सूअरों का शूटआउट: ये एनकाउंटर नहीं सामूहिक हत्याकांड है

शिवपुरी। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के स्टूडेंट अभय जैन का कहना है कि शिवपुरी में शुरू हुआ आवारा सुअरों का शूटआउट संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ है। यह समाज को आतंक से बचाने के लिए शुरू हुआ एनकाउंट नहीं बल्कि सामूहिक हत्याकांड है। हाईकोर्ट ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया, कलेक्टर ने आदेश का मनमाना अर्थ निकाल लिया है।

लॉ स्टूडेंट अभय जैन ने इस मामले के प्रकाश में आने के बाद शिवपुरीसमाचार.कॉम से संपर्क किया एवं बताया कि किस तरह हाईकोर्ट के आदेश के निर्देश क्रमांक 1 व 2 को दरकिनार का अंतिम विकल्प को चुना और इसे हाईकोर्ट का आदेश कर मनमानी कार्रवाई की जा रही है।

में अभय जैन हूँ और में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा में पढ़ रहा हूँ। मेरा घर शिवपुरी में है।  मुझे कुछ समय पहले पता शिवपुरी में सुअरों को शूट करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कदम उठाये जा रहे हैं।  यहाँ तक की सुअरो को मारने के लिए हैदराबाद से एक टीम बुलाई गयी है।

मेने यह सूचना मिलते ही पीपल फॉर एनिमल्स को कांटेक्ट किया उन्होंने मुझसे संपर्क किया और पूरी स्थिति के बारे में उन्हें बताने को कहाँ।  मेने उनके कहने अनुसार उनको पूरी रिपोर्ट भेज दी। नगर पालिका का कहना है की यह सब हाईकोर्ट के आर्डर के अनुसार हो रहा है तो मेने एक लॉ स्टूडेंट होते हुए हाईकोर्ट का आर्डर पड़ा।

आर्डर में क्रमांक 1 पर हाई कोर्ट ने नगरपालिका और कलेक्टर को यह साफ़ निर्देश दिए हैं की वे सूअरों को शहर से बाहर निकालने के प्रभावी कदम उठाये जाएँ और निर्देश क्रमांक 2 में यह दिया है की अगर प्रभावी कदम उठाने के बाद भी सूअर बचते हैं तो उन्हें डिस्ट्रॉय कर दिया जाये।

मेने इस सिलसिले में एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ़ इंडिया में भी बात की और उन्होंने एक पत्र भेजा कलेक्टर को ,नगर पालिका को, कि वे बताये की उन्होंने क्या प्रभावी कदम उठाए इस मसले पर। कोर्ट ने 3 महीने का समय दिया था अधिकारियों को प्रभावी कदम उठाने के लिए , नहीं तोह कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही इन अधकारियों के खिलाफ दर्ज होगी।

कोर्ट का आर्डर 07-04-2014 को दिया गया था और तब से तीन महीने कब के गुजर चुके हैं लेकिन अभी तक इन् अधिकारीयों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नही हुयी है। प्रशासनिक अधिकारीयों का सूअरों को मारने का कदम भारत के संविधान मूल कर्तव्यों के 51 क (छ) के खिलाफ हैं, जिसमे दिया है " हर नागरिक का ये कर्तव्य होगा की वह प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखे।" यही नहीं यह कदम देश के उच्च न्यायालय ने स्पेशल पेटिशन नंबर ११६८६/२००७  में यह आदेश दिया था की जानवरों के अधिकार जो की अनुभाग 03 और 11,जीव जंतु के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में दिए गए हैं उन्हें छीना या फिर उनमे कटौती नहीं की जा सकती।

मेरे लिए यह बहुत खेद की बात है की प्रशासन जो की कानून को सहेजने के लिए बना है वही उसका खुले रूप में उल्लंघन कर रहा है। में यह दरख्वास्त करता हूँ सारे भारत के नागरिकों से की वे इसके खलाफ कदम उठायें और उन् मासूम जिंदगियों को अकारण मारने से बचाये। यह हमारा धार्मिक, सामाजिक एवं संविधानिक कर्त्तव्य है। आशा करता हूँ आप यह पढ़कर जाग जायेंगे।

Regards,
Abhay Jain
National Law University Odisha.
+91 9424689266