माधौ महाराज: क्या सिर्फ पुनर्स्थापना काफी होगी

उपदेश अवस्थी। नगरपालिका शिवपुरी उपद्रवियों की शिकार हुई माधौ महाराज की प्रतिमा को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया पर काम शुरू करने जा रही है। शर्म का विषय है कि इसके लिए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को कहना पड़ा, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ पुनर्स्थापना काफी होगी। क्या इसे औपचारिकता मात्र नहीं कहा जाएगा।


यहां सवाल सिंधिया का है ही नहीं। माधौ महाराज का अस्तित्व बुआ और भतीजे से अलग है और उसे इसी रूप में लिया भी जाना चाहिए। इतिहास गवाह है, जिस जिस समाज ने अपने पूर्वजों का अनादर किया वो समाज कभी सम्पन्न नहीं हो पाया।

माधौ महाराज शिवपुरी के संस्थापक हैं। जंगल में बसे भील आदिवासियों के एक गांव को उन्होंने ना केवल शहर बनाया परंतु उस समय का सबसे बेहतरीन शहर बनाया। सर्वसुविधासम्पन्न शहर। जहां सड़कें थीं, पेयजल के भंडार थे, खुला वातावरण, स्वच्छ पर्यावरण, रेल यातायात और वो सबकुछ जो उस जमाने में कल्पना से भी बाहर हुआ करता था।

सन् 1915 में जब लगभग पूरा का पूरा देश बैलगाड़ियों से सफर करता था, शिवपुरी में रेल चला करती थी। शाम ढलते ही लोग घरों में छिप जाया करते थे, परंतु शिवपुरी में स्ट्रीट लाइटें हुआ करतीं थीं। देश के कई बड़े शहरों से लोग यहां बसने के लिए चले आए थे, आज भी उनकी दूसरी या तीसरी पीढ़ी के लोग यहीं रह रहे हैं।

ऐसे आधुनिक शहर को बनाने वाले माधौ महाराज को क्या केवल चौराहे पर धूल खाने के लिए और साल में एक बार माला पहनाने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। मैं फिर दौहराना चाहता हूं कि यह विषय सिंधिया परिवार से जुड़ा नहीं है बल्कि शिवपुरी से जुड़ा हुआ है। कम से कम एक संग्रहालय तो चाहिए ही जो आने वाली पीढ़ी को बता सके कि इस शहर को स्थापित करने वाला राजा कितना बुद्धिमान, दूरदर्शी और क्षमतावान था। वो युद्ध नहीं करता था, लेकिन अपनी प्रजा की सुख सुविधाओं को जुटाने के लिए वो सबकुछ करता था जो दूसरे राजा नहीं कर पा रहे थे।