पंचायतों और नगरपालिका में महिला आरक्षण पर फिर से हो पुनर्विचार

शिवपुरी। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत कर दिया गया है। वहीं विधानसभाओं और लोकसभाओं में भी महिला आरक्षण की मांग की जा रही है। मांग अनुचित भी नहीं है। सोच यह है कि जिस तरह से राजनीति के स्तर का अवमूल्यन हुआ है।

महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर अवमूल्यन को रोका जा सकता है। लेकिन पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव का इतिहास बताता है कि महिला आरक्षण से राजनीति में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं आया। इसका सबसे प्रमुख कारण है कि आरक्षण के बावजूद भी असली जनप्रतिनिधि चुनी गई महिलाओं के स्थान पर पुरुष ही बने हुए हैं। वे ही अपने आपको प्रतिनिधि बताने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करते।

वर्तमान नगरपालिका की ही बात करें तो 39 सदस्यीय परिषद में 20 महिला पार्षद चुनकर आई हैं लेकिन इनमें से शायद ही किसी की निजी पहचान हो।  पार्टी की बैठकों में और पार्षदों की बैठक में इन महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके परिवार के पुरुष अपने आपको पार्षद निरूपित करते हैं।

कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस के 12 पार्षद चुनकर आये हैं जिनमें आठ महिलाएं हैं। इनके नाम हैं वार्ड क्र.1 से श्रीमती भावना-राजकुमार पाल, वार्ड क्र. 2 से कांग्रेस नेता विवेक अग्रवाल की मां श्रीमती मुन्नी अग्रवाल, वार्ड क्र.5 से श्रीमती किरण सेन, वार्ड क्र.7 से वरिष्ठ कांग्रेस नेता लक्ष्मीनारायण धाकड़ की पुत्रवधु ज्योति-आशीष धाकड़, वार्ड क्र.14 से कांग्रेस नेता सुधीर आर्य की धर्मपत्नी श्रीमती मीना आर्य, वार्ड क्र. 18 से लक्ष्मी-अशोक राठौर, वार्ड क्र. 21 से श्रीमती जरीना शाह, वार्ड क्र. 30 से कांग्रेस नेता मदन देशवारी की पत्नी बैजंती देशवारी चुनी गई हैं।

लेकिन इनमें से शायद ही कोई महिला कांग्रेस में सक्रिय रही है। मजे की बात तो यह है कि उपाध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस प्रत्याशी चुनने हेतु जब पार्षदों की बैठक बुलाई गई तो इनमें से एक भी महिला पार्षद बैठक में नहीं पहुंची। उनके स्थान पर उनके पुत्र, पति तथा अन्य रिश्तेदार पार्षद बनकर बैठक में आये। अब ााजपा पार्षदों की बात करें तो भाजपा के चुने गये 18 पार्षदों में से 6 महिला पार्षद हैं। इन महिला पार्षदों को भी जान लेते हैं। ये हैं वार्ड क्र.12 से श्रीमती सरोज महेन्द्र धाकड़, वार्ड क्र.20 से रेखा-गब्बर परिहार, वार्ड क्र.29 से ममता-मदन सेजवार, वार्ड क्र.35 से किरण-नीरज खटीक, वार्ड क्र.36 से राजकुमारी कुशवाह, वार्ड क्र.37 से मालती-ज्ञानप्रकाश जैन निर्वाचित हुई हैं।

इन 6 भाजपा महिला पार्षदों की गुणवत्ता भी कांग्रेस की आठ महिला पार्षदों के समान है। राजनीति में सक्रियता और राजनीति में रुझान इनका न के बराबर है। इनकी पहचान इनके परिजनों से है और वे ही पार्षद बनने का गौरव महसूस कर रहे हैं। अब निर्दलीय महिला पार्षदों की चर्चा कर लेते हैं। वार्ड क्र.4 से कांग्रेस के बागी नेता और पूर्व पार्षद संजय गुप्ता की धर्मपत्नी श्रीमती वर्षा गुप्ता, वार्ड क्र.8 से मनीषा गौतम, वार्ड क्र.11 से भाजपा के बागी पार्षद अनिल बघेल की धर्मपत्नी नीलम बघेल, वार्ड क्र.19 से ााजपा के बागी नेता रामू गुर्जर की पत्नी श्रीमती मनीषा गुर्जर, वार्ड क्र. 23 शाइस्ता बबलू खान, वार्ड क्र.28 से भाजपा के पूर्व पार्षद अजय भार्गव की पत्नी अनीता भार्गव की तथा और कथा भी कांग्रेस तथा भाजपा की महिला पार्षदों के समान है।

महिला आरक्षण के साथ सही न्याय नगरपालिका की तत्कालीन अध्यक्ष स्व. राधा गर्ग ने किया था। जिन्होंने अपने पति और देवर के सुझावों से स्वतंत्र होकर नगरपालिका का कार्य संचालन किया था। पंचायतों में भी चुनी गई महिला प्रतिनिधि सिर्फ शोपीस बनकर रही हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर श्रीमती बसंती लोधी और श्रीमती जूली आदिवासी को महिला आरक्षण के नाम पर अध्यक्ष बनने का गौरव हासिल हुआ, लेकिन कभी भी वह अपने प्र ााव का इस्तेमाल करती हुईं नहीं दिखाई दी, बल्कि जूली आदिवासी तो पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी और जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव के हाथों में झूलती रहीं।

यही कारण है कि अध्यक्षीय कार्यकाल समाप्त होने के बाद आज न तो बसंती लोधी और न ही जूली आदिवासी की कोई राजनैतिक पहचान बची है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर इस बार फिर पिछड़ा वर्ग महिला का आरक्षण हुआ है और यह भी तय लग रहा है कि इस पद पर वहीं महिला अध्यक्ष बनने में सफल होगी जिनके परिजन राजनैतिक रूप से धन, बल संपन्न होंगे। ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि महिला आरक्षण का औचित्य क्या बचा है। नगरपालिका की चुनी गई महिला पार्षदों के साथ सही न्याय तभी होगा जब उन्हें राजनीति और नगरपालिका प्रशासन मु य धारा में शामिल होने का मौका दिया जाये और इस दिशा में सबसे पहले पहल उनके परिजन ही कर सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या वह ऐसा करेंगे।

राजनीति में सक्रिय महिला नेत्रियों को नहीं मिलता टिकिट
राजनीति का यह भी बड़े से बड़ा दुर्भाग्य है कि दलों में झंडे और डंडे उठाने वाली महिला नेत्री टिकिट से वंचित रहती हैं और जब कभी भी टिकिट की बात आती है तो नेताओं की अराजनैतिक महिलाओं को टिकिट दे दिया जाता है। ऐसी स्थिति में कैसे राजनीति का शुद्धीकरण होगा और सवाल यह है कि इन परिस्थितियों में क्या महिला आरक्षण उचित है अथवा इस पर फिर से सोच-विचार किया जाना चाहिए।