जीवन में सुसंगति बनी रहेगी तो ही कुसंगति से बच सकते हैं: साध्वी डॉ. विश्वेश्वरी देवी

शिवपुरी। गांधी पार्क में चल रही संगीतमय श्रीराम कथा में साध्वी डॉ. विश्वेश्वरी देवी ने कहा कि संघ को जीतना बड़ा मुश्किल है, आप समाज के बीच में रहो तो समाज की बुराइयों से दूर रहना बड़ा मुश्किल है। जहां जिसकी संगति में ज्यादा रहोगे उसका थोड़ा-थोड़ा रंग तो लग ही जाएगा। इसलिए संतों ने कहा कि कुसंगति से बचना बड़ा मुश्किल है, पर इतना जरूर है कि जीवन में सुसंगति करते रहोगे तो कुसंगति से बचते रहोगे। अच्छा संघ करोगे तो जीवन शुभ दिशा की ओर चलेगा। साध्वी जी ने कहा कि ये मानव शरीर ही मोक्ष का द्वार है। यदि इसको प्राप्त करने के बाद भी वहां तक नहीं पहुंच पाए तो सबसे बड़ी हानि यही है कि मनुष्य शरीर प्राप्त करके भी भगवत साक्षात्कार नहीं हुआ। 

साध्वी जी ने  श्रीमद भागवत कथा में भक्ति के नौ रूप बताए जिनमें श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन। आज आठवी भक्ति सख्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें तुम उसकी सुन सकते है और अपनी सुना सकते हो। मित्रता आज स्वार्थ के वशीभूत हो गई है। 

अगर गलत दिशा में कोई चला रहा है अगर उसे आप सही दिशा में ले आओ तो ही मित्रता सच्ची है, लेकिन आज तो मित्रता पीने खाने की ज्यादा चल रही है। लोग कहते हैं कि आप हमारे दोस्त हो तो मैं कहूं वैसा करना पड़ेगा। यहां बताना होगा कि आज कथा का अंतिम दिन था और शुक्रवार को कथा का विश्राम होगा।

भगवान ने तीन मित्र बनाए जिनकी प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न थी
भगवान ने मनुष्य जीवन में तीन मित्र बताए, निषादराज, सुग्रीव और विभीषण। तीनों मित्र अलग-अलग प्रवृत्ति के थे। निषादराज ऐसे मित्र थे जिन्होंने पहली ही मुलाकात में भगवान को सब समर्पित कर दिया। 

दूसरा सुग्रीव, जिसके बारे में भगवान को हनुमान जी ने बताया कि भगवान इस पर्वत पर सुग्रीव रहता है उसके साथ मित्रता कर लीजिए, जिस पर भगवान ने कहा कि मित्रता करनी हो तो वह आए, हनुमान जी ने कहा कि वह उन लोगों में से नहीं है जिसे भगवान की जरूरत हो, कई लोग ऐसे हैं जिनकी भगवान को जरूरत पड़ती है, लेकिन उन्हें भगवान की नहीं सुग्रीव भी वो है। यही हाल आज मनुष्यों का है।

 आपको कोई संत, कोई गुरू जबर्दस्ती भगवान तक ले जाए तो ले जाए, कुछ जीव तो ऐसे हैं जो भगवान के पास जाना ही नहीं चाहते। यहां हनुमान जी ने दोनों ओर की कथा सुनाकर मित्रता करा दी। भगवान ने सुग्रीव को अपना असली रूप बताया और कहा कि तुम्हारा असली मित्र मैं ही हंू। 

सुग्रीव को राज गद्दी मिल गई, परिवार मिल गया। सुग्रीव जिसे सबकुछ मिल गया, लेकिन इसके बाद भी वह भगवान को भूल गया। साध्वीजी ने कहा कि जीवात्मा और परमात्मा मित्र तो हैं, लेकिन जब से यह जीवात्मा संसार में आ गया तब से असली मित्र को भूल गया। तीसरा मित्र भगवान ने विभीषण को बनाया जिसे भगवान ने राज गद्दी दिलाई। यहां भगवान के तीनों सखाओं का उल्लेख आज के तीनों प्रकार के व्यक्तियों से है।