आज से श्रीहरि विष्णु गए पाताल लोक में राजा बलि के यहां शयन करने

शिवपुरी। हिन्दू पंचांग की मान्यता के अनुसार इस दिन से चार महीने तक भगवान विष्णु का शयनकाल होता है। इस दौरान विवाह, हवन-यज्ञ, गृहप्रवेश और मुंडन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। भागवत कथा, भजन-कीर्तन जैसे आयोजन होते हैं। 31 जुलाई को गुरुपूर्णिमा मनाई जाएगी। इसमें शिष्य गुरुजन की पूजा करते है।

1 अगस्त से श्रावण मास शुरू होगा। इसमें भगवान शिव का विशष पूजन-अर्चन किया जाता है। मान्यता है चार महीने में सृष्टि के भरण-पोषण का कार्यभार भगवान शिव पर होता है इसलिए उनकी आराधना की जाती है। इस दौरान नागपंचमी, रक्षाबंधन, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा और दीपावली जैसे मु य त्योहार आते हैं। भाई-दूज के बाद देव प्रबोधिनी एकादशी आती है। इस दिन भगवान जागते हैं। इससे मांगलिक कार्य, विवाह, देव प्रतिष्ठा हवन-यज्ञ आदि शुरू होते हैं।

पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यंत (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को देवशयनी तथा कार्तिकशुक्ल एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, ग्रहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं।

भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है। हरिशयन का तात्पर्य इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण या सो जाती है।

आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि कि चातुर्मास्य में (मु यत: वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया।

अत: उसी दिन से आर भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में स पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा।

इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया।

तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।