उद्योग मंत्री यशोधरा ने माना वन अधिनियम के लिए प्रशासन गंभीर नहीं

शिवपुरी। वन अधिकार अधिनियम को लेकर मध्यप्रदेश में कई जिलों की हालत खराब है। वर्ष 2007 में विधानसभा चुनाव के पूर्व मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी संगठनों से बातचीत करके यह आश्वासन दिया था कि यदि सरकार अधिनियम को पारित करती है तो देश में अधिनियम को लागू करने वाला पहला राज्य मप्र होगा और यह सही भी साबित हुआ कि केन्द्र सरकार ने वन अधिकार अधिनियम को पूरे देश में लागू किया और उसकी तुरंत कार्यवाही मप्र के मुखिया ने कैबीनेट परिषद की बैठक में स्वीकृत कराकर दी लेकिन जमीनी तौर पर अधिनियम की क्या हालत है।

यह शिवपुरी जिले में इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि मप्र शासन के मंत्रीमण्डल की सदस्य शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया ने कलेक्टर शिवपुरी को पत्र लिखकर यह अफसोस जाहिर किया है कि शिवपुरी जिले में आदिवासी समुदाय की स्थिति दयनीय है और जिला प्रशासन व वन विभाग वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवासीय पट्टे एवं खेती की भूमि के साथ-साथ्ज्ञ अन्य विकास सुविधाओं के लिए निस्तार से संबंधित भूमि के वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत क्रियान्वयन में पूरी तरह फैल साबित हुआ है। केवल वर्ष 2009 में 2100 पट्टे दिए गए उसके बाद पांच वर्षो में 2100 पट्टों का भी सही ढंग से हक प्रमाण पत्र नहीं वितरित हो पाए है। 

सामाजिक संगठनों ने केन्द्र सरकार पर धरना प्रदर्शन एवं रैलियों के माध्यम से यह दबाब बनाया कि वन भूमि पर काबिज आदिवासी हरिजन एवं पिछड़े वर्ग के अति गरीब परिवारों को रोजी रोटी मुहैया कराने के लिए वन अधिनियम में संशोधन करते हुए वन भूमि पर काबिज करने की कार्यवाही राष्ट्रीय स्तर पर की जानी चाहिए। प्राथमिक तौर पर इस आवाज को केन्द्र सरकार ने भी दबाने का प्रयास किया लेकिन जन संगठनों के दबाब को देखते हुए पूर्व वन एवं पर्यावरण मंत्री जयरामरमेश सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर छत्तीसगढ़ के आन्दोलन सभा में सामाजिक प्रतिनिधियों से मिली। 

उन्होंने सरकार की मंशा को जाहिर करते हुए कहा कि इस अधिनियम को लागू करने के लिए हम तैयार है इतने संघर्ष के बाद यह कार्यवाही हुई और जिला स्तर पर इसके क्रियान्वयन को लेकर प्रशासन की हीलाहवाली जब तक तो ठीक थी तब तक सरकार के किसी सदस्य ने कोई ऊंगली ना उठाई हो, लेकिन कैबीनेट मंत्री यशोधरा राजे ङ्क्षसधिया ने यह सीधे तौर पर आरोप लगाया है कि वन अधिनियम को लागू कराने में जिला प्रशसन पूरी तरह फैल साबित हुआ है। गौरतलब है कि वन अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक त्रिस्तरीय समितियों को काम करना होता है। सबसे नीचे पंचायत स्तरीय समिति जिसमें फॉरेस्ट गार्ड, सचिव और पटवारी आमंत्रित दावों का निराकरण करते है। 

उसके बाद उपखण्ड स्तरीय समिति जिसमें एसडीएम के साथ एसडीओ फॉरेस्ट को भेजे गए प्रस्तावों का परीक्षण करना होता है और इसके बाद जिला स्तरीय समिति जिसमें कलेक्टर, डीएफओ एवं संयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग भेजे गए प्रस्तावों पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाकर हक प्रमाण पत्र जारी करने की कार्यवाही का निर्देश देते है। चूंकि इस प्रक्रिया में किसी तरह के बजट का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए इस सूखे शंख वाले काम में तीनो कमेटियों की कोई रूचि नहीं रहती। इस कारण यह अधिनियम लागू होने तक शिथिल पड़ा रहता है और यही शिवपुरी में हुआ है। 

एकता परिषद के जिला समन्वयम रामप्रकाश शर्मा ने कैबीनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को इस सारे घटनाक्रम की जानकारी उसके आधार पर कैबीनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने कलेक्टर को पत्र लिखा, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिस बर 2013 में कैबीनेट मंत्री के लिखे हुए पत्र पर जनवरी 2014 में कलेक्टर ने मु य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत को निर्देशित करते हुए पत्र क्रमांक अ.जा.क./वन अधिकार/2008/18.1.2014 के तहत अधिनियम से संबंधित कार्यवाही कराने के लिए  ग्राम पंचायतों के माध्यम से विभिन्न धाराओं का उल्लेख करते हुए आमंत्रित दावों का निराकरण करने की बात कही। 

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आयुक्त सह संचालक आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजनाऐं के पत्र क्रमांक/वन 2013/5019/दिनांक 10.1.2014 का उल्लेख भी कलेक्टर ने किया है। यह पत्राचार एसडीएम, एसडीओ फॉरेस्ट, पंचायत स्तर तक जारी होने के बाबजूद भी इस अधिनियम की शिवपुरी जिले में धरातल पर सबसे खराब हालत है जिसे संयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग के द्वारा भेजे गए सरकारी आंकड़ों से साबित किया जा सकता है। 2780 हैक्टेयर भूमि 2303 हक प्रमाण पत्रों के माध्यम से पिछले पांच वर्षों में दी गई है जो कि ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर दिखाई देती है। 

कागजी आंकड़ेबाजी करते हुए विकास सुविधाओं के लिए वन भूमि के डायवर्सन की जो जानकारी है उसमें 13 कैटेगिरियों में से केवल 4 कैटेगिरी में काम हो पाया है जिसके तहत विद्युत एवं दूरसंचार लाईन, तालाब एवं लघु सिंचाई संरचनाऐं, पेयजल वितरण संबंधी संरचनाऐं और सड़कों के नाम पर कुल 8 विकासात्मक सुविधाओं के लिए 487 हैक्टेयर भूमि डायवर्टेड की गई है। सामुदायिक अधिकारों की बात की जाए तो 14 कैटेगिरी के अंतर्गत गौण वन उत्पादों के  स्वामित्व संग्रहण उपयोग और व्यय का अधिकार के अंतर्गत 81 दावों को जिला स्तरीय समिति के द्वारा निराकृत होना बताया है। निस्तार के रूप में सामुदायिक अधिकार के 56 दावों को भी जिला स्तरीय समिति ने निराकृत किया है। 

स्थानीय प्राधिकरण या राज्य सरकार द्वारा जारी पट्टों के डायवर्सन से संबंधित 6 दावों को जिला स्तरीय कमेटी ने निराकृत किया है। इसके बाद किसी भी कैटेगिरी में जिला स्तरीय कमेटी ने कोई कार्यवाही नहीं की है जो स्वयं आदिम जाति कल्याण विभाग के संयोजक ने अपनी जानकारी में स्वीकार करते है। अपर संचालक आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजनाऐं के लिए पिछले पांच वर्षों में एक ही तरह के आंकड़े भेजकर यह बताया जा रहा है कि 16 हजार 647 कुल आमंत्रित दावों में से 2303 स्वीकृत योग्य पाए गए है। जिला स्तरीय कमेटी ने किस आधार पर इतनी बड़ी सं या में दावों को अस्वीकृत किया। 

इसका कोई संतोषपूर्ण कारण दिखाई नहीं देता, यह अफरा तफरी केवल इसलिए मची है कि वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत  होने वाले कामों में गरीब, हरिजन, आदिवासी, पिछड़े लोगों को निस्तार के साथ ही खेती की भूमि मिलती है और इसमें कोई आर्थिक लाभ शासकीय मशीनरी को दिखाई नहीं देता, इसलिए यह शिवपुरी जिले में बिल्कुल धरातल पर बना हुआ है। कैबीनेट मंत्री की संवेदनशीलता ने इसे ऑक्सीजन तो दी है अब देखना यह है कि इसके परिणाम क्या आते है?

इनका कहना है
वन अधिकार को लेकर कार्यवाही नहीं की गई है मैंने जिला प्रशासन को इस दिशा में स ती से काम करने के निर्देश दिए है ताकि जरूरतमंदों को उनका हक मिल सके और इस पर मेरी नजर भी है मैं इस मामले में समय-समय पर मॉनीटरिंग करके इसकी प्रगति की समीक्षा भी करूंगी।
श्रीमंत यशोधरा राजे सिंधिया
वाणिज्य, उद्योग मंत्री मप्र शासन