नरवर का राजकुमार था एतिहासिक लवस्टोरी ढोला-मारू का नायक

शिवपुरी। राजस्थान मे सबसे चर्चित प्रेम कथा ढोला-मारू की प्रेम कहानी पर, राजस्थान सबसे ज्यादा लोक नृत्य और मंचन होता है, यह राजस्थान में सबसे लोकप्रिय प्रेम कहानी है। इस कहानी में शिवपुरी वासियों के लिए सबसे बडी हैरानी यह होगी कि इस कहानी का नायक नरवर के राजा नल का पुत्र है।

राजस्थान में आज भी इस प्रेमी जोड़े का जिक्र यहां के लोकगीतों में होता है। कहा जाता है कि नरवर के राजा नल के तीन साल के पुत्र साल्हकुमार का विवाह बचपन में उस समय के जांगलू देश अब बीकानेर के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री से हुआ था। बाल विवाह होने के कारण दुल्हन ससुराल नहीं गई थी।

व्यस्क होने पर राजकुमार की एक और शादी कर दी गई। राजकुमार अपनी बचपन में हुई शादी को भूल चुके थे। उधर जांगलू देश की राजकुमरी अब सयानी हो चुकी थी। उसके माता-पिता उसे ले जाने के लिए नरवर कई संदेश भेजे, लेकिन कोई भी संदेश राजकुमार तक नहीं पहुंचा।

इस कहानी के लोक नृत्यो और मंचन में दिखाया जाता है कि राजकुमार की दूसरी पत्नी राजा पिंगल द्वारा भेजे गए संदेश वाहकों को मरवा डालती थी। उसे इस बात का डर था कि राजकुमार को अगर पहली पत्नी के बारे में कुछ भी याद आया तो उसे छोड़कर वो पहली के पास चले जाएंगे।

इसका सबसे बड़ा कारण पहली राजकुमारी की सुंदरता थी। उधर राजकुमारी साल्हकुमार के ख्वाबों में खोई थी। एक दिन उसके सपने में सल्हाकुमार आया इसके बाद वह वियोग की अग्नि में जलने लगी। ऐसी हालत देख उसकी मां ने राजा पिंगल से फिर संदेश भेजने का आग्रह किया, इस बार राजा पिंगल ने एक चतुर ढोली को नरवर भेजा।

इस ढोली को गाने के लिए बनवाए गए दौहे
जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था तब राजकुमारी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे उसके प्रियतम के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है। यह सब इसलिए किया गया क्योंकि दूसरी राजकुमारी किसी भी संदेस वाहक को राजा तक पहुंचने से पहले मरवा देती थी।

ढोली, गायक ने राजकुमारी को वचन दिया कि वह या तो राजकुमार को लेकर आएगा या फिर वहीं मर जाएगा। चतुर ढोली याचक बनकर किसी तरह नरवर में राजकुमार के महल तक पहुंचा।

और उसने रात में उसने ऊंची आवाज में गाना शुरू किया। उसके मल्हार वादन से बारिश होने लगी। मल्हार राग का मधुर संगीत राजकुमार के कानों में गूंजने लगा। वह झूमने लगा तब ढोली ने साफ शब्दों में राजकुमारी का संदेश गाया।

गीत में राजकुमारी का नाम सुनते ही साल्हकुमार चौंका और उसे अपनी पहली शादी याद आ गई। ढोली ने गा-गाकर बताया कि उसकी प्रियतमा कितनी खूबसूरत है। और उसकी याद में कितने वियोग में है।

ढोली ने दोहों में राजकुमारी की खूबसूरती की व्याख्या कुछ ऐसे की। उसके चेहरे की चमक सूर्य के प्रकाश की तरह है, झीणे कपड़ों में से शरीर ऐसे चमकता है मानो स्वर्ण झांक रहा हो। हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत, मूंग सरीखे होंठ है। बहुत से गुणों वाली, क्षमाशील, नम्र व कोमल है, गंगा के पानी जैसी गोरी है, उसका मन और तन श्रेष्ठ है। लेकिन उसका साजन तो जैसे उसे भूल ही गया है और लेने नहीं आता।

ढोली पूरी रात ऐसे ही गाता रहा, सुबह राजकुमार ने उसे बुलाकर पूछा तो उसने पूंगल से लाया राजकुमारी का पूरा संदेशा सुनाया। आखिर साल्हकुमार ने अपनी पहली पत्नी को लाने हेतु पूंगल जाने का निश्चय किया पर उसकी दूसरी पत्नी मालवणी ने उसे रोक दिया।

आखिरकार एक दिन राजकुमार अपनी प्रियतमा को लेने पूंगल पहुंच गया। वियोग में जल रही राजकुमारी अपने प्रियतम से मिलकर खुशी से झूम उठी। आखिर उसे उसका प्रेम जो मिल गया था। दोनों ने पूंगल में कई दिन बिताए। दोनों एक दूसरे में खो गए।

अपनी प्रियतमा के प्राण बचाने की शिव-पार्वती की आराधना
एक दिन दोनों ने नरवर जाने के लिए राजा पिंगल से विदा ली। कहते हैं रास्ते के रेगिस्तान में राजकुमारी को सांप ने काट लिया उसने अपनी प्रेमिका का दाह संस्कार नही किया बाल्कि शिवभक्त राजकुमार उसी स्थान पर रेत के महादेव बनाकर तपस्या करने लगा बताया जाता है कि इस 45 दिन की तपस्या पर शिव पार्वती ने आकर उसको जीवन दान दे दिया।

इस कहानी में बताया जाता है कि राजकुमारी अत्यंत सुदर थी और उसके पाने के लिए अन्य रियासतो के राजाओ ने राजस्थान से निकलते समय कई बार आक्रमण किए,और इस प्रेमी ने भगवान शिव की कृपा और अपने शौर्यकौशल से अपनी छोटी सी सेना से कई विशाल सेनाओ को परास्त किया।

और अत: कई बाधाओ को पार कर यह प्रमी जोडा नरवर पहुंचा।  इतिहास में इस प्रेमी जोड़े को ढोला मारू के नाम से जाना जाता है। तब से आज तक राजस्थान में उनके नाम के गाने पूरे जोर-सोर से गाए जाते हैं और उनके प्रेम का गुनगान किया जाता है।