यह देखों दिया तले अंधेरा: प्रवेश द्वार पर डीपी, बिना लाईट के पडते बच्चे

शिवपुरी। कहावत है कि दिया तले अंधेरा इस कहावत को चरितार्थ करता शासकीय प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालय मोहनी सागर कॉलोनी साफ-तौर पर देखा जा सकता है। यहां प्रवेश द्वार पर डीपी तो लगी है जिससे पूरी कॉलोनी के शासकीय आवास रोशन हैं, लेकिन यदि अंधेरा है तो वहां जहां उनके जीवन में प्रकाश लाने के लिए बच्चों को पढ़ाया जाता है। 

जी, हां, शिवपुरी शहर के वार्ड क्रं. 31 की पॉश कॉलोनी मोहनी सागर में शासकीय प्राथमिक विद्यालय और शासकीय माध्यमिक विद्यालय एक ही परिसर में संचालित हैं। यहां तकरीबन प्रत्येक में 150 बच्चे अध्ययनरत हैं, वहां न तो बिजली है और न ही साफ-सफाई के लिए कोई भृत्य। इस संबंध में जब दोनों संस्थाओं के प्रमुखों से पूछा गया तो उनका कहना था कि शासन की ओर से कोई प्रावधान न होने के कारण यह दोनों व्यवस्थाएं नहीं हैं।

इस संबंध में जब प्रशासन स्तर से जानने का प्रयास किया गया तो इनकी बात सत्य निकली और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना था कि शासन ने फिलहाल इन स्कूलों के लिए बिजली कनेक्शन अथवा भृत्य का कोई प्रावधान नहीं रखा है। हां, इतना अवश्य है कि हाईस्कूल में बिजली कनेक्शन के लिए अवश्य सर्वे किया जा रहा है। संभव है कि आगामी वर्षों में हाईस्कूलों में बिजली व्यवस्था उपलब्ध करवा दी जाए। सवाल यह उठता है कि यहां एक ओर शासन-प्रशासन शिक्षा प्रणाली के सुधार पर इतना कार्य कर रहा है वहीं दूसरी ओर स्कूल अंधेरे में हैं जो शासन के चाल-चरित्र और चेहरे को उजागर करता नजर आ रहा है। 

साफ-सफाई के लिए भृत्य तक की नहीं व्यवस्था
शासकीय स्कूलों की आज जो दशा है उसमें कहीं न कहीं शासन भी जिम्मेदार नजर आता है, क्योंकि जहां स्कूलों में एक सैकड़ा से लेकर कई सैकड़ा तक बच्चे अध्ययन करते हों, ऐसे स्कूलों में साफ-सफाई, पानी आदि के लिए एक भृत्य तक की व्यवस्था न होना शासकीय प्रणाली को कटघरे में खड़ा करता है, क्योंकि बिना भृत्य के स्कूलों में शासन ने साफ-सफाई का जिम्मा किसके भरोसे छोड़ रखा है। 

मोदी के स्वच्छता अभियान पर प्रदेश सरकार का प्रहार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ध्यान यदि सबसे ज्यादा किसी बात पर है तो उनका सर्वाधिक प्राथमिकता वाला अभियान स्वच्छता अभियान है और इसी स्वच्छता अभियान की कहीं कलई खुलती नजर आती है तो वो है शासकीय विद्यालय, क्योंकि इन शासकीय विद्यालयों के साफ-सफाई के लिए न तो वहां काई स्वच्छता कर्मचारी की तैनाती है और न ही भृत्य की। ऐसे में स्कूलों में साफ-सफाई किसके हवाले छोड़ी गई है यह समझ से परे है। शासकीय अभियान के तहत स्कूलों में शौचालय तो बनवाए गए, लेकिन उनकी साफ-सफाई के लिए कोई सफाई कर्मचारी नहीं, ऐसे में मोदी का यह अभियान कैसे सफल होगा? जहां शासकीय विद्यालयों में सफाई करने के लिए कोई भी कर्मचारी की तैनाती नहीं है। वहीं शासन के सख्त निर्देश है कि शिक्षक ने यदि छात्र एवं छात्राओं से विद्यालय की सफाई करार्ई तो शिक्षक के विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी। ऐसी परिस्थिति में विद्यालय की सफाई या तो शिक्षक करे अथवा विद्यालय को गंदा रखा जाए। 

बीएलओ के नाम पर लापता शिक्षक
स्कूल की शिक्षा प्रणाली को प्रशासन की बीएलओ व्यवस्था भी कमजोर कर रही है, क्योंकि प्रत्येक स्कूल से शिक्षकों को बीएलओ बनाकर चुनाव कार्य में लगा दिया गया है जिससे वे स्कूल आते ही नहीं है और हर समय बीएलओ कार्य पर होने की बात कहकर स्कूल से मुंह मोड़े रहते हैं, जिसके कारण स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है।