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साध्वी विश्वेश्वरी देवी |
शिवपुरी-कण-कण में बसे राम के नाम को सहेजने के लिए श्रद्धा का भाव चाहिए यह भाव में मानव में आ गया है स्वत: ही राम नाम इस जग में उजियारे की तरह छाया रहेगा। इससे मानव हमेशा सुख और समृद्धि से ओतप्रोत होगा लेकिन देखा गया है कि आज राम नाम में भी मिलावट का प्रयोग किया जा रहा है मिलावट का अर्थ यह नहीं कि राम में कोई अन्य शब्द जोड़ा रहा है यहां मिलावट का तात्यर्य है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की आराधना करने से असत्य भी सत्य हो जाता है क्योंकि जब भी कोई झूठ बोलता है तो उसमें सत्य अवश्य छुपा होता है इसीलिए श्रीराम की आराधना करने से असत्य भी सत्य में बदल जाता है।
असत्य को सत्य और झूठ में सत्य की वाणी का यह बखान किया प्रसिद्ध साध्वी श्रीरामकथा विदुषी विश्वेश्वरी देवी ने। जो स्थानीय गांधी पार्क में आयोजित श्रीरामकथा का श्रवण धर्मप्रेमीजनों को करा रही है जहां सत्य का मार्ग प्रशस्त कर असत्य के दुषपरिणामों को बता रही थी। इस अवसर पर आयोजन समिति के अध्यक्ष रामशरण अग्रवाल, संयोजक कपिल सहगल, सचिव विनोद सेंगर, मुन्ना बाबू गोयल, कृष्णदेव गुप्ता के साथ-साथ शिवपुरी विधायक माखन लाल राठौर ने श्रीरामकथा व साध्वी का पूजा-अर्चन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
विगत 2 जनवरी से 10 जनवरी तक धर्म रस की गंगा बहाने के उद्देश्य से श्री रामकथा उत्सव समिति के तत्वाधान में श्रीरामकथा का आयोजन किया गया है। कथा स्थल पर आने वाले धर्मप्रेमी बन्धुओं को कथा का श्रवण कराने के लिए श्रीरामकथा प्रवर विदुषी ज्ञानी साध्वी विश्वेश्वरी देवी अपनी ओजस्वी वाणी से कथा का रसपान करा रही है। आज कथा में संत की महिमा का बड़े ही सुन्दर ढंग से श्रीकृष्ण-राम रूप की महिमा का बखान करते हुए साध्वी विश्वेश्वरी देवी ने कहा कि कई लोगों ने वाल्मीकि को अपने समाज किया तो कई लोगों ने कबीर को अपने समाज का बताया कि राम कृष्ण किसी एक के नहीं होते है सभी के होते है। ऐसे ही संत भी सभी के होते है। जिसके शरीर में ईश्वर का भाव है उसे ही फकीर कहते है। यहां संत को फकीर के माध्यम से विश्वेश्वरी देवी ने बताते हुए कहा कि जिसकी रति और मति भगवान में लगी हो वह सच्चा फकीर है। भेष कोई भी बना लें उस पर मत जाना क्योंकि भेष तो संत का रावण ने भी सीता जी को हरने का बनाया था। क्या वह संत जैसा हो सका, संत का मतलब भावना बनाना होता है। पाप परिवार में रहें इसमें कोई बुराई नहीं आपका चिंतन विशाल होना चाहिए। संत की परिभाषा हमारे समाज ने वृक्षों से की है जो सुख आपको भौतिक सम्पदा नहीं दे सकती वह सुख आपको वृक्ष से मिलेगा खुद धूप आदि कष्टï उठाकर कर भी करोड़ों लोगों को छाया दे रहा है फल दे रहा है संसार पत्थर भी मारे और उसके बदले वह आवाज तक न करे वही संत है यदि सच्चा संत मिल जाये तो वह बिना कृपा किये नहीं जाता।
साध्वी विश्वेश्वरी देवी ने कहा कि दूसरी भक्ति कीर्तन है एक है करना और एक है करो, हमारे जीवन में कोई विषय नहीं कोई भोग नहीं भोजन का कोई वक्त नहीं। लेकिन भजन का वक्त होता है जिस दिन कीर्तन छूट जाये उसी दिन से भगवान की भक्ति आपको आने लगेगी। गुरू बनाने से आध्यात्म की भक्ति बढ़ती है। मीरा संवाद का उल्लेख करते हुए बताया कि संत रामानंद को अपने आप पर अभिमान हो गया था लेकिन मीरा ने उन्हें प्रभु का ज्ञान पढ़ाया तो वह अपने अभिमान पर सिर झुकाकर उनसे क्षमा याचना करने लगे। इसलिए व्यक्ति को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। इन्हीं सब धार्मिक उपदेशों के साथ कथा को विश्राम दिया गया। कथा का श्रवण करने वाले श्रद्घालुओं की संख्या में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है और प्रभु भक्ति का मार्गदर्शन पाने श्रद्घालुजन ईश्वर की इस भक्ति में नाच गाकर प्रभु भक्ति करते हुए दिखाई दे रहे है।
विगत 2 जनवरी से 10 जनवरी तक धर्म रस की गंगा बहाने के उद्देश्य से श्री रामकथा उत्सव समिति के तत्वाधान में श्रीरामकथा का आयोजन किया गया है। कथा स्थल पर आने वाले धर्मप्रेमी बन्धुओं को कथा का श्रवण कराने के लिए श्रीरामकथा प्रवर विदुषी ज्ञानी साध्वी विश्वेश्वरी देवी अपनी ओजस्वी वाणी से कथा का रसपान करा रही है। आज कथा में संत की महिमा का बड़े ही सुन्दर ढंग से श्रीकृष्ण-राम रूप की महिमा का बखान करते हुए साध्वी विश्वेश्वरी देवी ने कहा कि कई लोगों ने वाल्मीकि को अपने समाज किया तो कई लोगों ने कबीर को अपने समाज का बताया कि राम कृष्ण किसी एक के नहीं होते है सभी के होते है। ऐसे ही संत भी सभी के होते है। जिसके शरीर में ईश्वर का भाव है उसे ही फकीर कहते है। यहां संत को फकीर के माध्यम से विश्वेश्वरी देवी ने बताते हुए कहा कि जिसकी रति और मति भगवान में लगी हो वह सच्चा फकीर है। भेष कोई भी बना लें उस पर मत जाना क्योंकि भेष तो संत का रावण ने भी सीता जी को हरने का बनाया था। क्या वह संत जैसा हो सका, संत का मतलब भावना बनाना होता है। पाप परिवार में रहें इसमें कोई बुराई नहीं आपका चिंतन विशाल होना चाहिए। संत की परिभाषा हमारे समाज ने वृक्षों से की है जो सुख आपको भौतिक सम्पदा नहीं दे सकती वह सुख आपको वृक्ष से मिलेगा खुद धूप आदि कष्टï उठाकर कर भी करोड़ों लोगों को छाया दे रहा है फल दे रहा है संसार पत्थर भी मारे और उसके बदले वह आवाज तक न करे वही संत है यदि सच्चा संत मिल जाये तो वह बिना कृपा किये नहीं जाता।
साध्वी विश्वेश्वरी देवी ने कहा कि दूसरी भक्ति कीर्तन है एक है करना और एक है करो, हमारे जीवन में कोई विषय नहीं कोई भोग नहीं भोजन का कोई वक्त नहीं। लेकिन भजन का वक्त होता है जिस दिन कीर्तन छूट जाये उसी दिन से भगवान की भक्ति आपको आने लगेगी। गुरू बनाने से आध्यात्म की भक्ति बढ़ती है। मीरा संवाद का उल्लेख करते हुए बताया कि संत रामानंद को अपने आप पर अभिमान हो गया था लेकिन मीरा ने उन्हें प्रभु का ज्ञान पढ़ाया तो वह अपने अभिमान पर सिर झुकाकर उनसे क्षमा याचना करने लगे। इसलिए व्यक्ति को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। इन्हीं सब धार्मिक उपदेशों के साथ कथा को विश्राम दिया गया। कथा का श्रवण करने वाले श्रद्घालुओं की संख्या में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है और प्रभु भक्ति का मार्गदर्शन पाने श्रद्घालुजन ईश्वर की इस भक्ति में नाच गाकर प्रभु भक्ति करते हुए दिखाई दे रहे है।