शिवपुरी। शहर के प्रसिद्ध व्यवसायी डॉ. दीपक सांखला का 400 दिन से चला आ रहा तप आज पूर्ण हुआ। बर्षीतप के नाम से प्रसिद्ध इस तप में 243 दिन निराहार और शेष 157 दिन सूर्यास्त से पूर्व सिर्फ दो बार एक आसन पर बैठकर भोजन किया जाता है।
बर्षीतप पूर्ण होने पर उन्हें गन्ने के रस से पारणा उनके नाती पांच वर्षीय नंदन सांखला ने कराया। इस दृश्य के साक्षी बनने के लिए शिवपुरी जैन समाज के आधा सैकड़ा से अधिक लोग उपस्थित थे।
जिनमें प्रमुख रूप से डॉ. दीपक सांखला की धर्मपत्नी श्रीमती मंजू सांखला, बड़े भाई तेजमल सांखला, अनुज अशोक सांखला, संजय सांखला, प्रकाश काष्ठया, अभय कोचेटा, इंदर बुरड़ आदि प्रमुख थे।
जिन्होंने तपस्वी डॉ. दीपक सांखला की सुखसाता पूछते हुए उन्हें साधुवाद दिया। इसके पूर्ण डॉ. दीपक सांखला समोशरण तप, गौतमलब्धि तप, अक्षयनिधि तप और ओलीजी आदि भी कर चुके हैं। प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जिन्हें आदिनाथ भगवान भी कहा जाता है उन्होंने सबसे पहले बर्षीतप पूर्ण किया था और उनका पारणा भी हस्तिनापुर में हुआ था।
इस पर परा को निर्वाह करते हुए देशभर से 50 बर्षीतप के तपस्वी पारणा हेतु आज महाभारत की कर्मभूमि हस्तिनापुर में पधारे जो एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ भी है।
शहर की प्रसिद्ध व्यवसायिक फर्म कानमल-इंदरमल सांखला परिवार के डॉ. दीपक सांखला सदस्य हैं। वह इंदरमल सांखला के सुपुत्र हैं और वह प्रतिभा के धनी हैं। इंजीनियरिंग में चयन होने के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का निर्णय लिया और बीई को त्यागकर पीएमटी की परीक्षा दी जिसमें वह पहली बार ही चयनित हुए।
एमबीबीएस करने के बाद चिकित्सकीय पेशे में उनका मन नहीं रमा और उन्होंने व्यवसाय शुरू कर दिया तथा बहुत जल्द ही डॉ. दीपक सांखला शिवपुरी के प्रसिद्ध जमीन व्यवसायी हो गए। लेकिन अचानक उनके जीवन में मोड़ आया और उन्हें धर्म की लग्न लगी।
फिर वह आध्यम की ओर मुड गए । यही नहीं शिवपुरी के सैकड़ों सजातीय लोगों को वह अपने साथ स मेद शिखर, पालीताणा, गिरनारजी, हस्तिनापुर, माउंट आबू, राणकपुर, नाकौड़ा भैरव आदि तीर्थों की तीर्थयात्रा कराने ले गए। जैन संतों के दर्शनों के लिए भी सजातीय लोगों को ले जाना वह नहीं भूले।
व्यक्तित्व में कैसे चमत्कारिक ढंग से आमूलचूल परिवर्तन होता है इसकी मिसाल डॉ. दीपक सांखला हैं जिन्होंने शायद प्रसिद्ध जैन आचार्य विजयरत्न सुंदर सुरीश्वर महाराज जी की इस बात को ध्यान रखा है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि क्या आपके पास है? महत्वपूर्ण यह है कि क्या आपके साथ है और शायद डॉ. दीपक सांखला की यह यात्रा अपने साथ पुण्य कर्मों को जोडऩे की है।
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