क्रोध से होता है स्वयं का अहित : मुनि कुन्थुसागर

शिवपुरी 9 सितम्बर का. ज्ञानी अपने ज्ञान का उपयोग प्रतिशोध में नहीं करता बल्कि आत्म शोध में करता है। क्योंकि प्रतिशोध की भावना से स्वयं का एवं दूसरे का अहित होता है ज्ञानी व्यक्ति अपने मन-वचन-काय से ऐसे चेष्टाऐं करता है जिससे दूसरों को भी सही रास्ता प्राप्त होता है ।
बदले की भावना मन के घाव को हमेशा हरा-भरा बनाए रखती है । इससे प्रतिशोध की ज्वाला और बड़ती चली जाती है । याद रहे प्रतिशोध एक ऐसा खेल है जिसे खेलने वाले तो खत्म हो जाते हैं पर खेल कभी खत्म नहीं होता। उक्त उदगार मुनि श्री 108 कुंथु सागर जी महाराज ने स्थानिय चंद्रप्रभु जिनालय में पयूषर्ण पर्व के अवसर पर उत्तम क्षमा धर्म पर बोलते हुये अपने बिषेष मंगल प्रवचनों के दौरान दिये।

    दूध के फट जाने पर घी की कामना करना व्यर्थ है ठीक उसी प्रकार हीरा के टूट जाने पर उसकी कीमत कम हो जाती है । और यदि मन फट जाता है तो प्रीती समाप्त हो जाती है । इसलिए हमें मन रूपी दूध में क्रोध की खटाई कभी नहीं डालना चाहिए वरना कभी भी हमारे अंदर धर्म प्रवेश नहीं कर सकता । जो व्यक्ति घर परिवार में बैठकर क्रोध करता है वह समझो बारूद की फेक्टर््ी में बैठकर माचिस की तीली को रगड़ता है । क्रोध एक ऐसा बारूद है जिसमें दुराग्रह की तीली का स्पर्श होते ही फूट पड़ता है । प्रतिकार विघटन का प्रतीक है प्रतिकार की जगह यदि हम क्षमा भाव को अपनाते हैं तो समाज कभी विघटित नहीं हो सकती ।

 जैंसे भूखे के लिए भोजन की आवश्यकता होती है भक्त को भगवान की आवश्यकता होती है ठीक बैंसे ही समाज की एकता के लिए प्रदर्शन की नहीं बल्कि समपर्ण की आवश्यकता होती है । हमें ईट का जबाब पत्थर से नहीं देना चाहिए बल्कि फूल से देना चाहिए । और गाली का जबाब गाली से नहीं बल्कि प्रभू के गीत से देना चाहिए । क्योंकि क्षमा ऐसी वस्तु है जिससे सारी ज्वलनशीलता समाप्त हो जाती है और चारो ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देने लगती है । इस संसार में कोई हमारा दुश्मन नहीं है और कोई मित्र नहीं है । क्योंकि रागियों के मित्र होते हैं और द्वेषियों के शत्रु होते हैं । जो राग द्वेष से रहित है उसका कोई शत्रु और मित्र नहीं होता उसे सभी जीव एक समान प्रतीत होते हैं । 

    क्षमा कोई वीर ही मांग सकता है कायर नहीं । क्येांकि क्षमा वीर का आभूषण है और वीर का शस्त्र है कायर बदला तो ले सकता है पर क्षमा नहीं कर सकता । हम भी क्षमा मांगे और क्षमा करें और कायरता का त्याग करके वीरता को स्वीकार करें । क्षमा मांगने की अपेक्षा करना बहुत कठिन होता है, सबसे पहले हम क्षमा करना सीखें और जिससे अपराध हुआ है उसे गले लगाकर बैर विरोध को भूलें तभी हमारा जीवन सार्थक होगा।