अब लो सीएम को भी ठैंगा दिखा गई दोशियान कंपनी

शिवपुरी। शिवपुरी शहर के जनमानस के प्यासे कंठो को पानी पीलाने वाली जलावर्धन योजना की चालू होने की आखिरी उम्मीद सीएम साहब के वादे से थी, परन्तु सीएम से भी दोशियान कंपनी झूठा वादा कर गई या यूं कह ले के सीएम को भी ठैंगा दिखा गई कंपनी। काम चालू होने तो बात तो दुर कंपनी के ऑफिस में अभी ताले ही लटके है।

नगरपालिका से लेकर कलेक्टर आरके जैन, प्रभारी मंत्री कुसुम मेहदेले, स्थानीय विधायक और उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी दोशियान कंपनी पर दबाव नहीं डाल पाये। उच्च न्यायालय के आदेश के 51 दिनों के बाद भी दोशियान कंपनी ने सिंध जलावर्धन योजना का कार्य शुरू नहीं किया है।

कंपनी को ना तो शासन और प्रशासन का डर है और न ही उच्च न्यायालय की अवमानना का भय। हर बैठक में दोशियान कंपनी के संचालक रक्षित दोशी या महाप्रबंधक हीरेन मकवाना काम शुरू करने का आश्वासन देते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं है। ताजा हालात यह है कि दोशियान कंपनी के शिवपुरी स्थित द तर पर ताला पड़ा हुआ है। काम की देखरेख करने वाले हीरेन मकवाना शिवपुरी से पलायन कर चुके हैं।

दोशियान कंपनी से जुड़े ठेकेदार भुगतान न होने के कारण काम शुरू करने से इंकार कर चुके हैं। सूत्रों के अनुसार कंपनी को केपी कंस्ट्रक्शन को लगभग 26 लाख रूपये, कंडाल कंस्ट्रक्शन को लगभग 40 लाख, खुशी कंस्ट्रक्शन को लगभग 18 लाख रूपये और यादव कंस्ट्रक्शन को लगभग 50 लाख रूपये का भुगतान करना है।

सन 2009 में 81.07 करोड़ की इस योजना के लिए केन्द्र और प्रदेश सरकार ने मिलाकट कुल जमा 53.68 करोड़ रूपये का फण्ड ही दिया। शेष राशि की पूर्ति के लिए इस योजना को पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप में बदलना पड़ा। योजना के लिए 27 करोड़ रूपये दोशियान कंपनी ने वहन करना स्वीकार किया और इसके एवज में 23 साल तक कंपनी को उपभोक्ताओं तक पानी पहुंचाने और जलकर की बसूली के अधिकार मिल गए। यहां तक तो फिर भी ठीक था। अनुबंध के तहत सित बर 2011 तक योजना पूर्ण होनी थी।

लेकिन यह नहीं हुआ और इसकी किसी ने परवाह भी नहीं की। नगरपालिका और दोशियान कंपनी ने सिर्फ एक-दूसरे को दोषी ठहराया। दोशियान कंपनी के प्रबंधक हीरेन मकवाना का तर्क है कि इसके लिए नपा जि मेदार है, क्योंकि जो विभिन्न स्वीकृतियां और अनुमतियां नगरपालिका को लेनी थी वह उन्होंने समय पर नहीं ली। नेशनल पार्क क्षेत्र में खुदाई और पाइप लाइन डालने की अनुमति काफी विलंब से मिली।

इसका परिणाम यह हुआ कि समय पर यह योजना पूर्ण नहीं हुई और इसके दुष्प्रभाव के रूप में योजना की लागत 81.07 करोड़ रूपये से बढ़कर लगभग 110 करोड़ रूपये पर पहुंच गई। दोशियान कंपनी इस बढ़ी हुई राशि की मांग कर रही है। वहीं उसका कहना है कि अनुबंध में शहर में 150 किमी पाइप लाइन डालना है। जबकि सेटेलाइट सर्वे के हिसाब से 260 किमी पाइप लाइन डाली जाएगी। इस अतिरिक्त कार्य के भुगतान की मांग भी दोशियान कंपनी कर रही है।

इस योजना में एक समस्या यह भी आई कि जब 11 जून 2013 को मु य वन संरक्षक ने नेशनल पार्क क्षेत्र में योजना की कार्य पर अनुबंध की शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए रोक लगा दी। लेकिन चूंकि दोशियान कंपनी और नगरपालिका के बीच भुगतान को लेकर विवाद सुलझा नहीं था। इस कारण दोशियान कंपनी ने शहरी क्षेत्र में भी काम रोक दिया। एक साल के बाद एक अभिभाषक की जनहित याचिका का निराकरण करते हुए न्यायमूर्ति एसके गंगेले और न्यायमूर्ति बीडी राठी की खण्डपीठ ने वन संरक्षक के आदेश को निरस्त कर आदेश दिया कि तय समय सीमा में पाइप लाइन विछाने का काम पूर्ण किया जाए ताकि शहरवासियों को पेयजल मिल सके। इसके बाद शासन और प्रशासन लगातार चकरघिन्नी हो रहा है, लेकिन दोशियान कंपनी पर जूं नहीं रेंग रही।