शिवपुरी। पिछले अनेक वर्षों से नगरीय निकाय चुनाव में चुने गए जनप्रतिनिधि जिस तरह जनअपेक्षाओं के साथ न्याय करते हुए नहीं देखे जा रहे हैं। उसकी कुछ न कुछ जि मेदारी मतदाताओं की भी है। चुनने की जि मेदारी तो मतदाता को लेनी होगी। जवाब भले ही आप यह दें कि हमारा क्या दोष? कांग्रेस को चुनें, भाजपा को चुनें, निर्दलीय को चुनें, पछताना पड़ता है।
राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं। लेकिन यह तर्क फेंककर आप अपनी जि मेदारी से बच नहीं सकते। सवाल यह है कि क्या आपने ईमानदारी से जनप्रतिनिधि का चुनाव किया है? सवाल यह है कि कसौटी पर कसकर आपने अपने प्रतिनिधि को वोट दिए हैं? यदि हां तो सवाल यह है कि वह कसौटी क्या है? रिश्तेदारी को ध्यान रखकर वोट दिए गए हैं? जाति को ध्यान रखकर वोट दिए गए हैं? प्रलोभन में आकर वोट दिए गए हैं? अपनी दोस्ती का निर्वहन कर मतदान किया है? यदि यही आपकी कसौटी है तो पछताने के बाद आपको मिलेगा क्या?
राजनीति चाहे छोटी हो या बड़ी वह एक बड़ा गुण है तो एक कला भी। मतदान के लिए सबसे पहली शर्त यह है कि जिस उ मीदवार को मत दिया जा रहा है क्या वह उस पद के लायक है या नहीं। सरसरी तौर पर देखने पर ही आपको पता चल जाएगा कि उस भीड़ में से कितने उस पद की योग्यता के धारक हैं। इतना चुनाव ही पर्याप्त नहीं है। राजनीति में जहां विनम्रता एक बड़ा गुण है। वहीं अहंकार को सबसे बड़ा अवगुण माना जा सकता है। आपके चुने गए तीन-चार योग्य व्यक्तियों को फिर उस कसौटी पर कसना होगा। इससे भी कुछ छटनी होगी। फिर मतदाता को यह सोचना होगा कि किस उ मीदवार का कैसा चरित्र है? उसका आचरण कैसा है? और उसके भ्रष्ट होने की कितनी संभावना है? इस पैमाने पर कुछ खरे उतरेंगे तो वहीं कुछ अपनी प्रासांगिकता खोएंगे।
नेतृत्व क्षमता भी राजनीति में एक गुण है। वोट देते समय मतदाता को इसका भी ध्यान रखना होगा। इन कसौटियों पर कसकर यदि आप अपने उ मीदवार का चयन करेंगे तो शायद आपको पछताना नहीं पड़ेगा, लेकिन होता यह है कि मतदाता संकीर्णताओं में फंस जाता है। वह अपने तात्कालिक निजी स्वार्थ को ध्यान में रखकर मतदान करता है। बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिसमें तत्काल तो किंचित लाभ हो रहा हो, लेकिन भविष्य में भारी नुकसान का खतरा हो। आपका जनप्रतिनिधि आपको निराश करेगा। यदि आप विशुद्ध रूप से जातिगत आधार पर मतदान करेंगे।
आपका जनप्रतिनिधि आपको निराश करेगा यदि आप चुनाव के दौरान उससे कुछ अपेक्षा पालेंगे। शराब की बोतल के आधार पर पैरों की पायल के आधार पर चंद पैसों के आधार पर यदि आपने मतदान किया तो क्यों नहीं आप पछताएंगे। दूसरा पहलूं यह भी है कि जीतने के लिए यदि जनप्रतिनिधि पानी की तरह पैसा बहायेगा तो वह जीतने के पश्चात सूद सहित बसूल भी करेगा। इसलिए अभी भी वक्त है नगरीय निकाय चुनाव में ठीक प्रतिनिधि चुनने के लिए सोच-समझकर मतदान करें। मतदाता भाईयों आप दूध के जले हो छाछ भी फूंक-फूंककर पीएं। सही व्यक्तियों के हाथों में सत्ता सौंपेंगे तो पूरी शिवपुरी का भला होगा।
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