अपने जीवन में शुभता लाकर ही कल्याण संभव है: मुनि श्री अजितसागर

शिवपुरी। किसी भी वस्तु को प्राप्त करना कठिन नहीं है, बल्कि उसका सदुपयोग करना कठिन हैं। हमें यदि मानव पर्याय मिली है, तो इसका सदुपयोग करना चाहिये। रावण का जीवन जहाँ अशुभता से भरा था, वहीं राम का जीवन शुभ की ओर था। हनुमानजी ने भी राम के भक्त बन कर शुभता को प्राप्त किया। हमें भी अपना आचरण सुधार कर, समाज एवं देश की उन्नति में सहायक बनना चाहिय। उक्त मंगल प्रवचन स्थानीय महावीर जिनालय पर पूज्य मुनि श्री अजितसागर जी महाराज ने कुंदकुद का कुंदन ग्रंथ का वाचन करते हुये, विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुये दिये।

उन्होंने कहा कि मानव पर्याय बड़ी मुश्किल से मिली है। अत: अशुभ से हटकर शुभ में अपनी दृष्टि लगाना चाहिए। जिस प्रकार बल से बलवान, धन से धनवान बनता है, ठीक उसी प्रकार गुणों से गुणवान बनते हैं। हम सभी अपना जीवन दीपक और फूल जैसा बनाएं, क्योंकि दीपक उजाला देकर और फूल सुगंध देकर हर प्राणी मात्र पर उपकार करता है। 

परंतु जिस प्रकार दीपक जलता रहे, इस हेतु घी-तेल-बाती का ख्याल रखा जाता है, उद्यान में फूल खिले रहें, तो खाद-पानी देना आवश्यक है। उसी प्रकार जीवन में भी गुणों की उपस्थिति के लिये गुरुसेवा, दानशीलता, संयम, तत्परता एवं गुरुभक्ति में तल्लीनता होना पड़ता है। यही पुण्योदय से प्राप्त मानव पर्याय का सदुपयोग करना है। हमारी अशुभ प्रवृति विषय-वासना और दु:ख की ओर ले जाती है, परन्तु मर्यादित खान-पान, रहन-सहन, बोली, बोलचाल और गुरुओं के प्रति आस्था हमें शुभ की ओर ले जाती है।

आगे उन्होंने कहा कि इतिहास में देखें तो रावण का जीवन अशुभ की ओर था। परन्तु राम का जीवन शुभ की ओर था। और हनुमान जी भी राम के भक्त बन कर शुभ उपयोगी रहे। इसी शुभता के कारण राम और हनुमान ने अपना कल्याण कर लिया। हम सभी को भी हनुमानजी से शिक्षा लेकर राम के भक्त बन कर अपना आचरण सुधारना चाहिये। और समाज देश एवं उनकी उन्नति में सहायक बनना चाहिये।