देखिए क्या कुछ होता है आकाशवाणी की ऊंची दीवारों के भीतर

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शिवपुरी। कथाओं में आकाशवाणियां भगवान किया करते थे, आजादी के बाद सरकार ने इसका पेटेंट करा लिया और आकाशवाणी केन्द्र खोले, लेकिन ये केन्द्र बस खुले ही रह गए, चल नहीं पा रहे हैं। कम से कम शिवपुरी का आकाशवाणी केन्द्र तो कतई नहीं चल पा रहा है। चलेगा भी कैसे केन्द्र प्रभारी महेशदत्त पांडे अपने ग्वालियर प्रेम से मुक्त होकर शिवपुरी आएं तब ना। पता नहीं महेशदत्त जी के ग्वालियर में ऐसे कौन से कारोबार हैं जो वे शिवपुरी केन्द्र पर अपनी ड्यूटी निभाने में रुचि ही नहीं लेते।
शिवपुरी के आकाशवाणी की ऊंची-ऊंची दीवारों और मोटे लोहे के दरवाजों से सामान्यत: खबरें बाहर आती ही नहीं। अंदर क्या कुछ होता है आमजन को पता ही नहीं चलता, लेकिन शायद इंतहा ही हो गई होगी जो पांडे जी की मटरगस्ती की खबरें बाहर निकल आईं। विभागीय सूत्र बताते हैं कि केन्द्र प्रभारी महेशदत्त पांडे ग्वालियर से शिवपुरी कभी कभार आते हैं, लिहाजा अव्वल तो नए कार्यक्रम बनते ही नहीं और जो बनते हैं उनमें गुणवत्ता नदारद रहती है।

चलते हैं पूर्व रिकार्डेड प्रोग्राम

पहले से रिकार्डेड कार्यक्रम चलाए जाते हैं। तकनीकि खामियां दूर नहीं किए जाने के कारण चाहे जब प्रसारण का ठप हो जाना रोजमर्रा की बात हो गई है। केन्द्र का प्रभार जो महेशदत्त पांडे संभाले हुए हैं, वे खुद सप्ताह में 4 दिन नदारद रहते हैं। दो दिन आते भी हैं तो दोपहर से गोल हो जाते हैं। पाण्डे की लापरवाही के चलते केन्द्र के अन्य कर्मचारी व कार्यक्रम अधिकारी भी अकसर गायब रहते हैं। यही हाल केन्द्र के तकनीकि विभाग का है।

लेटनाइट ड्यूटी पर बुलाया जाता है महिला उद्घोषकों को

आकस्मिक उद्घोषकों के साथ यहां सौतेला व्यवहार बरता जा रहा है। उन्हें समय पर मानदेय तो दिया ही नहीं जाता, ड्यूटी खाली है तब भी छह से अधिक ड्यूटी नहीं दी जाती। जबकि केन्द्र का काम ज्यादा से ज्यादा ड्यूटी देकर अच्छे कार्यक्रम बनवाकर, उनका प्रसारण करना है। महिला उद्घोषकों की और भी बुरी स्थिति है। उनकी मर्जी के खिलाफ  सुबह जल्दी और शाम को देर रात तक चलने वाली ड्यूटी लगाई जा रही है। जिससे उन पर दबाव बना रहे। उद्घोषक कक्ष के कंप्यूटर भी बेहाल हैं। चलते-चलते चाहे जब जबाव दे जाते हैं।

कमीशन चुकाने पर मिलता है कलाकारों को काम

2010 से यहां किसी नाटक का मंचन नहीं हुआ। जबकि पांडे के पहले जब शिवेन्द्र श्रीवास्तव केन्द्र में पदस्थ थे, तब स्थानीय कलाकारों को महत्व देते हुए कई नाटकों का मंचन कराकर रिकार्डिंग कराई गई। कुछ समय पहले एक कवि कथाकार को नाटकों के मंचन की जबावदारी सौंपी थी, जिसमें सुविधा शुल्क मांगी गई। नतीजतन उन्होंने काम करने से इंकार कर दिया। लापरवाही का आलम केन्द्र में इस हद तक है कि कई मर्तबा जेनरेटर में आग लग चुकी है। नतीजतन 3-4 घंटे तक प्रसारण ठप रहा है। जबकि नियमों के मुताबिक एक मिनट भी प्रसारण ठप नहीं रहना चाहिए।

आकाश मंथन बंद, फोन इन की रिकार्डिंग नहीं

डीजल में हेराफेरी का सिलसिला भी बदस्तूर है। केन्द्र प्रभारी की नए कार्यक्रमों के निर्माण और उनकी गुणवत्ता के प्रति कोई ध्यान नहीं है। इसका साक्षात उदाहरण शिवपुरी केन्द्र द्वारा निर्मित कराकर प्रसारण किए जाने वाले कार्यक्रम ''आकाश मंथन" का एकाएक बंद हो जाना है। इससे जिले भर के लाखों श्रोता जुड़े थे। यही नहीं इसी तरह पिछले कुछ समय से 'फोन इन" कार्यक्रम नया रिकार्ड नहीं किया गया। जब कभी पुराने रिकार्ड किए कार्यक्रम सुनाकर ही इसकी खानापूर्ति करने की नाकाम कोशिश की जाती है।

इससे तो अच्छा है इसे बंद कर दिया जाए

केन्द्र के श्रोता किस हद तक घट रहे हैं इसका पता इस बात से चलता है कि केन्द्र में कार्यक्रमों के सिलसिले में आने वाले प्रशंसा पत्रों की संख्या लगातार घट रही है। बावजूद न तो नए कार्यक्रम बन रहे हैं और न ही उनकी गुणवत्ता सुधारी जा रही है। यही हाल साहित्य एवं चर्चा-परिचर्चा से जुड़े आयोजनों का है। ये लेखक एवं वार्ताकार की उपलब्धियों एवं विषय संबंधी समझ की बजाए सुविधा शुल्क भेंट करने वालों को दिए जा रहे हैं। केन्द्र के अग्निशमन यंत्र भगवान भरोसे हैं। वे लगे हैं जब से उनके रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि रख रखाव पर खर्च नियमित हो रहा है। सब कुल मिलाकर केन्द्र की हालत तो खराब है ही, नई प्रतिभाओं को अवसर देकर प्रोत्साहन नहीं करने के कारण केन्द्र सफेद हाथी साबित हो रहा है। इससे तो अच्छा है इसे बंद कर दिया जाए।

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