क्या जनता की उम्मीदों पर खरा उतर पाएंगें नपा के यह प्रत्याशी

शिवपुरी। मुझे जिताईए, मैं करूंगा शहर का विकास। यह वायदा नपाध्यक्ष पद के 12 उम्मीदवारों में से कोई एक नहीं कर रहा, बल्कि सभी कर रहे हैं। सभी के वायदों पर यकीन करें तो अगले पांच साल में शहर विकास की नई ऊंचाईयों पर होगा लेकिन अभी तक यह होता कहां रहा है? कहा कुछ जाता है और जीतने के बाद किया कुछ जाता है और जो कुछ किया जाता है उसे अभी तक लगभग हर जीता उ मीदवार चाहे वह किसी भी दल का हो या निर्दलीय करता रहा है।

लेकिन अभी जो सपने दिखाए जा रहे हैं। उनमें भी कुछ अधूरापन और दृढ़ता का अभाव साफ नजर आ रहा है। अध्यक्ष पद के किसी भी उ मीदवार ने पूरी आत्मा की आवाज के साथ पता नहीं क्यों यह कहने का साहस नहीं दिखाया है कि नगरपालिका के प्रचलित कमीशन को खत्म करना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी और कार्य की गुणवत्ता के लिए भी यह आवश्यक है। कार्य से पहले भ्रष्टाचार समाप्त करना पहली प्राथमिकता है। क्योंकि कार्य तो पिछली नगरपालिका परिषद के कार्यकाल में भी कम नहीं हुए, लेकिन बंटाधार भ्रष्टाचार से लिपटे कार्यों से हुआ है।

नगरपालिका अध्यक्ष पद के कांग्रेस प्रत्याशी मुन्नालाल कुशवाह, भाजपा प्रत्याशी हरिओम राठौर और निर्दलीय प्रत्याशी छत्रपाल सिंह गुर्जर प्रचार के आखिरी दिनों में नुक्कड़ सभाओं में अपना ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। प्रतिदिन प्रत्येक प्रत्याशी तीन से चार वार्डों में नुक्कड़ सभाओं को संबोधित कर रहा है और सभी में वहीं बातें हैं कि शिवपुरी को प्रदूषणमुक्त शहर बनाया जाएगा। शिवपुरी को सुंदर शहर बनाया जाएगा। पार्कों का विकास किया जाएगा। नाली और सड़कों का जाल बिछाया जाएगा। रात्रि में शहर प्रकाश से रोशन रहेगा। शिवपुरीवासियों को गंदगी से मुक्ति मिलेगी। यही सारी आदर्श बातें प्रत्याशी कर रहे हैं।

एक-दूसरे पर दोषारोपण भी प्रत्याशी कम नहीं कर रहे। निर्दलीय प्रत्याशी तो कांग्रेस और भाजपा दोनों को निशाना बना रहे हैं। भाजपा वाले कह रहे हैं कि कांगे्रस को जिताया तो फण्ड कहां से मिलेगा? कांग्रेस वाले कह रहे हैं कि पहले भी ऐसा कहा गया था, लेकिन हुआ क्या? उल्टे शहर दुर्दशा का शिकार होता गया। सीवेज प्रोजेक्ट की खुदाई के कारण उपजी धूल को भी कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी मुद्दा बना रहे हैं। लेकिन कुछ न कुछ तो ऐसा हो कि उ मीदवार के वायदों को एक रिकॉर्ड के रूप में संग्रहित किया जाए और यदि वह भटकें तो उन्हें उन वायदों की याद दिलाई जाए। वही भ्रष्टाचार के प्रति कठोर दृढ़ता की भी उ मीदवारों से दरकार है,क्योंकि भ्रष्टाचार ही हमारे जनप्रतिनिधियों की क्षमताओं को कम करती है और वे पांच साल में नायक के स्थान पर खलनायक बन जाते हैं।