पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन कल मनेगा क्षमावाणी पर्व

शिवपुरी। गुलाबपुरा राजस्थान और गुजरात से आए दो जैन श्रावक पोषद भवन में पर्यूषण पर्व के दौरान धर्म की गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। आठ दिन तक चलने वाले पर्यूषण पर्व के सातवें दिन श्रावकों ने दान की महिमा पर प्रकाश डाला और दानों में अभयदान को सबसे बड़ा दान बताया। कल पोषद भवन में क्षमावाणी पर्व मनाया जाएगा और इस दिवस पर अधिकांश जैन धर्मावलंबी उपवास कर अपने कर्मों की निर्जरा करेंगे एवं रात को प्रतिक्रमण कर संसार के समस्त प्राणियों से विगत एक वर्ष में हुई भूलों के लिए क्षमा याचना करेंगे। जैन धर्म में  क्षमावाणी पर्व का विशिष्ट महत्व है और इसेे आत्मशुद्धि का पर्व कहा जाता है। 

पोषद भवन में प्रतिदिन सुबह 8:45 से 10 बजे तक प्रवचन हो रहे हैं जिसमें शास्त्र श्रमण के साथ साथ जैन धर्म के सिद्धांतों और आदर्शों पर प्रकाश डाला जा रहा है। सुबह से लेकर शाम तक णमोकार महामंत्र का जाप भी चल रहा है वहीं शाम को 7 बजे से प्रतिक्रमण भी हो रहा है। सांतवे दिन आज गुजरात से आए श्रावक विनोद सूर्या ने अंतगढ़ सूत्र  का वाचन किया और उन्होंने बताया कि दान से कैसे परम पद प्राप्त किया जा सकता है।

जबकि गुलाबपुरा राजस्थान से आए श्रावक श्री दांगी ने असीमित संपदा के मालिक शालीभद्र का  उदाहरण देते हुए कहा कि पिछले जन्म में बालक के रूप में उन्होंने बेहद गरीब परिवार में जन्म लिया था। मां से रोते हुए उन्होंने खीर खाने की जिद की थी जिस पर मां कहीं से दूध और कहीं से शक्कर लाई और उनके लिए खीर बनाई। 

खीर बनाने के बाद मां ने उसे ठंडा करने के लिए थाली में रख दिया और पुत्र से कहा कि जब ठंडी हो जाए तब खाना। इसके बाद मां पानी भरने चली गई उसी समय छ: माह की तपस्या कर रहे मुनिराज भिक्षा के लिए उस घर में आए और बालक ने भावना सहित पूरी खीर मुनिराज के पात्र में डाल दी तथा बाद में भूख से बालक की मृत्यु हो गई और इस सुपात्र दान का परिणाम यह हुआ कि उन्होंने शालीभद्र के रूप में असीम संपदा का वरण किया। 

श्रावक जी ने कल क्षमावाणी पर्व के महत्व को बताते हुए कहा कि जैन धर्म में क्षमावाणी पर्व की महिमा अपरंपार है और क्षमावाणी पर्व पूर्ण भावना के साथ उपवास कर मनाना चाहिए तथा प्रतिक्रमण कर संसार के समस्त प्राणियों से अपनी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गलतियों के लिए क्षमा याचना करना चाहिए इससे जीवन निर्मल और पवित्र बनता है।