शिवपुरी। बीते कुछ दिनों पूर्व हुए चुनाब में कांग्रेस ने 15 साल से सत्ता में जमी भाजपा को आउट कर सत्ता पर काबिज हुई। परंतु इन दिनों शिवपुरी की राजनीति की हालात बिगडी हुई है। सत्ता परिवर्तन के बाद 15 साल से बनवास काट रहे कांग्रेसीयों में न तो खुलकर उत्साह दिख कर है और न ही कांग्रेस में कोई जश्न का माहौल है। बात यह भी है कि सत्ता में काबिज होते ही शिवपुरी जिला उपेक्षा का शिकार हो गया है।
सबसे पहले तो उपेक्षा प्रारंभ हुई वह हुई इस क्षेत्र के लोकप्रिय नेता सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का सीएम न बन पाना। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सीएम न बन पाने से शिवपुरी मे कांग्रेसी गहरे सदमें मे चले गए हैॅ। उसके बाद कांग्रेसी उम्मीद लगाकर कक्काजू पर बैठे थे। परंतु कक्काजू को भी कमलनाथ सरकार में उपेक्षा का शिकार होना पढा और लगातार 6 बार से पिछोर से विधायक रहे केपी सिंह कक्काजू को कमलनाथ ने अपने मंत्री मंडल में जगह नहीं दी। जिससे केपी सिंह खेमा भी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है।
प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता बनने के बाद भी जिले में प्रभावी सिंधिया खेमें में उत्साह का बाताबरण विल्कुल खत्म दिख रहा है। इसका कारण यह है कि सिंधियानिष्ठ कार्यकर्ताओं को उम्मीद ही नही पूरा भरोशा था कि राहुल गांधी प्रदेश की कमान युवा चहरे ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री बनाएगें। लेकिन उन्हें भी चार दिन तक चले संर्घष के बाद कांग्रेस के इस खेमें में तब मायूसी छा गई जब राहुल गांधी ने सीएम के लिए कमलनाथ का नाम घोषित कर दिया।
उसके बाद सिंधिया समर्थकों ने आस लगाई कि अव शायद सिंधिया को कांग्रेस की प्रदेश की कमान सौंपी जाएगी और उन्हें सत्ताधारी दल कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा। उनकी उम्मीद थी कि यह रणनीति शायद सांसद सिंधिया को साधने और बजन बराबर करने के लिए राहुल गांधी करेंगे। परंतु इस फैसले पर भी आज तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं आ पाया। अब तो यह भी साफ हो गया कि लोकसभा चुनाव के बाद ही प्रदेशाध्यक्ष का निर्णय होगा। तब तक प्रदेश अध्यक्ष की कमान मुख्यमंत्री कमलनाथ ही संभालेंगे।
सांसद सिंधिया खेमें की निराशा का एक प्रमुख कारण यह भी है कि जिले की पांच सीटों में से पोहरी और करैरा में उनके विधायक पहली बार निर्वाचित हुए है। जिन्हें मंत्री बनने की उम्मीद न के बराबर थी। लेकिन तीसरी सीट पिछोर विधानसभा पर 6वी बार विधायक निर्वाचित हुए केपीसिंह कक्काजू का मंत्री बनना तय माना जा रहा था। माना तो यह तक जा रहा था कि कमलनाथ सरकार में अगर 6 मंत्री भी शपथ लेंगें तो उनमें एक केपी सिंह होगे।
उनके समथकों ने तो चुनाव जीतते ही उन्हें कैबीनेट मंत्री बनाकर पोस्टर लगा दिए। लेकिन यहां भी उनके समर्थकों में उस समय निराशा हो गई जब मंत्रीमण्डल की घोषणा में केपी सिंह कक्काजू का नाम नही था। इस मंत्री मण्डल में नाम के लिए केपी सिंह ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक खूब दौड लगाई। परंतु उन्हें महज आश्वासन से ही काम चलाना पडा। जिसका नतीजा शिवपुरी की राजनीति में यह है कि सत्ता पर बनवास काटकर लौटी कांग्रेस में इन दिनों उत्साह बिल्कुल गायव है।
अब बात भाजपा की करें तो भाजपा में एक सबसे बडा कारण तो यह है कि पूरे प्रदेश में अधिक नंबर आने के बाद भी सत्ता से हाथ धो बैठी भाजपा को शिवपुरी में पांच सीटों में से 2 पर संतोष करना पडा। उसमें एक तो यशोधरा राजे सिंधिया की सीट है जिसके आगे कांग्रेस के सिद्धार्थ लढा ताश के पत्तों की तरह विखरते चले गए। दूसरी सीट कोलारस की है जहां बीरेन्द्र रघुवंशी ने महज 700 मतों से कांग्रेस के विधायक महेन्द्र सिंह यादव को पटकनी देकर कुर्सी हासिल की।
भाजपा की यशोधरा राजे ने को पिछले चुनाव के बाद शिवराज सरकार में मंत्री बनाया गया था। परंतु इस बार जीत का आंकडा बढने के बाद भी यशोधरा राजे विपक्ष में बैठी है। जिससे उनके समर्थकों में उत्साह गायव है। बात अगर कोलारस विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी की करें तो यहां गुटवाजी के चलते कार्यकर्ताओं में निराशा है। उसका कारण है कि वीरेन्द्र रघुवंशी का महल विरोधी होना। वीरेन्द्र रघुवंशी कट्टर महल विरोधी होने के साथ ही नरेन्द्र सिंह तोमर गुट के माने जाते है।
जिसका नतीजा यह है कि एक ही पार्टी के दोनों विधायकों मे आपस में समन्वयक का आभाव है। बात अगर 2013 के चुनाव की करें तो इस चुनाव में यशोधरा राजे के साथ पोहरी से प्रहलाद भारती विजयी हुए थे। जो कि यशोधरा राजे सिंधिया के फोलोअर माने जाते थे। लेकिन इस बार उन्हे भी हार का सामना करना पडा है। कुल मिलाकर बात यह है कि शिवपुरी की राजनीति में बदलाब के बाद न तो खुशी है और न ही गम का कोई माहौल है।
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