शिवपुरी। गुरू भगवान के प्रतिरूप होते हैं और वह आसानी से नहीं मिलते। गुरू को पाने के लिए कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है और उनमें खरा उतरने के बाद भी गुरू उपलब्ध होते हैं। सही मायनों में शिष्य जब तैयार होता है तब गुरू प्रकट होते हैं।
उक्त बात प्रसिद्ध जैन साध्वी वैभवश्री जी ने स्थानीय पोषद भवन में आयोजित धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि गुरू का सानिध्य पाने में सबसे बड़ी बाधा अहंकार है।
साध्वी वैभवश्री जी ने बताया कि गुरू जीवन को बनाने वाले होते हैं, लेकिन गुरू को पाना आसान नहीं है। शिष्य बनाने से पूर्व गुरू साधक को तमाम तरह की कसौटियों पर कसते हैं। उसके धैर्य और विनयशीलता की परीक्षा लेते हैं। गुरू के प्रति शिष्य के समर्पण भाव का आंकलन करते हैं। यह दे ाते हैं कि शिष्य शंकाशील तो नहीं है।
उसमें अहंकार का समावेश तो नहीं है। गुरू पाने के लिए शिष्य को तमाम तरह की प्रताडऩा और यातनाओं से गुजरना पड़ता है। तब जाकर गुरू का आशीर्वाद सुलभ हो पाता है। साध्वी जी ने कहा कि अहंकारी व्यक्ति को कभी गुरू का सानिध्य नहीं मिल पाता। गुरू के चरणों में अपना शीश और हृदय को झुकाना होता है। भावों का समर्पण करना होता है तब जाकर गुरू का सानिध्य मिल पाता है।
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