...और कितना गिरोगे चरणों में माखन

त्वरित टिप्पणी/ललित मुदगल। शिवपुरी। आप सभी शिवपुरी के विधायक माखन लाल राठौर को जानते ही हो, इन्होंने अपना विधानसभा चुनाव पैर पकड़ परम्परा को अपनाकर जीत लिया। अभी हाल ही में रेल्वे स्टेशन शिवपुरी पर दूसरे प्लेटफार्म और ओवरब्रिज के लोकार्पण समारोह में ज्योतिरादित्य सिंधिया के चरण पकड़ लिए।

इस दृश्य को मीडियाकर्मियों ने अपने कैमरों में कैद कर लिया। इससे पूर्व भी एक बार और जब फिजीकल क्षेत्र में आयोजित इसी तरह के लोकार्पण समारोह में भी विधायक माखन ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पैर पकड़े थे। यह भूल एक संवैधानिक पद पर सुशोभित जनप्रतिनिधि को शोभा नहीं देता, आखिर इस तरह के पैर पकडऩे की परंपरा कर विधायक जी की क्या मंशा है यह समझ से परे है लेकिन अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र के व्यक्ति के पैर छूना तो भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।

सिंधिया राजघराने के प्रति अपनी वफादारी निभाने का अच्छा सिला दे गए शिवपुरी विधायक माखन लाल राठौर जो आए दिन ना केवल पार्टी में फजीहत का सामना करेंगें बल्कि अन्य आमजनों में भी यही संदेश जाएगा कि एक सत्ताधारी दल का विधायक विपक्षी दल के चरणों में झुककर शरणागत होता नजर आ रहा है। आखिर ऐसी क्या वजह है कहीं यह आने वाले चुनावों की चौसर पर बिसात बिछाने की तैयारी तो नहीं, हम कहना चाह रहे है कि कहीं विधायक माखन जी एक छोर पर जहां यशोधरा का दामन थामे है तो वहीं दूसरी ओर कहीं ज्योतिरादित्य को पकड़कर कांग्रेस का दामन थामने की फिराक में तो नहीं है। खैर यह तो आने वाले समय में पता चल ही जाएगा लेकिन फिलहाल विधायक जी ने जो षाष्टांगता दिखाई है वह चहुंओर चर्चा का वायस बना हुआ है।

सिंधिया राजघराने की परंपरा रही है कि इस राजघराने से हमेशा से ही भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही वर्चस्व चला है। जब कै.राजमाता सिंधिया भाजपा की कमान संभाले हुए थी तब कै.माधवराव सिंधिया कांग्रेस के सर्वोपरि नेता थे। उनके देहावसान के बाद जहां एक ओर भाजपा की कमान यशोधरा राजे सिंधिया ने संभाली तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की कमान को संभालते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के सर्वोपरि नेता हुए। आज उनकी चरण वंदना यदि माखन लाल राठौर करते हैं तो यह राजनीति केवल वही लोग समझ सकते है जो इस राजघराने से काफी हद तक जुड़ा हुआ है।

हम कहना चाहते हैं कि माखन लाल राठौर भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही कोई तवज्जो ना देकर केवल सिंधिया परिवार की जी हुजूरी में अपने वर्चस्व को बरकरार रखना चाहते है। हालांकि वह यह नहीं जानते कि जुडऩा केवल एक से ही चाहिए, दोनों तरफ जुडऩे पर बिल्ली और बंदर की कहानी चरितार्थ होती है जो कि सबने सुनी हुई है। विधायक माखन लाल राठौर की इस नतमस्तक परंपरा से जहां भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों को ठेस पहुंची है तो वहीं स्वयं माखन लाल राठौर ने भी अपनी बढ़ती गरिमा को कम किया है।

सीट की चाह अगर माखन लाल राठौर को नतमस्तक करा रही है तो यह माना जा सकता है कि इस बार यशोधरा राजे भी नहीं चाहेंगी कि माखन लाल राठौर इस विधानसभा क्षेत्र में दावेदार रहें। हालांकि यह बात सर्वविदित है कि इस बार स्वयं यशोधरा राजे सिंधिया ही चुनाव लड़ेंगी क्योंकि सांसद बनने के बाद उन्हें स्वयं ही लगा कि वह अपने इस क्षेत्र के विकास के लिए कुछ खास नहीं कर पा रही हंै अगर वह मंत्री होती तो संभवत: क्षेत्र में कुछ अलग ही ढंग से विकास होता। फिर भी सिंधिया के आगे माखन लाल राठौर का नतमस्तक होना राजनीति की समझ से परे है और इन सब बातो को लेकर माखन लाल राठौर क्या चाहते हैं यह कोई नहीं समझ पा रहा है। क्योंकि टिकिट की राजनीति के लिए विपक्ष के नेता के पैर छूना टिकिट दिलवाना नहीं वरन टिकिट कटवाना होता है वहीं दूसरी ओर यदि वे कांग्रेस में जाना चाहते हैं तो संभवत: यह उनकी पहली आखिरी भूल होगी।

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