शिवपुरी का स्वाद: नवल की बेढ़ई से होती है गुडमॉर्निंग

राजू (ग्वाल) यादव। जी हां! पर्यटन नगरी के नाम से प्रसिद्ध शिवपुरी नगरी में इन दिनों नवल की बेढ़ई की गूंज चहुओर सुनाई देती है। बेहद लजीज स्वाद और चटखारे के साथ इस बेढ़ई का आनन्द लेने के लिए दूर-दूर शिवपुरी आते है। बात चाहे दिल्ली, ग्वालियर, भोपाल, इन्दौर या जबलपुर की ही क्यों ना हो इन सबकी खासियत में नवल की बेढ़ई अलग ही छाप छोड़ती है। 

शहर के मु य एबी रोड़ माधवचौक चौराहे के समीप लगने वाले इस चाट ठेले पर हर तबका अपना पेट महज 5 से 10 रूपये में भरकर अपनी दिनचर्या कीशुरूआत करता है। कभी-कभी नाश्ते के रूप बनी बेढ़ई दिन के भोजन का काम भी करती है। क्रिस्मी चाट मसालों, आटा, बेसन के साथ तैयार होने वाली बेढ़ई के बारे में ग्वाल समाज के नवल (ग्वाल)यादव बताते हैं कि उन्हें बेढ़ई बनाने की यह कला विरासत में मिली है।

जहां पहले उनके मामाजी हरि ग्वाल यादव (समौसे वाले)जो इसी नाम से प्रसिद्ध है इन्हीं की देखरेख में बेढ़ई बनाने की कला सिखी और लगभग आज से 15 वर्ष पूर्व मामा के कामकाज में हाथ बंटाने के बाद स्वयं का व्यवसाय शुरू किया और माधवचौक पर आज एक दुकान के सामने अपना चाट ठेला लगाकर नवल प्रतिदिन हजारों लोगों को बेढ़ई का नाश्ता तेयार करके खिला रहे है। 

आर्थिक परिस्थितियों में भी नहीं मानी हार
नवल किशोर ग्वाल के मुताबिक शुरू से ही वह आर्थिक रूप से कमजोर थे अपने चार भाईयों और पिता का साया सिर से उठने के बद नवल ने इस व्यवसाय में आने के लिए खूब मेहनत की और आज शहर में अपनी अलग पहचान बनाई। नवल की इस पहचान से ग्वाल समाज भी गौरान्वित है और समाज में इन्हें स मान के साथ नवल बेढ़ई के नाम से नवाजा जाता है। 

नवल बताते है कि शिवपुरी में बेढ़ई मुरैना की देन है क्योंकि लगभग 15-20 वर्ष पूर्व मुरैना में बेढ़ई नाश्ते के रूप में परोसी जाती थी ओर शिवपुरी में जलेबी-पकौड़ी का नाश्ता किया जाता था। ऐसे में शिवपुरी में बेढ़ई की शुरूआत स्व.मन्ना उस्ताद व जैन चाट केसाथ शुरू हुई बाद में इन सभी ने अपनी-अपनी दुकानें बंद कर अन्य धंधा संभाल लिया। 

तब नवल ने बेढ़ई को बनाने का कार्य शुरू किया जिसमें बेढ़ई के साथ आलूमटर की सब्जी, रायता, चटनी हरि मिर्ची व लाल चटनी के साथ परोसी जाती है। नवल के साथ उनके अभिन्न सहयोगी के रूप में उनके ही परिजन व भाई ओमप्रकाश ग्वाल, वीरू, विष्णु, लाल कुशवाह व छोटू सोनी का सहयोग रहता है जो प्रतिदिन अलसुबह 3:30 बजे एकत्रित होकर बेढ़ई बनाने का कार्य शुरू करते है और प्रात: 7:30 बजे चौराहे पर नवल बेढ़ई तैयार होकर परोसी जाती है।

यह बेढ़ई दिन के लगभग 01 बजे तक चलती है जिसमें चौराहे पर मजदूरी कार्य करने आने वाले मजदूर वर्ग को यह बेढ़ई भोजन के रूप में ाी पेट भरने का कार्य करती है। आज नवलकिशोर आर्थिक स्थितियों से बाहर निकलकर स्वयं आत्मनिर्भर बने है और अपने परिवार को भी इस व्यवसाय से जोड़े हुए है। 

यह है बनाने की प्रक्रिया
नवलकिशोर ग्वाल ने 01 किलो बेढ़ई बनाने का अनुमान बताते हुए कहा कि 01 किलो आटा, 150 ग्राम बेसन, 100 ग्राम मैदा, 150 ग्राम रवा, 200 ग्राम तेल, नमक स्वादनुसार के साथ मसाला तेयार किया जाता है जिसमें बेसन और दाल को सेका जाता है फिर सेंककर इसमें धनिया, सौंफ,हींग,लाल मिर्च, काला नमक, गरम मसाला डालकर इसे तेयार किया जाता है फिर तेल की कढ़ाई में गोलाकार कर इसे डाला जाता है और तैयार होकर निकाला जाता है बाद में यह लोगों को चटनी, रायता व सब्जी के साथ परोसी जाती है।