नारी घर की आधारशिला होती है, उसका सम्मान करना चाहिये : मुनि श्री अजितसागर

शिवपुरी। व्यक्ति कभी जाति, कुल, शरीर से बड़ा नहीं होता, बल्कि अपने सद्गुणों से बड़ा होता है। यदि किसी में अपने बड़े होने का अहंकार है, तो निश्चित ही यह अहंकार उसे पतन की ओर ही ले जाता है। संसार में मान को महाविष कहा, जो हमें नीच गति में ले जाने में कारण बनता है। सम्मान चाहने से कभी सम्मान प्राप्त नहीं होता, बल्कि दूसरों को सम्मान देने से स्वंय सम्मान प्राप्त हो जाता है। 

आपके द्वारा किये गये किसी अच्छे कार्य की यदि प्रसंसा नहीं हो रही है, तो इसे मात्र अपने कर्मों का उदय मानना चाहिये। और अच्छे कार्यों को सदा अपना कत्र्तव्य समझ कर करते चले जाना चाहिय। विपरीतता में भी शांति बनाए रखना और अपने मान को मार देना ही विनय है। उक्त मंगल प्रवचन स्थानीय महावीर जिनालय पर पूज्य मुनि श्री अजितसागर जी महाराज ने उत्तम-मार्दव धर्म पर विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुये दिये।

उन्होनें कहा कि-ज्ञानी व्यक्ति का जीवन हमेंशा सादगीमय होता है। वह कभी अपने ज्ञान का अहंकार नहीं करता। यदि ज्ञानी ने ज्ञान का अहंकार किया तो वह ज्ञानी कैसा? किसी की बात सुनकर धर्म को छोड़ देना बहुत बड़ा अहंकार है। विनय शील व्यक्ति कभी अच्छे कार्य और धर्म को नहीं छोड़ता। जिव्हा मृदु होती है, इसी कारण वह जन्म से होती है और मृत्यु तक साथ होती है। जबकि दांत कठोर होते हैं, जो बाद में आते हैं और पहले चले जाते हैं। 

वर्तमान में कोई भी इंसान अपना अपमान सहन नहीं कर सकता, धूल भी अपमान सहन नहीं कर पाती। तभी तो धूल को लात मारो तो वह सिर पर चढ़ जाती है। आगे उन्होंने कहा कि-नारी घर की आधारशिला होती है, अत: कभी नारी का अनादर नहीं करना चाहिए। हमेशा नारी का सम्मान करना चाहिये। मंदोदरी ने हमेशा लंका को अयोध्या बनाने की कोशिश की, यदि रावण मंदोदरी की बात मानता तो कभी पतन को प्राप्त नहीं होता। जबकि गलत का सहयोग करने वाला नियम से पतन में जाता है। गांधारी में विनय-विवेक होता तो कभी ईष्र्या की भट्टी में नहीं जलती।

ऐलक श्री विवेकानंद सागर जी महाराज ने कहा कि, मान कभी अकेला नहीं आता, उसका पूरा परिवार होता है, जो मान के साथ उसके साथ ही आता है। उपेक्षा, अहंकार, निंदा, चुगली, बैर, ईष्र्या जिद और घजो मान के साथ आकर जीवन को पतन की ओर ले जाते है। उन्होंने कहा कि हमारे हाथ की पांचों उंगलियां विपरीत हैं, परंतु विषम होते हुये भी एक दूसरे की विरोधी नहीं है, और भोजन करते समय सभी एक साथ हो जाया करती है। 

अत: हम यदि अपने बड़े होने के मान को त्यागकर सभी के साथ एक रहने का प्रयास करेंगे, तभी खुश रहेंगे। लक्ष्मण जी ने विनय को धारण करने के बाद ही रावण से निम्न तीन शिक्षा पाई। कोई भी कार्य करने से पहले बड़ों की राय अवश्य लेना चाहिए।  भावुकता में कोई कार्य नहीं करना चाहिए। और शुभ कार्य करने में कभी नहीं सोचना चाहिय। जीवन में उन्नति प्राप्त करने के लिये इन शिक्षाओं को अपने जीवन में अवश्य उतारना चाहिये। 

स्थानीय महावीर जिनालय शिवपुरी में दसलक्षण पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाये जा रहे हैं। पूज्य मुनिश्री अजितसागर जी महाराज के सान्निध्य में यहां श्रावक-श्राविका शिक्षण शिविर भी लगाया गया है, जिसमें स्थानीय ही नहीं बाहर के भी कई शिविरार्थियों ने हिस्सा लिया है। शिविरार्थियों की दिनचर्या प्रात: पांच बजे से सामायिक एवं ध्यान के साथ प्रारंभ होती है। अभिषेक और पूजन के उपरांत सभी की आहारचर्या होती है। 

दोपहर में तत्वार्थ सूत्र की क्लास एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों की क्लास चलती है। एवं सांय 5 बजे से प्रतिक्रमण होता है। 6:00 बजे से गुरुभक्ति, सामायिक के साथ पूज्य मुनिश्री द्वारा विशेष ध्यान भी कराया जाता है। रात्रि 8:00 बजे से भव्य रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम में जिनमें हरिद्वार से आई सुषमा कौशिक एंड पार्टी द्वारा जैन धर्म पर आधारित नाटकों का मंचन किया जाता है। कल रात्रि में नेमी-वैराग्य नाटिक का मंचन बहुत आकृषक ढंग से किया गया। आज रात्रि में सती मैना सुंदरी नाटिका का मंचन किया जायेगा। पूजन, आरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भरतपुर राजस्थान से आई प्रदीप एंड पार्टी की संगीतमई स्वर लहरियां बिखर रही है।