पढ़िए मॉं बलारी की कथा: सारे कष्ट मिट जाएंगे

शिवपुरी। शिवपुरी जिले सहित आसपास के क्षेत्र की आस्था का केन्द्र बन चुकी मां बलारपुर का मंदिर को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा प्रचलित है जिसमें मां बलारी के बाल रूप को बंजारा जाति के लाखा बंजारा भयावह जंगल में लेकर आया था। मंदिर को लेकर यह भी कथा प्रचलित है कि 900 साल पहले राजा नल के राज्य से पूर्व मां के मंदिर की स्थापना की गई थी। इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग भी कर चुका है। 

इस आशय की जानकारी मंदिर के मुख्य महंत प्रयाग भारती ने दी है। श्री भारती 1973 से मंदिर की सेवा में लगे हुए हैं। मंदिर से 2 किमी दूर मां का प्राकट्य स्थल भी मौजूद है, जहां आज भी पत्थरों के बीच में दरार है। बताया जाता है कि इसी स्थान से मां बलारी प्रकट हुईं थीं। मंदिर में लगी मूर्तियां उस प्राचीनतम समय की पुष्टि करती हैं। 

मंदिर के महंत प्रयाग भारती बताते हैं कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार उनके गुरू स्व. महंत शिव भारती जी ने 1952 में किया था। इससे पहले मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया था, लेकिन उनके गुरू शिव भारती जी के अथक प्रयासों से मंदिर आज वैभव की ओर अग्रसर है। यह मंदिर शहर से 30 किमी दूर भयावह जंगल में स्थित है, जहां मां की भव्य मूर्ति मंदिर में स्थित है। 

कहावत यह भी प्रचलित है कि मां एक दिन में अपने तीन रूप बदलती हैं, लेकिन अभी तक किसी ने ऐसा होते नहीं देखा है। इसका खण्डन करते हुए श्री भारती ने कहा है कि मां उन्हीं लोगों को अपने तीन रूपों में दर्शन देती हैं जो मां की भक्ति में उनके रूपों के दर्शन की सत्यता जानने की नियत से वहां आता है। 

मां को बाल रूप में लाने को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसे महंत प्रयाग भारती ने वर्णन करते हुए बताया कि गुजरात से बंजारा समुदाय के लोग व्यापार करने के लिए अन्यत्र प्रदेशों में पहुंचने के लिए जंगल के रास्तों का प्रयोग करते थे और कई स्थानों पर वह अपना डेरा डालते थे। 

एक लाखा बंजारा नाम का व्यापारी अपने परिवार और जाति के लोगों के साथ गुजरात से उत्तर प्रदेश की ओर जाने के लिए बलारपुर ग्राम से कूच कर रहा था, बलारपुर से 2 किमी दूर झाला क्षेत्र में उसने अपना डेरा डाला। जहां प्रतिदिन बंजारा समुदाय के बच्चे खेलते थे, वहीं एक बालिका भी उन बच्चों के साथ खेल में शामिल होती थी जिसे लाखा ने देख लिया और उसके बारे में जानकारी एकत्रित की, लेकिन उसका कोई भी पता उसे नहीं लग सका, वहीं वह बालिका भी वहां से गायब हो गइ।

और एक दिन रात्रि में लाखा को उस बालिका ने दर्शन दिया और उससे कहा कि वह उसे बैलगाड़ी में बैठाकर सुरवाया ले चले और लाखा को बालिका ने एक शर्त दी कि वह तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखेगा जब सुरवाया न आ जाये अगर उसने उस शर्त का उल्लंघन किया तो वह उसी स्थान पर उतर जायेगी। 

बालिका की शर्त मंजूर कर वह उसे बैलगाड़ी से सुरवाया की ओर कूच कर गया, लेकिन रास्ते में उसके मन में संशय हुआ कि बालिका ने ऐसा क्यों कहा, कहीं इसके पीछे कोई रहस्य तो नहीं और उसने शर्त का उल्लंघन करते हुए मुड़कर देख लिया तभी बालिका बैलगाड़ी से उतरकर अंर्तध्यान हो गई। 

जिस जगह पर बालिका उतरी थी वह आर बलारपुर के नाम से प्रसिद्ध है। पूर्व में यह मंदिर देखरेख के अभाव में ध्वस्त हो गया था क्योंकि उक्त जंगल में डकैतों का आंतक था जिस कारण कोई भी वहां नहीं जाता था। धीरे-धीरे उनके गुरू महंत शिव भारती जी ने उक्त मंदिर पर पहुंचकर वहां जीर्णोद्धार कराया और मंदिर पर पूजा अर्चन शुरू की गई। 

उस समय रामबाबू गड़रिया का आतंक शिवपुरी सहित चंबल में व्याप्त था, लेकिन उनके गुरू शिव भारती जी अपने भक्तिभाव से मां की सेवा में लगे रहे। चैत्र नवरात्रि में यहां मेले की प्रथा शुरू हुई और धीरे-धीरे मंदिर की याति जिलेभर में फैल गई। लोगों ने डकैतों के डर को भी मन से निकालकर मां की भक्ति में लीन होकर दर्शनों के लिए यहां आने लगे। वहीं रामबाबू गड़रिया हर साल मंदिर पर घंटा चढ़ाने आने लगा, लेकिन उसने किसी भी भक्त को कोई क्षति नहीं पहुंचाई। 

मॉं बलारी के साथ जैन मंदिर भी बना है जंगल में 
पुरातत्व विभाग और नेशनल पार्क प्रबंधन की अनदेखी के चलते बलारपुर से थोड़ी दूर पर स्थित एक विशाल जैन मंदिर स्थित है जिसमें जैन मूर्तियां आज भी स्थापित हैं हैं, लेकिन देखरेख के अभाव में उस मंदिर की स्थिति आज बहुत ही दयनीय है। इसका मुख्य कारण बताते हुए मंदिर महंत प्रयाग भारती जी ने कहा है कि खदान संचालकों ने जैन मंदिर और मां के प्रकाट्य स्थल की दुर्दशा कर दी है। जैन मंदिर को लेकर कई जैन धर्मालम्बियों से भी उनकी चर्चा हुई, लेकिन मंदिर के संरक्षण के लिए किसी ने भी कोई कदम नहीं उठाया, यहां तक कि पुरातत्व विभाग भी उक्त धरोहर को नहीं संभाल सकी, जिस कारण जैन मंदिर आज दयनीय स्थिति में है।

शारदेय नवरात्रि में अष्टमी तक बंद रहते है पट 
मंदिर के महंत प्रयाग भारती ने जानकारी देते हुए बताया कि मंदिर में शारदेय नवरात्रि में मंदिर के पट अष्टमी तक बंद रहते हैं। इन आठ दिनों में दर्शन नहीं होते हैं। दर्शनों के लिए मंदिर नवमी से खोल दिया जाता है और वर्षभर वहां श्रद्धालुओं की भीड़ आती है और चैत्र नवरात्रि में यहां विशाल मेला लगाया जाता है और मां के अलग-अलग रूपों के दर्शन भक्तों को उनकी इच्छा के अनुसार अनुसार होते हैं।