आओ बनाए अपनी शिवपुरी: करे मतदान और मतदान के लिए करे प्रेरित

शिवपुरी। राजनीति का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि समझदार मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग लंबी चौड़ी बहस तो करता है, लेकिन मतदान करने में उसकी कोई रूचि नहीं रहती।

तर्क यही रहता है कि किसे चुनो? जिसे भी चुनो आखिर पछताना पड़ता है तो फिर वोट देने से फायदा क्या? मतदान के लिए क्यों लंबी-लंबी कतार में खड़े हों और फिर जो जीत जाएगा वह हमें कोई निहाल तो कर नहीं देगा। इसका परिणाम यह होता है कि ऐसे लोग चुनाव जीतकर आ जाते हैं जिनके पास कदापि वार्ड का बहुमत नहीं होता और मात्र 15 से 20 प्रतिशत मत ही प्राप्त कर वह जनप्रतिनिधि बनने में सफल रहते हैं।

ऐसे जीते प्रतिनिधियों के भरोसे वार्ड का विकास कैसे होगा? इसलिए यह बहस शुरू हो गई है कि गुजरात में नगरीय निकाय चुनाव में जिस तरह से मतदान कानूनी रूप से अनिवार्य कर दिया गया है। क्या प्रदेश में भी ऐसा नहीं होना चाहिए।

राजनीति में जिस तरह से अपात्र लोगों के लिए द्वार खुले हैं उससे समस्याएं बढ़ी हैं। दबंगाई और आतंक के बलबूते ऐसे-ऐसे लोग चुनाव जीते हैं जिनके आगे खड़ा होने की अच्छे लोग हि मत नहीं जुटा पाते। लोकसभा और विधानसभा में भी ऐसे लोग पहुंचे हैं और छोटे चुनाव में तो अपात्रों के पहुंचने की बहुत संभावना है, क्योंकि एक सीमित वर्ग में उन्हें अपना लोहा मनवाना है।

दबंगाई के चलते दोहरे नुकसान होते हैं। एक तो अच्छे लोग चुनाव प्रक्रिया से अपने-आप को दूर कर लेते हैं। करें भी क्यों नहीं। हर दल उ मीदवार को भिखारी बनाने में उत्सुक रहता है। वह चाहता है कि याचक की तरह उ मीदवार उनके यहां बायोडेटा दें। जबकि होना यह चाहिए कि उ मीदवारों का चयन अपने स्तर पर प्रत्येक दल करे और फिर उस पर चुनाव लडऩे के लिए नैतिक दबाव बनाए।

दलों की चयन प्रक्रिया से अच्छे लोगों की राजनीति में आने की संभावना दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। इससे दूसरा नुकसान यह भी है कि जब अपात्रों के बीच चयन करना हो तो समझदार मतदाता अपने आप को मतदान करने से ही दूर कर लेता है और फिर जो भी मतदान करते हें वे कैसे उ मीदवार चुनेंगे? आप खुद समझ सकते हैं। साफ है कि राजनीति में अपात्रों का एक बड़ा वर्ग सक्रिय है और समझदार मतदाता जिनकी विकास में रूचि है वे मतदान से दूर हैं तो समाज को कितना बड़ा नुकसान होगा।

उम्मीदवार फिर चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह के जायज-नाजायज हथकण्डे अपनाएंगे और मतदाताओं को प्रलोभित करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। शराब से लेकर कपड़े, गहने, कंबल और पैसा तक वोट देने के लिए बांटा जाएगा। यही हो भी रहा है। जिन उ मीदवारों ने इनमें दिलचस्पी नहीं दिखाई उन्हें चुनाव जीतने के लिए दिक्कत ही दिक्कत है।

इसलिए समय आ गया है कि राजनीति में सुधार करने के लिए कानूनी और सामाजिक कदम उठाये जाने चाहिए। मतदाताओं को मतदान करना कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया जाए और सामाजिक स्तर पर भी मतदान के प्रति मतदाताओं को जागरूक बनाया जाए। इस बात की नैतिक शिक्षा दी जाएगी कि चंद प्रलोभनों से वह नगर के 5 साल के भविष्य को खराब करने में सहभागी न बनें। अराजनैतिक व्यक्ति यदि राजनीति में रूचि लेेंगे तो निश्चित तौर पर राजनीति सुधरेगी और अच्छे जनप्रतिनिधि हमें देखने को मिलेंगे।