राजीव दुबे, शिवपुरी की बर्बादी के लिए हमेशा याद किए जाएंगे

शिवपुरी। कुछ कलेक्टर इतिहास बनाते हैं तो कुछ इतिहास बनकर रह जाते हैं। शासक हमेशा अच्छे और बुरे के रूप में ही याद किए जाते हैं। देश में भले ही लोकतंत्र हो लेकिन शासन आज भी कलेक्टर ही करते हैं। ये शहर साक्षी हैं कि कुछ कलेक्टर ऐसे भी थे जिनसे मंत्री तक घबराते थे, और कुछ कलेक्टर ऐसे भी रहे जो अपने बाबुओं से डर जाते थे। तत्कालीन कलेक्टर राधेश्याम जुलानिया को मुरैना शहर आज भी याद रखता है। जुलानिया से पहले वो शहर किसी बड़े और बेहूदा गांव से ज्यादा नहीं था, जुलानिया की कार्रवाई ने उसे नगरनिगम बना दिया। 

शिवपुरी जिला शैलेष पाठक को भी याद करता है। एक ऐसा आईएएस जो इतिहास बनाना चाहता था। 'शिवपुरी विकास एक्सप्रेस' की यादें आज भी कर्मचारियों के दिलों में बसी हुईं हैं। उन्होंने कई ऐसे काम किए जो उनसे पहले किसी कलेक्टर ने नहीं किए थे। सबसे अच्छी बात यह थी कि शैलेष पाठक ने पूरे जिले का अध्ययन किया था। लोग चौंक जाते थे जब वो अचानक ड्रायवर को बोलते थे कि लेफ्ट टर्न लेने के बाद 20 किलोमीटर पर यह गांव आएगा। वहीं पर रोकना। चर्चा होती थी कि आखिर कौन है जो पाठक साहब को इतनी सटीक जानकारी देता है। दरअसल, यह सारी जानकारी उनके अपन अध्ययन का नतीजा था। वो काफी कुछ ऐसा करने वाले थे जो शिवपुरी को 50 सालों तक काम आता लेकिन एक धूर्त नेता के जाल में फंस गए। जब तक लोग समझ पाते तब तक काफी कुछ बदल चुका था। 

शिवपुरी शहर राजीव दुबे को कभी भुला नहीं पाएगा। इनके कार्यकाल में ये शहर जितना बर्बाद हुआ, इतना तो 250 सालों में नहीं हुआ था। एक राजा ने 15 साल की कड़ी मेहनत से एक शहर बसाया था, एक कलेक्टर के कारण 4 साल में वो बर्बाद हो गया। दरअसल, राजीव दुबे कभी कलेक्टर जैसी स्थिति में रहे ही नहीं। अपने सारे अधिकार उन्होंने अधीनस्थों को सौंप दिए थे। वो हस्ताक्षर करने से घबराते थे। कहीं फंस ना जाएं। कलेक्टर की कुर्सी का मोह उन्हे कभी मुखर होने ही नहीं देता था। कुर्सी बचाने की जद्दोजहद जितनी दुबेजी ने की, शिवपुरी आए कलेक्टरों में शायद ही किसी ने की हो। 4-6 अधिकारी पूरा जिला चला रहे थे। कलेक्टर का अपना कोई निर्णय ही नहीं होता था। जनता के प्रति जिम्मेदारी का भाव दिखाई ही नहीं दिया। कुर्सी बचाए रखने के लिए फतेहपुर रोड जाना पड़ा तो गए, कई बार गए। जिस जिस से कुर्सी को खतरा था उस-उस की चिंता की। जनता की कभी चिंता नहीं की। शहर बर्बाद होता गया। सबकुछ तबाह होता गया। जनता चीखती रही, चिल्लाती रही, लेकिन राजीव दुबे ने कभी ध्यान ही नहीं दिया। अब जबकि वो जा रहे हैं, तो नए कलेक्टर को पूरी तरह से बर्बाद हो चुका शहर सौंपकर जा रहे हैं। हम ईश्वर से सिर्फ यही प्रार्थना करते हैं कि श्री राजीव दुबे की हर मनोकामना पूरी करना, लेकिन उन्हें कभी किसी जिले का कलेक्टर मत बनाना।