गिरफ्तार नही कर सके तॉत्या को अंग्रेजो के 12 सेनापति

शिवपुरी। तात्या भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। 1857 के महायुद्ध में उनकी विलक्षण योजनाकार व प्रखर सेनापति की भूमिका रही। क्रांति की योजना के  निर्माण, क्रांतिकारी सेनाओं के संगठन और उसके कार्य को शक्ति व बुद्धिमता से संचालित किया।

इस अमर बलिदानी नायक तॉत्या टोपे ने एक नये युद्व कला गोरिल्ला युद्व का अविष्कार किया। इसी गोरिल्ला युद्व नीति के कारण इस महानायक ने अंग्रेजों की सशक्त सेना सहित अंग्रेजो के 12 सेनापतियों को भारत की भूमि नपा दी।

इस वीर नायक का जन्म एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में 6 जनवरी 1814 को नासिक जिले के येवला नामक स्थान पर हुआ। नामकरण संस्कार पर नाम रखा गया  रामचंद्र राव। बचपन में इन्हें प्यार से तात्या कहा जाता था। पिता पाण्डूरंग भट्ट पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहॉं पूना दरबार में धर्मगुरू थे। निर्वासित पेशवा विठृर आये तब इनका परिवार भी आया।

यहीं तात्या का मिलन नाना साहब व मनु (लक्ष्मीबाई) से हुआ। ब्राह्मण होने पर शास्त्र पठन का जोर डाला गया किंतु कब यह वेदपाठी ब्राह्मण शास्त्रों से शस्त्र का अनुयायी वन रणक्षेत्र का दीवाना बन गया पता ही न चला। यह शस्त्र शिक्षा पेशवा बाजीराव के मार्गदर्शन में हुई। पेशवा ने तात्या की अद्भुत युद्व कौशल प्रतिभा से प्रसन्न होकर उन्हे रत्न जडि़त टोपी पहना दी और रामचंद्र तात्या टोपे कहे जाने लगे।

तात्या टोपे उम्र में नाना साहब व लक्ष्मी बाई से बड़े होने के कारण उनके मार्गदर्शक भी रहे और तॉंत्या गुरू कहलाने लगे। बाल्यकाल में गंगा के तट पर बैठकर प्राय: तीनों योद्धा भारत के भविष्य की कल्पना किया करते थे। स्वराज्य के उदघोष की अभिव्यक्ति डलहौजी की विलय नीति के साथ शुरू हुई। नाना साहब का राज्य हड़पना अंग्रेजी सत्ता के पतन का कारण बना तभी तात्या ने क्रांति योजना को आकार देने के लिए देश भर का दौरा किया।

नाना साहब पेशवा, अजीमुल्ला खॉं, बहादुरषाह जफर के विचार विमर्श  से क्रांति की तिथि 31 मई 1857  तय की गयी। रोटी और कमल के प्रतीक चिन्हों द्वारा क्रांति का संदेश प्रसारित किया गया। कानपुर में 28 जून को दरबार लगा जिसमें सर्वस मति से तॉंत्याटोपे को भारतीय क्रांतिकारी सेना के सेनापति चुना गया।

तात्या की योजना थी ग्वालियर को जीतकर मराठों का संबंध पूना से जोड़, फिर देश में सर्वत्र स्वतंत्रता  के भाव का जागरण करना। तभी झांसी की रानी का सहायता संदेश प्राप्त हुआ। वे झांसी चल दिये। लेकिन रानी व तात्या को गद्दारी के कारण कालपी पहुॅंचना पड़ा। तात्या, राव साहब, बांदा नबाब, अलीबहादुर द्वितीय, राजा ब तबली व राजा मर्दनसिंह, सभी एकत्र हुए। तभी ह्यृरोज ने कालपी पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य से इनकी पराजय हुई। तात्या गुप्तरूप से ग्वालियर पहुंचे।

ग्वालियर पहुचकर तात्या ने सेना व प्रजा को क्रांति के लिये तैयार किया व ग्वालियर पर कब्जा कर लिया । किन्तु ह्यृरोज की सेना ने स्थिति मजबूत होने से पहले ही चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में महारानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई। क्रांतिकारियों की आशा  के केन्द्र ग्वालियर का पतन हो चुका था। अंग्रेजों का  दमन चक्र शुरू हो गया और क्रांति युद्ध आत्मरक्षा का युद्ध बन गया।

तात्या के लिये समय अनुकुल नही था। बेगम हजरत महल, नाना साहब परास्त हो चुके थे। अंग्रेजी सेना उनका पीछा कर रही थी। उत्तरपूर्व से नेपियर, उत्तरपष्चिम से शावर्स, पूर्व से सामरसेट,  दक्षिणपूर्व से मिचल और दक्षिणपष्चिम से बोनसन ने उन्हे घेर लिया।

करीब एक वर्ष बिना सहायक व साधनों के जंगलों में संघर्ष करते तॉंत्या थकान महसूस कर रहे थे। अत: वे पाड़ौन के जंगल मे विश्राम के लिये  राजा मानसिंह के पास पहुॅंचे, किन्तु दुर्भाग्य से जिस मित्र पर उन्होंने भरोसा किया वह अंग्रेजों से मिल गया। और अंग्रेजों की साजिश सफल हुई। देश द्रोही मानसिंह की गद्दारी के कारण ब्रिटिश सेनाधिकारी मीड के सैनिकों ने तॉंत्या को 7-8 अप्रेल 1859 की दर यानी रात को गिर तार कर लिया। तात्या पर 11 दिन का मुकदमा चला। व उन्हें दोषी घोषित कर 18 अप्रेल 1859 को शिवपुरी, में फांसी दे दी गई और क्रांति का एक अग्रदूत मॉं भारती के दामन में एक अनंत में मिल जाने के लिये चिरनिंद्रा में सो गया।