मुनिश्री पुलक सागर महाराज का शिवपुरी में भव्य स्वागत

शिवपुरी। ग्वालियर से पदबिहार करते हुए आज शिवपुरी पहुंचे प्रसिद्ध जैन संत पुलक सागर जी महाराज का शिवपुरीवासियों ने पलक पावड़े बिछाकर अभूतपूर्व स्वागत किया। महाराजश्री भूराखो से आज सुबह 6:30 बजे पदबिहार कर सुबह 8:30 बजे शिवपुरी स्थित लाल कोठी पहुंचे।

जहां समस्त शिवपुरीवासी उनके स्वागत के लिए खड़े हुए थे। यहां से महाराजश्री की भव्य शोभा यात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से निकली और स्थान-स्थान पर उनका पाद प्रक्षालन किया गया, आरती उतारी गई। महाराज श्री इस दौरान छत्री जैन मंदिर भी पहुंचे। जहां उन्होंने दर्शन किए और भक्तों को दर्शन लाभ दिया।

राष्ट्रीय संत श्री मुनिश्री सागर महराज जी ने अपने प्रवचन में कहा कि जब तक मंदिर की पवित्रता, मंदिर की शांति, मंदिर की खुशबू, मंदिर का प्रेम तुम अपने घर में ले जाकर घर को मंदिर नहीं बनाओगे तब तक तु हारे मंदिर जाने का कोई अर्थ नहीं है। मंदिर जाओ या न जाओ, लेकिन घर को मंदिर अवश्य बनाओ। बस फिर तुम देखना कि मंदिर खुद चलकर तु हारे घर आएगा।

उक्त प्रेरणास्पद उद्गार प्रसिद्ध जैन संत मुनिश्री पुलक सागर जी महाराज ने स्थानीय चंद्रप्रभू जिनालय में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। उनके प्रवचन की खास बात यह रही कि वह ग्रंथों की बीथिकाओं में नहीं उलझे और उनमें जिंदगी को पढऩे क जज्बा देखा गया। उन्होंने साफगोई से कहा भी कि मैं पुराणों की नहीं, बल्कि प्राणों की बात करने आया हूं, क्योंकि प्राणों से हजारों पुराणों का जन्म स्वयं हो जाएगा। प्रारंभ में जैन भक्तों ने उनके श्रीचरणों में श्रीफल भेंट कर अपने श्रद्धासुमन भेंट किए और भक्तगणों ने मंच पर विराजित गुरुवर पुष्पदंत श्री जी महाराज के चित्र का अनावरण किया।

धर्मसभा में मुनिश्री पुलक सागर जी महाराज ने जीवन को स्वर्ग बनाने के स्वर्णिम सूत्र बताए। उन्होंने कहा कि धर्म का प्रारंभ बाहर से नहीं, बल्कि घर से होना चाहिए, लेकिन होता यह है कि हम मंदिर जाते हैं, परंतु घर को मंदिर नहीं बना पाते। हम अनाथ आश्रम में भोजन कराते हैं, लेकिन अपने माता-पिता की थाली में दो रोटी भी नहीं रख पाते।

अपने भाई की उन्नति को हम नहीं देख पाते। घरों में देवरानी और जेठानी एक दूसरे के प्रति ईष्याग्रि में जलकर एक थाली में भोजन नहीं कर पातीं। उन्होंने सवाल उठाया कि फिर जीवन स्वर्ग कैसे बनेगा। मंदिर में एक घंटा रहते हैं तो उसके वातावरण को पवित्र बनाकर रखते हैं, लेकिन जिस घर में 23 घंटे रहते हैं उसे पवित्र क्यों नहीं बनाते। ऐसी स्थिति में जीवन नर्क बना तो जि मेदार आप स्वयं हैं। आपके जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए मैं आया हूं। चार दिन में कोशिश करूंगा कि  आपको बदल दूं, लेकिन बदलाव के लिए तैयारी तो आपकी चाहिए।

जब तक तुम नहीं चाहोगे मैं तो क्या भगवान महावीर भी तु हें नहीं बदल पाएंगे। भगवान महावीर के काल में शेर और गाय एक घाट पर पानी पीते थे और मैं कोशिश करूंगा कि दुश्मन भाईयों को दोस्त की तरह गले मिलवा दूं। देवरानी और जेठानी को एक थाली में खाना खिलवा दूं। तभी मेरा शिवपुरी आना सार्थक होगा। मैं यहां प्रवचन देने नहीं, बल्कि चार दिन में आपकी जिंदगी को बदलने के लिए आया हूं। शिवपुरी वालों को अपनी शिवपुरी ले जाने के लिए आया हूं। तुम रहते शिवपुरी में हो, लेकिन मैंने दिग बर चोला पहना है शिवपुरी जाने के लिए। महाराजश्री ने मनुहारपूर्वक कहा कि तुम मेरी शिवपुरी चलो तो बात बने।