शिवपुरी में कांग्रेस को तोडऩे का काम कर रहे वीरेन्द्र रघुवंशी...!

शिवपुरी। विधानसभा चुनावो में लगभग 11 हजार मतों से हारे कांग्रेस के वीरेन्द्र रघुवंशी अब कांग्रेस को ही दो फड़ों में बंटवारे का काम करते नजर आ रहे है।

जिससे यहां कांग्रेस की एकता ध्वस्त होने की कगार पर है आए दिन अपने विचारों को अखबारों के माध्यम से प्रसारित करने वाले वीरेन्द्र अब डंके की चोट पर अपने ही नेता केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुखर विरोध कर रहें हैं।

तो वहीं दूसरी ओर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का दामन थामने को लालयित है यदि ऐसा भी नहीं हुआ तो वह अब नई पार्टी आम आदमी पार्टी में जाने का मन भी बना रहे है भले ही इसके लिए वह जनता के निर्णय का इंतजार करें या ना करें लेकिन वीरेन्द्र की इस बयानबाजी से अब कांग्रेस में अब आपसी फूटन सामने आने लगी है। ऐसे में यह कहना आसान नहीं होगा कि वीरेन्द्र कहे कांग्रेस दो हाथ, एक दिग्ग दूजा...?

यहां बताना मुनासिब होगा कि एक ओर जहां कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी को जोडऩे के लिए कार्य कर रहे है तो वहीं दूसरी ओर स्थानीय कार्यकर्ता कांग्रेस पार्टी को ही तोडऩे जैसा कार्य कर रहे है। वर्तमान समय की बात करें तो अभी-अभी केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपाहसलार वीरेन्द्र रघुवंशी इस बार विधानसभा चुनावों में मिली हार से तिलमिला रहे है। 

शनिवार को उन्होंने एक समाचार पत्र में अपने मन की पीड़ा को प्रकट करते हुए खुले तौर पर सिंधिया का ही विरोध कर डाला। बताया तो यहां तक जाता है कि  कहीं भविष्य में वीरेन्द्र सिंधिया के ही मुकाबले लोकसभा चुनाव ना लड़ बैठे, यह अलग बात है कि वीरेन्द्र बार-बार लोकसभा चुनाव ना लडऩे से इंकार कर रहे है। लेकिन वीरेन्द्र रघुवंशी इस बार विधानसभा चुनावों के टिकिटावंटन और परिणामों से काफी आहत है यही कारण है कि अब गाहे-बगाहे वह भाजपा से तो दूरी बनाकर ना जाने का दम भर रहे है लेकिन दूसरी ओर वह कांग्रेस को ही दो भागों में बांटने वाला कार्य कर रहे है जिसमें वह खुले तौर पर बयानबाजी करते हुए दिग्गी गुट में जाने की बात कहकर उन्होंने कांग्रेसियों को ही अचरज में डाल दिया, यदि ऐसा नहीं होता है तो वह आम आदमी पार्टी(आप) में भी जा सकते है। अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि वीरेन्द्र रघुवंशी का भविष्य किस ओर जाएगा...।

हाशिए पर है कांग्रेस पार्टी

अभी तो लोकसभा सिर पर है ऐसे में कांग्रेस पार्टी के ही दिग्गज उल जलूल बयानबाजी कर पार्टी को हाशिए पर लाने जैसा कार्य कर रहे है। वीरेन्द्र की बयानबाजी के कई निहितार्थ निकाले जा सकते है एक तो उनके मन की पीड़ा सामने आ गई तो वहीं दूसरी ओर विधानसभा चुनाव में टिकिटांबटन को लेकर जब सूची जारी हुई तो वीरेन्द्र का नाम ना आने से वह हड़बड़ाए नहीं बल्कि दमदारी के साथ चुनाव लडऩे की बात करते रहे। यहां तक की उन्होंने श्री सिंधिया के आदेश को भी दरकिनार करते हुए चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया। यहीं से पार्टी हाशिए के कगार पर आ गई जब वह दिग्गी गुट से टिकिट लेकर चुनाव लडऩे लगे। तब कांग्रेसियों ने ही इनका विरोध किया।

विरोध के बाबजूद भी लड़ा चुनाव

यहां बताना होगा कि जब वीरेन्द्र रघुवंशी के सामने विधानसभा चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया थी तब यह आभास था कि शिवपुरी में कंाग्रेस की हार होना तय है बाबजूद इसके वीरेन्द्र ने चुनाव लउ़ा और विरोध करते हुए हार का स्वाद चखा। वैसे भी स्थानीय कार्यकर्ताओं से वीरेन्द्र रघुवंशी का सामंजस्य ना बैठना कोई नई बात नहीं क्योंकि उन्होनें स्वयं को कांग्रेस में सर्वोपरि माना जिसके चलते वीरेन्द्र का कांग्रेसजनों ने ही विरोध किया। ऐसे में पार्टी में विरोध का सामना कर रहे वीरेन्द्र ने पार्टी और सिंधिया की भी नहीं मानी और चुनाव लड़कर अपने राजनैतिक भविष्य को ही दांव पर लगा दिया था। जिसका परिणाम उन्हें आज यह दिखा रहा है कि वह कांग्रेस का ही बंटवारा करने में लग गए।