थे तो उस समय स्व. कुशाभाऊ ठाकरे का बरदहस्त उन पर था और उन्हें मुद्दे चुनने की स्वतंत्रता थी तथा भाजपा के महल समर्थक नेताओं को उस समय दरकिनार कर दिया था। यही कारण था कि उन्होंने सामंतवाद के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ी थी।

साफ संदेश है कि श्री पवैया सशर्त उम्मीदवारी के इच्छुक हैं। हालांकि वह कहते हैं कि न तो उन्होंने उ मीदवारी की इच्छा दर्शायी है और न ही पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाने के विषय में विचार व्यक्त किया है। भाजपा की ओर से अनूप मिश्रा, हरी सिंह यादव, राव देशराज सिंह और केएल अग्रवाल के नाम अवश्य चर्चाओं में हैं, लेकिन वह श्री सिंधिया को चुनौती दे पाएंगे यह सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। आप उ मीदवार शैलेन्द्र कुशवाह स्थानीय नहीं है और यहां उनका प्रभाव भी नहीं है। ऐसी स्थिति में उनकी उम्मीदवारी भी महज औपचारिक मानी जा रही है।