ये शिवपुरी के एसपी हैं या हुड़-हुड़ दबंग-दबंग, दबंग-दबंग

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सेन्ट्रल डेस्क
लगता है शिवपुरी एसपी हिन्दी फीचर फिल्म दबंग से बड़े प्रभावित हैं, तभी तो आईपीएस अधिकारी होने के बावजूद गांववालों के बीच तिलक लगवाते, स्वागत सत्कार करवाते घूम रहे हैं। खबर आ रही है कि शिवपुरी एसपी का खोड़ नामक एक गांव में गांववालों ने सम्मान किया। यह सम्मान इसलिए क्योंकि उन्होंने एक कन्स्ट्रक्शन कंपनी ओशो एसोसिएट के सुरपरवाइजर को डाकुओं की पकड़ से मुक्त करवाया था।



यदि बात फिल्मों की होती और खासकर दबंग की तो यह अच्छा लगता, लेकिन यदि व्यवहारिक बात की जाए तो इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता कि जिस पुलिस अधीक्षक के कार्यकाल में डाकुओं ने ग्रामीणों की पकड़ की, उन्हें बंधक बनाकर रखा, जैन मंदिरों में मूर्तियां चोरी हो रहीं हैं, शिवपुरी में एक बहू अपने ससुर पर बलात्मकार का झूठा मुकदमा दर्ज करा रही है, रिश्वत न मिलने से बौखलाए इन्दार थानेदार पड़ौसियों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कर रहे हैं, उस जिले के पुलिस अधीक्षक को ऐसे थानेदारों जैसे तिलक ताजपोशियां स्वीकार नहीं करना चाहिए।

यदि डाकुओं से पकड़ का मुक्त होना पुलिस की सफलता है तो डाकुओं का क्षेत्र में सक्रिय रहना सबसे बड़ी बिफलता। समझ नहीं आ रहा कि भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी का यह सामान्यज्ञान कमजोर कैसे हो गया। कैसे उसने ग्रामीणों के सत्कार और सम्मान को स्वीकार कर लिया। क्यों कोई बहाना बनाकर उन्हें इससे इंकार नहीं किया। करेला और नीमचढ़ा तो तब हुआ जब शिवपुरी एसपी ने न केवल सम्मान स्वीकार किया बल्कि सभा को संबोंधित भी किया। उन्होंने कहा कि हम डाकू पप्पू गुर्जर को तलाश रहे हैं और उम्मीद है कि जल्द ही खत्म कर देंगे।

अब इसके बाद क्या टिप्पणी की जाए समझ नहीं आ रहा, अपनेराम तो केवल इतना कहना चाहते हैं कि जिस जिले के कप्तान ऐसे हों, उस जिले की पुलिसफोर्स से क्या आदर्श आचरण की उम्मीद की जाए।
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