क्षमादिवस: पृथ्वी की तरह अपने मन में क्षमाभाव धारण करें- मुनिश्री

शिवपुरी। आज का यह मंगल दिवस क्षमावाणी जिसके प्रारंभिक शब्द में क्षमा जुड़ा हुआ हैं। अपने आप में कह रहा है कि प्राणिमात्र के प्रति क्षमाभाव रखें। पृथ्वी को क्षमा भी कहा जाता है। आज धरती से हमें क्षमा करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

जैसे पृथ्वी हमारे सभी उत्पातों को क्षमा करती है, वैसे ही हम सभी के प्रति अपने मन में क्षमा का भाव धारण करें तो हमारा ये क्षमावाणी पर्व मनाना सार्थक हो जायेगा। उक्त उद्गार स्थानिय श्री चंद्रप्रभू जिनालय निचला बाजार पर पर क्षमावाणी पर्व के अवसर पर पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य पूज्य मुनि श्री अभय सागर जी महाराज, पूज्य मुनिश्री प्रभातसागर जी महाराज एवं पूज्य मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज ने दिये।

पूज्य मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि- हमारी अनंतकलिन यात्रा जो संसार में चल रही है। वह मात्र भटकानें में कारण हैं किंतु तीर्थंकर का जीव अपने अंदर प्राणी मात्र के प्रति क्षमा की भावना भाता है और संसार से पार हो जाता है। हमें देखना है कि हमारी वाणी में क्षमा है या क्षमा में वाणी है। आज हम उनसे क्षमा माँगें जिनसे हमारा बैर है, यदि ऐसा हुआ तो वास्तव में क्षमा की वाणी हो जायेगी।

पूज्य मुनि श्री प्रभातसागर जी महाराज ने कहा कि दसलक्षण पर्व शुरुवात क्षमा धर्म से हुयी। फि र दस दिन पर्व हमने विभिन्न धर्मो के साथ मनाया। परंतु पर्व मनाने की सार्थकता तभी है जब वह सभी धर्म हमारे जीवन में आ जायें। किसी के प्रति हमारा बैर भाव न पनपे बल्कि क्षमा भाव कायम रहे।

अपने गुस्से पर काबू रखें और गुस्से के आने पर थोडा समय निकालें अथवा कुछ गिनती गिनें तो हमारा गुस्सा शांत हो जाता है। अत: आज के दिन संकल्प लें कि जिनसे हमारा बैर चल रहा है तो तुरंत उससे जा कर क्षमा माँग लें। क्षमा माँगने से न कोई छोटा होता है, न कोई शर्म की बात है।

पूज्य मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज ने कहा कि आज क्षमावाणीपर्व है। भगवन दीक्षा लेकर मौन हो जाते हैं। और भावना भाते हैं कि संसार के सभी जीवों का कल्याण हो। उस वक्त छ: ऋतू के फ ल एक साथ आ जाते हैं। कितनी अच्छी भावना होगी उस जीव की, जिसके सामने सब मिल-जुलकर रहते हैं परन्तु आज प्राणी बंटता जा रहा है।

आज मै-मैं के कारन मनुष्य अपनी स्वार्थ की सिद्धि में लगा है। मुनि प्राणिमात्र की रक्षा की भावना भाते है। और मनुष्य अपने स्वार्थ सिद्धि में लगा है। महावीर का धर्म वो है। जब भी कोई अच्छा कार्य करे प्रशंशा करने से चुके नहीं।

क्षमावाणी का पर्व आया है तो उस प्राणी के पैर छुओ जिससे तु हारा बोलचाल नहीं है। जब पुराना कैलेंडर बदल गया तो तुम पुरानी बातें क्यों लेकर बैठे हो। जैन लिखने से पहले जैन के चार लक्षण आना चाहये। जब भी बोलो मीठा बोलो, नहीं तो मुख मत खोलो।

 जैन समाज का बार्षिक क्षमावाणी व बार्षिक फूलमाल महोत्सव आज स्थानिय श्री चंद्रप्रभू जिनालय निचला बाजार पर सामूहिक रूप से मनाया गया। इस अवसर पर जिनेन्द्र भगवान का का अभिषेक, शांतीधारा, पूजन किया गया। शांतीधारा का सौभाग्य चितरंजन जैन तथा अरिहंत फ र्निचर परिवार को मिला।

साथ ही मंदिरजी की बार्षिक फूलमाला का सौभाग्य अरिहंत फ र्निचर परिवार को मिला। तदुपरांत सकल दिग बर जैन समाज का क्षमावाणी कार्यक्रम आयोजित हुआ और सभी ने गले मिलकर एक दूसरे से क्षमा माँगी।