नपाध्यक्ष पद के लिए शनै:-शनै: स्पष्ट होती जा रही है मुकाबले की तस्वीर

शिवपुरी। ऐसा लगता है कि कांग्रेस, भाजपा, बसपा और समाजवादी पार्टी नगरीय निकाय चुनाव में स्थानीय नेतृत्व को उभारने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार चरम पर पहुंच गया है।

लेकिन एक दिन यशोधरा राजे के शिवपुरी आगमन के अलावा किसी भी पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता शिवपुरी नहीं आया है तथा प्रत्याशी अपनी मेहनत के बलबूते चुनाव को रोचक बनाने में जुटे हुए हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के आंकड़ों से भले ही कांगे्रस की स्थिति कमजोर आंकी जा रही हो, लेकिन प्रचार-प्रसार में कांग्रेस ने अन्य प्रत्याशियों से बढ़त अवश्य हासिल की है। भाजपा और अन्य प्रत्याशियों को अभी मेहनत करने की जरूरत है।

मुकाबले में 12 प्रत्याशी हैं, लेकिन चुनाव से पूर्व ही तीन प्रत्याशी जुगल किशोर, परमा राठौर और मानिकचंद राठौर चुनाव मैदान से हट गए हैं। शेष 9 प्रत्याशियों में से 6 ऐसे हैं जो मुकाबले में माने जा रहे तीन प्रत्याशियों की जीत-हार में निर्णायक बन सकते हैं। मतदान के 7 दिन पूर्व जो आंकलन निकलकर आ रहा है वह यह है कि जीत के लिए मु य संघर्ष भाजपा प्रत्याशी हरिओम राठौर, कांग्रेस प्रत्याशी मुन्नालाल कुशवाह और निर्दलीय प्रत्याशी छत्रपाल सिंह गुर्जर के बीच माना जा रहा है।

नगरपालिका अध्यक्ष पद अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित होने की स्थिति में कांग्रेस मुन्नालाल कुशवाह को उ मीदवार बनाएगी इसकी भूमिका 6 साल पहले बन गई थी। जब लोकसभा चुनाव के दौरान दुर्घटना में श्री कुशवाह के बड़े पुत्र की दुखद मृत्यु हो गई थी, लेकिन इस शोक से उभरते हुए तीन दिन बाद ही श्री कुशवाह ने सिंधिया के प्रचार की कमान संभाल ली थी। उन्हें आरक्षण की स्थिति में टिकट मिलने का अंदेशा था।

इसी कारण हर चुनाव में जमीनी कार्यकर्ता के रूप में मुन्नालाल ने मेहनत की और पार्टी में एक मुकाम बनाया। उन्हें आगे बढ़ाने में सांवलदास परिवार की भी भूमिका रही। इस चुनाव में जब नपा शिवपुरी का अध्यक्ष पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हुआ तो सबसे पहले टिकट के लिए श्री सिंधिया से उसी दिन मिलने वालों में मुन्नालाल भी थे। यही कारण था कि वह टिकट के लिए निश्चिंत रहे और उनका प्रचार भी सबसे पहले शुरू हुआ। इस कारण प्रचार में श्री कुशवाह को लाभ मिलता दिख रहा है।

भाजपा प्रत्याशी हरिओम राठौर की कहानी बुलंद किस्मत की कहानी है। श्री राठौर को आगे बढ़ाने में मु य भूमिका विधायक माखनलाल राठौर की रही। माखनलाल ने उन्हें अपना विधायक प्रतिनिधि बनाया और बाद में पार्टी के नगर अध्यक्ष के रूप में उनका नाम प्रस्तावित किया। वह नगर अध्यक्ष तो नहीं बने, लेकिन नगर महामंत्री अवश्य बन गए। बाद में विधायक राठौर से अलग हरिओम ने अपनी राजनीति नए सिरे से करना शुरू की और संबंधों में समन्वय बनाने में उन्हें महारथ हासिल रही।

वह यशोधरा खेमे के प्रति निष्ठावान रहे, लेकिन अन्य खेमों से भी उनके सौहार्दपूर्ण रिश्ते रहे और यही कारण उनके टिकट प्राप्त करने में निर्णायक रहा। सूत्र बताते हैं कि टिकट की अंतिम दौड़ में उनका नाम शामिल नहीं था, लेकिन जब अशोक  बाबा के नाम पर सहमति नहीं बनी और नरेन्द्र सिंह तोमर खेमे के राजू बाथम और हेमंत ओझा के नाम पर यशोधरा खेमे का बीटो लगा तो हरिओम की लॉटरी खुल गई और वह आम सहमति के उ मीदवार के रूप में टिकट प्राप्त करने में सफल रहे।

जहां तक निर्दलीय प्रत्याशी छत्रपाल सिंह गुर्जर का सवाल है श्री गुर्जर कांग्रेस टिकट की अग्रणी कतार में थे, लेकिन मुन्नालाल की मजबूत दावेदारी के कारण वह पिछड़ गए। श्री गुर्जर की पत्नी को पिछले चुनाव में पार्षद पद का टिकट भी कांग्रेस ने नहीं दिया था, लेकिन बागी उ मीदवार के रूप में वह चुनाव जीतने में सफल रहीं।

उनके समर्थन में कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट खुलकर सामने आ गए और यह सवाल बना हुआ है कि छत्रपाल सिंह गुर्जर की उ मीदवारी कांग्रेस उ मीदवार मुन्नालाल कुशवाह को भारी पड़ रही है या भाजपा प्रत्याशी हरिओम राठौर को लेकिन श्री गुर्जर की उ मीदवारी ने कांग्रेस और भाजपा के शांत तालाब में हलचल अवश्य मचा दी है।

भाजपा प्रत्याशी के लिए लाभदायक स्थिति यह बनी है कि उनके तीनों सजातीय उ मीदवार जुगलकिशोर राठौर, परमा राठौर और माणिकचंद राठौर उनके पक्ष में चुनाव मैदान से हट गए हैं और किसी भी  गुट में उनके प्रति नाराजगी का भाव नहीं है, लेकिन जीत के लिए श्री राठौर को अपने प्रचार अभियान को और गति देनी होगी। कांग्रेस प्रत्याशी मुन्नालाल कुशवाह और निर्दलीय प्रत्याशी छत्रपाल सिंह अपनी नुक्कड़ सभा से हलचल मचाए हुए हैं। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि ऊंट किस करवट बैठेगा।