शिवपुरी। आज के समय में कोई भी जेल- सही मायनों में जेल नहीं है क्योंकि जेल तो अंग्रेजों के समय में होती थी जहां कैदियों को ना-ना प्रकार की प्रताडऩाऐं दी जाती थी और उन्हें उनके अपराधों की सजा दी जाती थी लेकिन आज कोई भी कारागार जेल नहीं सुधारागृह है जहां आने वाले कैदियों को उनके जीवन में बदलाव के लिए प्रेरित किया जाता है ज्ञान, संस्कार और अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है।
अपने किए अपराध पर पश्चाताप का इससे बढ़कर कोई अन्य स्थान नहीं, इसलिए यहां आकर अपने क्रोध पर संयम पाए और जेल में होने वाले कार्यक्रमों से सीख लें और अपने जीवन को बदलें तभी आप सही मार्ग पर जा सकेंगें। जीवन में बदलाव का यह मार्ग प्रशस्त किया मुनिश्री निर्भय सागर जी महाराज ने स्थानीय जिला जेल में ना केवल कैदियों को उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रेरित कर रहे थे वरन् इस मौके पर मौजूद जिला कलेक्टर आर.के.जैन, पुलिस अधीक्षक डॉ.महेन्द्र सिंह सिकरवार, एसडीएम डी.के.जैन, जिला जेल के वरिष्ठ उप अधीक्षक व्ही.एस.मौर्य व मौजूद जैन समुदाय के सैकड़ों लोगों से आग्रह कर रहे थे कि जीवन में अपराध से दूर रहें और क्रोध पर संयम रखें।
इस दौरान मुनिश्री के आशीर्वचनों का पुण्य लाभ लेने पहुंचे कलेक्टर, एसपी,एसडीएम ने मुनिश्री के चरणों में श्रीफलभेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया। जिला जेल में कैदियों के बीच कलेक्टर श्री जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि किसी गरीब पीडि़त की सेवा करने वाला इंसान सबसे बड़ा होता है और जो अपने कर्मों के चलते जेल आए है उन्हें यहां से सीखकर जाना चाहिए कि अपने द्वारा की गई गलती से एक नहीं बल्कि पूरे परिवार पर प्रभाव पड़ता है इसलिए अपराधों से दूर रहें और क्रोध पर काबू करें। पुलिस अधीक्षक डॉ.सिकरवार ने कहा कि बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले, इसी वाक्य पर कैदी चले तो जीवन बदल जाएगा।
कार्यक्रम में श्री चन्द्रप्रभु दिग बर जैन समाज के अध्यक्ष सूरज जैन द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों व जेलर श्री मौर्य का शॉल-श्रीफल व माल्यार्पण कर अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर मुनिश्री निर्भय सागर जी महाराज ने भारतीय संस्कृति पर भी प्रकाश डाला और कहा कि हाथ मिलाना हमारी पंरपरा नहीं, संस्कृति नहीं, हमारी परंपरा और संस्कृति हाथ जोडऩे से है मुनिश्री ने देानों हाथ जोडऩें के भाव को भी बड़े सरल तरीके से समझाया। इस दौरान मुनिश्री ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से धार्मिक उपदेश देकर इंसान को भगवान बनने की ओर अग्रसर किया।
मुनिरी ने प्रवचनों के दौरान कैदियों से उनके अपराधों से दूर रहने के तीन संकल्प भी लिए जिसमें मांॅस का सेवन नहीं करना, नशे से दूर रहना और पराई स्त्री पर बुरी नजर ना डालना इन तीनों संकल्प पर चलने वाला मनुष्य कभी अपने मार्ग से नहीं भटकेगा और उसका कल्याण हो जाएगा। कैदियों ने भी पूर्ण विश्वास दिलाते हुए इन संकल्पों पर चलने का संकल्प लिया और मुनिश्री के आशीवर्चनों से प्रभावित नजर आए।
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