माता-पिता की सेवा से बढ़कर नहीं होती ईश्वर की इबादत: मुनिश्री पुलकसागर जी

शिवपुरी। अपने गुरू आचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज के सुशिष्य मुनिश्री पुलक सागर जी महाराज को राष्ट्र संत यूं ही नहीं कहा जाता। आज उन्होंने चंद्रप्रभु जिनालय प्रांगण में आयोजित विशाल भीड़ भरी धर्मसभा में जब माता-पिता की महिमा का बखान किया तो हजारों आंखों से झरझर आंसू बहने लगे।

उन्होंने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि बखूबी सिद्ध भी कर दिखाया कि मां-बाप से बड़ा कोई ईश्वर नहीं होता। भगवान राम, कृष्ण, तीर्थंकर ऋषभदेव, तीर्थंकर पाश्र्वनाथ और भगवान महावीर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर भी जब धरती पर आते हैं तो माता-पिता को प्रणाम करते हैं। सिर्फ माता-पिता की सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण नजीर के रूप में प्रस्तुत करने के कारण ही श्रवण कुमार जन-जन के पूज्यनीय हैं। धर्मसभा के पूर्व नन्हीं-मुन्नी बालिकाओं ने मंगलाचरण की रोचक प्रस्तुति दी।

महाराजश्री ने अपने प्रवचन की शुरूआत करते हुए कहा कि जीवन को सफल और सार्थक बनाना है तो माता-पिता का आशीर्वाद लेना अत्यंत आवश्यक है। उनके शब्दों में गुरू का आशीर्वाद जहां सौभाग्य का प्रतीक है वहीं माता-पिता का आशीर्वाद परम सौभाग्य का प्रतीक है। माता-पिता के दर्जे को सद्गुरू के दर्जे से ऊपर रखते हुए संत पुलकसागर जी ने यहां तक कहा कि माता-पिता ही ऐसे हैं जिनमें तीन-तीन देव ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की झलक मिलती है। जन्म देने के कारण माता-पिता ब्रहा हैं वहीं संतान का पालन करने के कारण उन्हें विष्णु कहा जाता है और अपनी संतति की बुराईयों का नाश करने के कारण उन्हें महादेव की संज्ञा दी जाती है।

महाराज श्री ने सवाल किया कि जो गुरू से बढ़कर है जो ईश्वर से बढ़कर है, उन्हें आप क्यूं बिसरा रहे हैं। जिन ईश्वर की प्रतिमाओं को आपने गढ़ा है उसे तो प्रणाम करते हो लेकिन जिसने आपका निर्माण किया है जो आपका निर्माता है उसे प्रणाम करने की उसकी सेवा करने की और  उसके सुख-दुख जानने की तु हें फिक्र क्यों नहीं है? महाराजश्री ने कहा कि तीर्थ जाओ या न जाओ, लेकिन माता-पिता की सेवा से तीनों लोकों की वंदना का लाभ मिलता है। श्रवण कुमार ने क्या किया था? वह साधारण मनुष्य थे। उनके पास कोई घोड़ा गाड़ी और बंगला नहीं था, लेकिन अंधे माता-पिता ने जब चार लोक की यात्रा करने की ईच्छा व्यक्त की तो श्रवण कुमार ने समर्पण की कांवर पर अपने माता-पिता को बिठाकर उन्हें तीर्थ यात्रा कराई।

 श्रवण से सवाल किया गया कि अंधे माता-पिता कैसे ईश्वर का दर्शन करेंगे? तो श्रवण का जवाब था कि ईश्वर तो उनके दर्शन करेगा। महाराजश्री ने स्पष्ट किया कि आंख वाले ईश्वर का दर्शन करते हैं, लेकिन नेत्रहीनों का दर्शन स्वयं ईश्वर करता है। महाराजश्री ने साफ-साफ कहा कि भगवान के मंदिर में जाकर चंदन लगाने से पूर्व अपने मां के चरणों की धूल सिर माथे पर लेना आवश्यक है। तभी मंदिर जाना सार्थक होगा। माता-पिता को भुलाकर भगवान की सेवा, पूजा, अर्चना का कोई लाभ नहीं है। उन्होंने कहा कि बद्किस्मत वे होते हैं जिनके सिर पर माता-पिता का साया नहीं होता। जब तक माता-पिता जीवित रहते हैं संतान निश्चिंत रहती है।

संतान माता-पिता को छोड़ जाती है, लेकिन माता-पिता अपनी संतान को कभी नहीं छोड़ते। मां से बढ़कर खूबसूरत दुनिया में कोई दूसरी तस्वीर नहीं है। उसकी ममता का कोई मुकाबला नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज माता-पिता उम्र से कम अपने बच्चों की उपेक्षा से ज्यादा बूढ़े हो रहे हैं। बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेजा जा रहा है। महाराजश्री ने कहा कि दुनिया में सारे रिश्ते चुनाव से मिलते हैं, लेकिन माता-पिता का रिश्ता पुण्य से मिलता है और दुर्भाग्य है कि तकदीर से बने रिश्तों को दरकिनार कर चुनाव से बने रिश्तों को अहमियत दी जा रही है।

घर में लगाएं प्रेम का पौधा
महाराजश्री ने श्रोताओं को संकल्प दिलाया कि वह अपने घर के आंगन में प्रेम का एक पौधा अवश्य लगाएं तथा उस पर प्रतिदिन स मान का एक लौटा जल अवश्य चढ़ाएं। घर में माता-पिता, पत्नी, बच्चों, भाई-बहनों को यदि प्यार दिया, इज्जत दी, स मान दिया तो तु हारा घर वृंदावन बन जाएगा, स मेद शिखर बन जाएगा। उन्होंने सवाल किया कि स मान देने में कुछ भी खर्च नहीं होता, बल्कि फायदा ही होता है। इज्जत पाने के लिए दूसरों को इज्जत देनी ही पड़ती है।

चिडिय़ा की बल्कि मां की सुनाई दु:खभरी कहानी
महाराजश्री ने चिडिय़ा की प्रतीक कथा से मां की दु:खभरी कहानी का बखान किया। उन्होंने कहा कि चिडिय़ा अपने बच्चों को अपने पंखों की छांव में आश्रय दे देती थी। उनकी हर तरह से देखभाल करती थी। बच्चों ने एक दिन उससे पूछा कि मां क्या तुम हमें जिंदगीभर इसी तरह प्रेम करती रहोगी। विश्वास दिलाती हो कि कभी हमें छोड़कर नहीं जाओगी। ममता से भरी चिडिय़ा ने प्रमाण पेश करते हुए अपने पंख नौंच डाले और कहा अब तो विश्वास करोगे मैं तु हें नहीं छोड़कर जाऊंगी, लेकिन एक दिन तूफान आया दोनों बच्चे उड़ गए। लेकिन चिडिय़ा मां तूफान की भेंट चढ़ गई। बाहर के तूफान ने नहीं, बल्कि बच्चों की उपेक्षा के आंतरिक तूफान ने उसकी जान ले ली।

बेटे की कमाई पर हो  पिता का अधिकार
महाराज श्री ने कहा कि  पिता की संपत्ति पर कानूनी रूप से बेटे का अधिकार होता है, लेकिन कानून बनना चाहिए कि बेटे की कमाई पर वृद्ध पिता का अधिकार हो।