जीवन को सार्थक बनाने शिक्षित नहीं संस्कारित होना जरूरी : मुनिश्री पुलक सागर जी

शिवपुरी। मीरा, तुलसी और कबीर का उदाहरण गवाह है कि जिंदगी को सार्थक बनाने के लिए शिक्षित होना कतई आवश्यक नहीं है, लेकिन संस्कारित होना जरूरी है। संस्कारहीन शिक्षा रावण, कंस, मुसोलिनी, हिटलर, लादेन जैसे खलनायकों को जन्म देती है। साफ है कि इंजीनियर, डॉक्टर, सीए और एमबीए बनाने वाली शिक्षा का तब तक कोई अर्थ नहीं है। जब तक बच्चों को संस्कारों से पुष्पित और पल्लवित न किया जाए। 

संस्कार से जहां राम, कृष्ण और महावीर जैसे जननायकों को जन्म होता है। वहीं इतिहास के रावण, कंस, हिटलर और लादेन जैसे खलनायक संस्कारहीन शिक्षा के प्रतिफल हैं। उक्त बात प्रसिद्ध जैन संत पुलक सागर जी महाराज ने आज चंद्रप्रभू जिनालय प्रांगण में आयोजित विशाल भीड़भरी धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। प्रारंभ में श्रीमती खुशबू जैन ने मंगलाचरण का पाठ किया और बाहर से पधारे अतिथियों का आयोजकों ने शॉल और श्रीफल से स्वागत किया।

आचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज के सुशिष्य मुनिश्री पुलक सागर जी महाराज ने कहा कि आज बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने की सनक इतनी प्रबल है कि हम उन्हें अच्छा इंसान बनाना भूल गए हैं। यही कारण है कि बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के बाद सिर्फ अपने लिए जीते हैं और माता-पिता को भूल जाते हैं। इसमें दोष किसका है? अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहिम लिंकन का उदाहरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि उन्होंने जब अपने बच्चे को स्कूल भेजा तो टीचर को पत्र लिखा कि मेरे पुत्र को कोई विशिष्ट दर्जा न दिया जाए तथा उसे शिक्षा के साथ-साथ यह भी सिखाया जाए कि बुजुर्गों से कैसा व्यवहार किया जाता है, कैसे उठा जाता है, कैसे बैठा जाता है, कैसे लोगों से बात की जाती है। उसे सफलता तथा असफलता को एक समान भाव से स्वीकार करने का पाठ पढ़ाया जाए। ताकि वह एक अच्छा इंसान बन सके। 

महाराजश्री ने कहा कि शिक्षा आवश्यक है, लेकिन संस्कार अपरिहार्य है। शिक्षा के बिना तो काम चल सकता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने सवाल किया कि मीराबाई, तुलसीदास, रैदास, कबीर ने किस विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की? कबीर ने तो मसी कागद कलम छुई न हाथ लेकिन इसके बाद भी इन अशिक्षितों पर आज पीएचडी की जा रही है। अशिक्षित राबड़ी देवी बिहार की मु यमंत्री बनीं। संस्कारों के कारण आज राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध पूजे जाते हैं। अब्दुल कलाम आजाद का जीवन सभी के लिए अनुकरणीय है। संस्कारित होने के कारण ही राम के मंदिर बनाए जाते हैं और संस्कारों के अभाव के कारण ही रावण के पुतले फूंके जाते हैं। फैसला हमें करना है कि इतिहास के किस कौने पर हमें खड़ा होना है। ईश्वर ने जिंदगी दी है तो इसमें इस बात का कोई अर्थ नहीं है कि हमारे पास कितना समय शेष है। जिंदगी में लंबाई का नहीं, बल्कि गहराई का महत्व होता है। 100 साल की जिंदगी में भी कोई कुछ नहीं कर पाता और शहीद भगत सिंह जैसे सेनानी 23 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूलकर अपना नाम अमर कर लेते हैं। 8 साल की उम्र में कुंदकुंद सागर दिग बर बेश धारण कर लेते हैं।  उन्होंने कहा कि किसी की एक दिन की जिंदगी वो काम करती है और किसी की 100 वर्ष की जिंदगी से कुछ नहीं होता।

अमर हो जाओगे लिखने योग्य या करने योग्य कुछ कर जाओ
मुनि पुलक सागर जी महाराज ने कहा कि इतिहास में नाम लिखाने के लिए आवश्यक है कि ऐसा कुछ लिख जाओ कि वह गीता, समयसार, कुरान, वेद और पुराण जैसा ग्रंथ बन जाए या फिर ऐसा कुछ कर जाओ जिससे तुम पर किसी को लिखना पड़े। या तो लिखने योग्य या फिर तुम पर लिखा जा सके ऐसा कोई काम करो।