ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा से असंभव कार्य भी होते हैं संपन्न: साध्वी शुभंकराश्रीजी

शिवपुरी। ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास से न केवल बिगड़े हुए काम, बल्कि असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। यह श्रद्धा का ही चमत्कार है कि महर्षि बाल्मीक राम के स्थान पर मरा मरा का जाप करते हुए भी तर गए। उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन साध्वी शुभंकराश्रीजी ने आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। धर्मसभा में साध्वी धर्मोदया श्रीजी ने अपने प्रवचन में बताया कि मनुष्य भव के लिए देवता भी तरसते हैं क्योंकि मनुष्य जप, तप और धर्म ध्यान के द्वारा ईश्वर पद भी प्राप्त कर सकता है जबकि देवताओं के लिए यह संभव नहीं है।

साध्वी शुभंकराश्रीजी ने धर्मोपदेश देते हुए श्रद्धालुओं को ज्ञान देते हुए कहा कि हम इसलिए संकट में पड़ते हैं क्योंकि ईश्वर के प्रति हमारा विश्वास उतना गहरा नहीं है। उन्होंने कहा कि अपने आपको ईश्वर के हवाले कर दो और प्रभु से कहो कि अब मेरी नैय्या आपके हाथों में है चाहो तो पार करो और चाहो तो डूबो दो। लेकिन हमारा अहंकार इतना प्रबल होता है कि ईश्वर को भी श्रेय देना हम नहीं चाहते। जो कुछ अच्छा हुआ वह मैंने किया और यदि गलत हुआ तो इसके दोषी दूसरे हैं। यह अहंकार ही हमारे धार्मिक उत्थान में बाधक है। अहंकारी व्यक्ति ईश्वर के प्रति श्रद्धा रख ही नहीं सकता। भक्तामर स्त्रोत की चर्चा करते हुए साध्वी शुभंकराश्रीजी ने कहा कि इसकी रचना आचार्य मानतुंग ने की थी जो सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी परमात्मा के प्रति श्रद्धा इतनी प्रबल थी कि भक्तामर स्त्रोत के 48 श£ोकों का पाठ कर उन्होंने 48 तालों को खोल दिया था।  साध्वी धर्मोदयाश्रीजी ने अपने उद्बोधन में भगवान महावीर की देशना की चर्चा करते हुए कहा कि केवल ज्ञान प्राप्त करने के बाद उनकी पहली देशना इसलिए असफल हो गई क्योंकि इसमें सिर्फ इसमें देवता शामिल थे। उन्होंने कहा कि देवता भक्तिभावना भा सकते हैं लेकिन व्रत, उपवास और संयम रखना उनकी प्रवृत्ति में नहीं है। जबकि व्रत, उपवास और संयम से ही धार्मिक उत्थान संभव है।

5 अगस्त से प्रारंभ होगा भक्तामर संपूट पूजन
गुरूवर्या की निश्रा में 5 अगस्त से 16 अगस्त तक भक्तामर संपूट पूजन का आयोजन किया जा रहा है जिसमें समस्त जैन समाज (दिग बर एवं श्वेता बर) ााग लेगा। यह पूजन प्रात: 9 बजे से 11 बजे तक चलेगा। पूजन के संबंध में साध्वी सूर्योदयश्रीजी ने बताया कि आराधक को पूजा की ड्रेस में चावल, फल, मीठा एवं आसन साथ लेकर आना है।

18 अगस्त को होगा कालसर्प एवं नवग्रह दोष निवारण पूजन
जिन श्रावकों की कुण्डली में कालसर्प दोष अथवा नवग्रह दोष चल रहा है उन्हें जैन विधि द्वारा दूर करने के लिए पूजन का आयोजन 18 अगस्त को किया गया है। इस पूजन में जैन और अजैन कोई भी भाग ले सकता है। पूजन की विधि के बारे में अन्य जानकारी जैन श्वेता बर मूर्तिपूजक संघ के अध्यक्ष दशरथमल सांखला अथवा स्थानकवासी संघ के अध्यक्ष राजेश कोचेटा से ली जा सकती है।