शर्म आती है यशोधराजी, आपका प्रशंसक होने पर

श्रीमद डांगौरी। 250 साल से ज्यादा हो गए। हमारे परदादा, फिर दादा, फिर पिताजी और अब हम, गर्व करते हैं कि हम शिवपुरी के निवासी हैं। वो शहर जिसे माधौ महाराज ने बसाया था। 1947 के बाद से जितने भी चुनाव हुए आपके इशारे पर हर योग्य-अयोग्य को वोट दिए, जिताया। घुड़सवारी करते-करते आप राजनीति करने आ गई। आपका भी स्वागत किया। हमें मालूम है कि हम आजाद हैं, अब आपका राज नहीं है फिर भी आपको श्रीमंत कहा, सम्मान दिया। आपको तो जिताया ही, आपने जिस भी अयोग्य की तरफ इशार किया, उसे वोट दिया, जिताया।

दशकों बीत गए। आप एक हेंडपंप लगवाते हो तो ऐसे एहसान जताया जाता है आप भागीरथ हो और शिवपुरी के लिए गंगा ले आईं हो। आप नहीं होतीं तो हम फिर से आदिवासी हो जाते। माना कि आप दूसरे मंत्रियों और विधायकों की तरह भ्रष्ट नहीं हो। आप जातिवादी नहीं हो और आप वोटबैंक के लिए झूठ नहीं बोलतीं परंतु विकास की जो उम्मीद हम आपसे करते हैं, वो भी तो दिखाई नहीं दे रहा।

आज बहुत दुख हो रहा है। गुस्सा भरा हुआ है। वो ग्राम पंचायत जैसा दतिया शहर जिसे इंदिरा गांधी की कृपा से जिले का दर्जा मिल गया था, आज अत्याधुनिक शहर बन गया है। नगरनिगम के समकक्ष दर्जा मिल गया है। हमें उससे जलन नहीं होती, हमें तो अपने उसे फैसले पर पछता रहे हैं जब हमने आजादी के बाद भी आपको गर्व से चुना था। सोचा था माधौ महाराज ने जैसा विकास किया है, वैसा ही आप लोग भी करोगे लेकिन आज
शर्म आती है यशोधराजी, आपका प्रशंसक होने पर।