चारित्र से नष्ट होते हैं हमारे राग और द्वेष: मुनिश्री कुन्थुसागर जी

शिवपुरी. जैसे दो प्रकार के करन्ट हुआ करते हैं एसी और डीसी एक चिपकाता और दूसरा फेंकता है, ठीक उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के पास राग द्वेष रूपी दो प्रकार के करन्ट हुआ करते हैं, राग चिपकाता है और द्वेष अलग करता है।
जहां पर राग रहता है वहां पर द्वेष अवश्य पाया जाता है कई लोगों का कहना रहता है कि मैं किसी से द्वेष नहीं करता लेकिन किसी से राग तो करता है और जहां पर राग होता है वहां पर द्वेष अवश्य होता है। क्योंकि आकर्षण का नाम राग और विकर्षण का नाम द्वेष है। 

जब किसी से आकर्षण होगा तो निश्चित किसी अन्य से विकर्षण अवश्य होगा यदि इस राग द्वेष के करन्ट से बचना चाहते हो तो वीतरागता का कुचालक यंत्र स्वीकार करना ही पड़ेगा और यह किसी चारित्रवान गुरु के चरणों में ही प्राप्त हो सकता है। उक्त प्रवचन परम पूज्य संत षिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक षिष्य मुनि श्री 108 कुंथु सागर जी महाराज ने महावीर जिनालय में अपने बिषेष प्रवचनों के दौरान दिये।

चौबीस तीर्थंकर विधान एवं मानस्थंभ महामस्तकाभिषेक का आयोजन 22 से

स्थानिय महावीर जिनालय में आगामी 22 अक्टूवर से 26 अक्टूबर तक श्री चौबीस तीर्थंकर विधान का आयोजन वृहद रूप में किया जा रहा है। जिसमें सकल दिगम्बर जैन समाज द्वारा जिनेन्द्र भगवान की अर्चना की जायेगी। साथ ही इस अवसर पर मानस्तंभ महामस्तकाभिषेक महोत्सब का भी आयोजन किया जा रहा । 

उक्त मंगल विधान पूज्य मुनिश्री के सान्निध्य में राहतगढ़ से पधारे ब्र. भैया श्री धीरज जी के द्वारा संपन्न कराया जायेगा। उक्त विधान में इंद्र- इंद्राणी बनाने का कार्य प्रारंभ हो चुका है, तथा अभी तक 70 जोड़ों की तथा 50 इंद्राणियों की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। विधान में इंद्र- इंद्राणी बनने हेतु अल्पेष जैन, मनोज जैन, चंद्रसेनजैन, अनिल जैन या महावीर जिनालय में संपर्क किया जा सकता है। इस विधान की तैयारियां महावीर जिनालय पर बड़े जोर ष्षोर स ेचल रहीं है। साथ ही बाहर से पधारे हुये अतिथियों को नि:षुल्क भोजन तथा आवास की व्यवस्था समिति की ओर से रखी गयी है।