शिवपुरी का गौरव: संत चिदानंद विजय को मिला आचार्य पद का अलंकरण

शिवपुरी। शिवपुरी के गौरव जैन संत चिदानंद विजय जी को कल राजस्थान प्रांत के पाली जिले के तीर्थस्थल जैतपुरा के खचाखच भरे पांडाल में उनके गुरू, राष्ट्र दूत श्रीमदनित्यानंद सूरिश्वर जी महाराज ने आचार्र्य की पदवी से अलंकृत किया। गुरूवर ने उन्हें पांच घंटे तक चले समारोह में सूरीमंत्र प्रदान कर आचार्र्य घोषित किया। इसके पहले संत चिदानंद विजयजी महाराज ने पाण्डाल में विराजित भगवान की प्रतिमाओं को नमन किया और अपने आचार्य को वंदन कर उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। आचार्य श्रीमद विजय नित्यानंद सूरीश्वर महाराज ने उन्हें सूरी मंत्र पढक़र सुनाते हुए उसके महत्व से वहां उपस्थित धर्मप्रेमियों को अवगत कराया। 

आचार्य घोषित होने के बाद नवीन आचार्य को कामली (चादर) ओढ़ाने का सौभाग्य उनके सांसारिक परिवार खजांचीलाल जी, दीवानलाल जी लिगा ने बोली का चढ़ावा लेकर प्राप्त किया जबकि बोली द्वारा ही नवीन आचार्य को सूरी मंत्र खड़ोला जैन श्रीसंघ ने प्रदान करने का सौभाग्य अर्जित किया। 

इस ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण अवसर के साक्षी बनने के लिए संत चिदानंद विजय जी की जन्मस्थली शिवपुरी सहित पूरे देश में फैले हजारों गुरू भक्त उपस्थित थे। आचार्य पदवी धारण करने के बाद पंन्यास प्रवर चिदानंद विजय जी अब आचार्य श्री चिदानंद सूरीश्वर जी महाराज के नाम से जाने जाएंगे। 

धार्मिकता और भावुकता से भरे समारोह में अपने समकक्ष आचार्र्य घोषित करने वाले गुरूवर श्रीमद विजयनित्यानंद सूरिश्वर जी ने अपने संबोधन में कहा कि चर्तुविघ संघ की इच्छा और भावना के अनुरूप वह अपने प्रथम शिष्य को आचार्य पदवी से सुशोभित कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में जिन धर्र्म की पताका चारों दिशाओं में फहरेगी। 

उन्होंने यह भी कहा कि जब चर्तुविघ संघ से इस विषय में सलाह की गर्ई तो साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका सभी का यही मानना था कि पन्यास प्रवर चिदानंद विजय जी को आचार्र्य घोषित करने में काफी देरी हुई है। जैन संतों की परंपरा में आचार्र्य पद सबसे बड़ा माना जाता है और आचार्र्य को चर्र्तुविघ संघ (श्रावक, श्राविका, साधु, साध्वी)का सिरमोर अर्थात नायक माना जाता है। 

आचार्य घोषित करना महज परंपरा या संतत्व जीवन की वरिष्ठता के आधार पर नहीं होता। बल्कि इसके लिए पात्रता प्राप्त करनी होती है। आचार्य भगवंत के जैन शास्त्रों के अनुसार 36 गुण होते हैं। इनमें पंचेन्द्रिय पर नियंत्रण और क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारों पर विजय एवं हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्र्य, परिग्रह को त्यागना सबसे महत्वपूर्र्ण है। 

इस कसौटी पर कसकर ही आचार्य श्री नित्यानंद सूरिश्वर जी महाराज ने अपने शिष्य को आचार्य घोषित किया। धर्मसभा में गुरूवर ने कहा कि पारिवारिक संस्कार और पूर्वजन्म के संस्कार के कारण ही कपिल कुमार जैन  मुनि बने हैं। 


हालांकि बचपन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडक़र वह समाज सेवा करना चाहते थे, लेकिन उनके पिता स्व. खजानचीलाल जी ने जब परिवार के अन्य सदस्यों की व्यस्तता के चलते आचार्य श्रीमद विजय इन्द्रदिन सूरिश्वर जी  महाराज साहब की निश्रा में संक्राति के आयोजन में भाग लेने भेजा तो पहली संक्राति में ही आचार्र्य जी के प्रेरक प्रवचन से उनके जीवन की दशा बदल गई। 

हालांकि बचपन में फक्कड़ बाबा के नाम से प्रसिद्ध मुनिभूषण श्री बल्लभदत्त विजय जी महाराज ने सन् 1974 में अपने शिवपुरी चार्तुमास के अवसर पर सेठ खजानचीलाल जी से कहा था कि उनका बालक कपिल कुमार एक दिन जिन शासन की ध्वजा को चारों दिशाओं में फहराने वाला होगा। 

संक्राति से जीवन की बदली दिशा से कपिल कुमार ने परिवार की सहमति से सन 1984 में जैन दीक्षा ली और गुरू सेवा, स्वाध्याय को समर्र्पण एवं विनम्रता तथा बुद्धि कौशल के कारण गुरूवर नित्यानंद विजय जी महाराज ने सन 2008 में जैतपुरा तीर्थ में ही उन्हें पन्यास पदवी से अलंकृत किया।

शिवपुरी से 150 से अधिक धर्मप्रेमी बने साक्षी
1984 के बाद शिवपुरी श्री संघ की विनती के पश्चात आचार्य चिदानंद विजय  जी को उनके गुरू ने सन् 2011 का चार्तुमास शिवपुरी में करने की अनुमति दी और उस चार्तुमास में संत चिदानंद विजय जी ने जैन और जैनेतर समाज के लोगों पर अपनी अनूठी छाप छोड़ी जिसके चलते उनके आचार्य पदवी ग्रहण करने के अवसर पर जैतपुरा पहुंचने वालों में जैन और जैनेतर समाज के सैकड़ों लोग थे।

जिनमें पोहरी विधायक प्रहलाद भारती भी शामिल हैं। आचार्य बनने के बाद उन्हें कामली (चादर)पहनाने की बोली उनके सांसारिक परिवार ने पूर्ण भक्तिभावना के साथ ली।